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Photos: नेपाल के पीएम पुष्प कमल दहल ने संभाला कार्यभार, तीसरी बार बने हैं देश के प्रधानमंत्री

ABP Live   |  26 Dec 2022 11:01 PM (IST)
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एक दिन पहले ही राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. प्रचंड रविवार को नाटकीय रूप से नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले चुनाव पूर्व हुए गठबंधन से बाहर हो गए और विपक्ष के नेता के.पी. शर्मा ओली के साथ हाथ मिला लिया.

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प्रचंड और ओली के बीच बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करने के लिए सहमति बनी है और प्रचंड को पहले प्रधानमंत्री बनाने पर ओली ने अपनी सहमति जतायी है.

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पूर्व गुरिल्ला नेता प्रचंड (68) ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 169 सदस्यों के समर्थन के दावे के साथ राष्ट्रपति को एक पत्र सौंपा था, जिसके बाद उन्हें देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. शीतल निवास में हुए एक आधिकारिक समारोह में राष्ट्रपति भंडारी ने प्रचंड को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई.

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राष्ट्रपति भंडारी ने नई गठबंधन सरकार के अन्य कैबिनेट सदस्यों को भी शपथ दिलाई. नए मंत्रिमंडल में तीन उप प्रधानमंत्री हैं, जिनमें के.पी. शर्मा ओली के दल सीपीएन-यूएमएल से विष्णु पौडेल, सीपीएन-माओवादी सेंटर से नारायण काजी श्रेष्ठ और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) से रवि लामिछाने का नाम शामिल है.

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पौडेल को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है जबकि श्रेष्ठ को बुनियादी ढांचा एवं परिवहन मंत्रालय और लामिछाने को गृह मंत्रालय सौंपा गया है. ओली की पार्टी से ज्वाला कुमारी, दामोदर भंडारी और राजेंद्र कुमार राय को मंत्री बनाया गया है. वहीं, जनमत पार्टी के अब्दुल खान को भी मंत्री बनाया गया.

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भारी बहुमत से प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बावजूद प्रचंड को अब 30 दिन के भीतर निचले सदन से विश्वास मत प्राप्त करना होगा.

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पूर्व प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाले सीपीएन-यूएमएल, सीपीएन-एमसी, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) और अन्य छोटे दलों की एक महत्वपूर्ण बैठक रविवार को यहां हुई थी, जिसमें सभी दल 'प्रचंड' के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमत हुए.

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प्रचंड को 275-सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 168 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है, जिनमें सीपीएन-यूएमएल के 78, सीपीएन-एमसी के 32, आरएसपी के 20, आरपीपी के 14, जेएसपी के 12, जनमत के छह, नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के तीन सदस्य तथा तीन निर्दलीय शामिल हैं.

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प्रचंड और उनके मुख्य समर्थक ओली को चीन समर्थक माना जाता है. प्रचंड ने अतीत में कहा था कि नेपाल में बदले हुए परिदृश्य के आधार पर और 1950 की मैत्री संधि में संशोधन तथा कालापानी एवं सुस्ता सीमा विवादों को हल करने जैसे सभी बकाया मुद्दों के समाधान के बाद भारत के साथ एक नयी समझ विकसित करने की आवश्यकता है.

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भारत और नेपाल (Nepal) के बीच 1950 की शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों का आधार बनाती है. हालांकि, प्रचंड ने हाल के वर्षों में कहा था कि भारत और नेपाल को द्विपक्षीय सहयोग की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए इतिहास में छूटे कुछ मुद्दों का कूटनीतिक रूप से समाधान किये जाने की आवश्यकता है.

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