सुपौल: बिहार के सुपौल में गुरुवार को नाबालिग के साथ दुष्कर्म के मामले में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश षष्टम सह विशेष न्यायाधीश पॉक्सो पाठक आलोक कौशिक की कोर्ट ने मुख्य रूप से दोषी सुभाष सरदार को उम्र कैद की सजा सुनाई है. वहीं, उसके छोटे भाई और मां को 3 साल 6 महीने कैद की सजा सुनाई गई है. मामला जिले के महिला थाना कांड संख्या 104/18 और पॉक्सो 37/18 से संबंधित है.


गर्भपात कराने का बनाया दबाव


इस मामले में आरोपी ने पहले नाबालिग को अपनी हवस का शिकार बनाया था और जब वह गर्भवती हो गई, तब आरोपी ने उस पर गर्भपात कराने का दबाव डाला था. इसके बाद पीड़िता ने महिला थाने में मामला दर्ज कराया था. दर्ज मामले में पीड़िता ने बताया था कि 6 अगस्त, 2018 विजयादशमी के दिन वह रात को खाना खाकर बाहर निकली, तभी गांव का ही सुभाष सरदार उसे खींचकर अपने कमरे में ले गया और उसके साथ जबर्दस्ती की.


पीड़िता के अनुसार इस घटना के बाद आरोपी उसके साथ अक्सर डरा धमकाकर दुष्कर्म करता रहा. इसी क्रम में जब वह गर्भवती हो गई, तो आरोपी शादी का प्रलोभन देकर उसपर गर्भपात कराने का दबाव डालने लगा. कोई उपाय न देख पीड़िता ने कानून का सहारा लिया.


बच्ची को स्वीकार करने को तैयार नहीं है आरोपी


अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे विशेष लोक अभियोजक पॉक्सो नीलम कुमारी ने बताया कि इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ट्रायल के दौरान सुभाष सरदार पीड़िता के पेट में पल रहा बच्चा उसका नहीं होने का दावा कर रहा था, जिसके बाद कोर्ट द्वारा बच्चे की डीएनए टेस्ट कराई गई, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई. रिपाेर्ट पॉजिटिव आने के बाद भी अभिुयक्त बच्ची को अपनाने से इनकार करते रहा.


उन्होंने बताया कि कोर्ट ने सुभाष सरदार मुख्य अभियुक्त मानते हुए पॉस्को 6 के तहत उम्र कैद और डेढ़ लाख रूपया अर्थदंड, पॉस्को 4 के तहत 12 साल सश्रम कारावास, डेढ़ लाख रुपये अर्थदंड, भादवि की धारा 376 के तहत 13 साल कारावास और भादवि की धारा 493 के तहत दस साल सश्रम कारावास और 70 हजार रुपये अर्थ दंड की सुजा सुनाई गई है.


आरोपी के मां और भाई को भी सुनाई सजा


वहीं, अभियुक्त के मां दायजी देवी और भाई संजीव सरदार को भादवि की धारा 493/34 के तहत दोषी करार करते हुए 3 साल 6 महीने का सश्रम कारावास और पचास हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई गई है. अर्थदंड की राशि नहीं देने पर दोनों को अतिरिक्त नौ महीने का सजा भुगतना पड़ेगा.


कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि लगाए गए जुर्माने की राशि पीड़िता की बच्ची के खाते में दी जाएगी. जब बच्ची की उम्र 18 साल हो जाएगी तो वो इस राशि को निकाल सकती है. इसके अलावा 07 लाख रुपये मुआवजे के लिए विधिक सेवा प्राधिकार को लिखा जाएगा. इस पूरे मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक पोक्सो नीलम कुमारी तथा बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता सुधीर कुमार झा ने बहस में हिस्सा लिया.


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