क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड़ और पूर्व क्रिकेट वसीम जाफर के बीच छिड़ा विवाद बढ़ता ही जा रहा है. सीएयू ने वसीम जाफर पर धार्मिक भेदभाव और बायो बबल में ट्रेनिंग के दौरान मौलवियों को बुलाने का आरोप लगाया है. वसीम जाफर ने ट्वीट के जरिए पूरे मामले पर सफाई दी है. जाफर ने सीएयू के सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उन्होंने कभी भी ट्रेनिंग के दौरान मौलवियों को नहीं बुलाया.


मंगलवार को वसीम जाफर ने उत्तराखंड की टीम के कोच पद से इस्तीफा दिया था. वसीम जाफर ने क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद उत्तराखंड की टीम के कोच का पद संभाला था. जाफर के इस्तीफा देने के बाद ही बोर्ड और पूर्व भारतीय क्रिकेटर के बीच एक-दूसरे पर आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हुआ.


क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड ने आरोप लगाया कि वसीम जाफर टीम में मुस्लिम खिलाड़ी को बढ़ावा दे रहे थे. बोर्ड का आरोप था कि जाफर ने चंदिला की जगह इकबाल अब्दुल्ला को टीम का कप्तान बनाया. इसके साथ ही जाफर पर बायो बबल में ट्रेनिंग कैंप के दौरान मौलवियों को बुलाने का आरोप भी लगा.


जाफर ने खारिज किए सभी आरोप


लेकिन जाफर ने ट्वीट कर अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज किया है. जाफर ने कहा, ''मैंने ट्रेनिंग कैंप के दौरान मौलवियों को नहीं बुलाया था. मैंने जय बिष्ठ को कप्तान बनाए जाने की वकालत की थी ना कि इकबाल को.''



वसीम जाफर ने कोच पद से इस्तीफा देने की वजह को भी बयां किया है. पूर्व क्रिकेटर ने कहा, ''मैंने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि सिलेक्टर्स ऐसे खिलाड़ियों को चुन रहे थे जो कि टीम में जगह पाना डिजर्व नहीं करते. टीम सिख समुदाय से जुड़ा हुआ नारा लगाती थी जिसके बताए मैंने गो उत्तराखंड कहने की वकालत की.''


बता दें कि वसीम जाफर को इस मामले में पूर्व खिलाड़ियों का साथ भी मिला है. टीम इंडिया के पूर्व कोच अनिल कुंबले ने कहा है कि वह पूरी तरह से वसीम जाफर के साथ हैं और उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है. मनोज तिवारी भी वसीम जाफर के समर्थन में आए हैं. वसीम जाफर के नाम रणजी क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड दर्ज है.


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