जिंदगी बचाने की जगह सांसें छीन लेगी डोनर की किडनी, अगर ट्रांसप्लांट से पहले नहीं रखा इसका ख्याल
इस शख्स का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था, लेकिन दो महीने बाद भी उसे अस्पताल में दोबारा एडमिट कराया गया. दरअसल, उसे लगातार उल्टी हो रही थीं. इसके अलावा ज्यादा थकान, लगातार प्यास और हद से ज्यादा पेशाब की दिक्कत होने लगी.
किडनी ट्रांसप्लांट के मामलों में आमतौर पर ऐसा नहीं होता है. धीरे-धीरे मरीज का ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा और लंग्स में फ्लूड जमा होने लगा. फीडिंग ट्यूब लगाने के बावजूद उसकी हालत बिगड़ती चली गई. ऐसे में डॉक्टरों ने उसे आईसीयू में एडमिट करके जांच शुरू कर दी.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट के अनुसार, मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के डॉक्टरों को इंफेक्शन का संदेह था. ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को पावरफुल इम्युनोसुपरसिव दवाएं दी गईं, जिसके चलते माना गया कि तबीयत बिगड़ने की वजह कोई इंफेक्टिव एजेंट हो सकता है.
जांच में वायरल इंफेक्शन की आशंका को खारिज कर दिया गया, क्योंकि मरीज को पहले से ही इंफेक्शन खत्म करने की दवा दी जा रही थी. हालांकि, जांच के दौरान दो असामान्य लक्षण देखे गए.
मरीज के सैंपल में पैरासाइट इंफेक्शन से जुड़ी एक तरह की व्हाइट ब्लड सेल इयोसिनोफिल्स देखी गई. वहीं, मरीज के पेट पर लाल-बैंगनी रंग के दाने भी थे. इसके बाद स्ट्रोंगाइलोइड्स नाम के पैरासाइट राउंडवॉर्म की ओर ध्यान गया.
यह राउंडवॉर्म आमतौर पर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल में इंफेक्शन फैलाता है, लेकिन जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर होती है, उनके लिए यह बेहद खतरनाक हो सकता है.
जांच के बाद पता चला कि किडनी डोनर कैरेबियन एरिया में रहता था. इस इलाके में स्ट्रॉन्गिलोइड्स एक एपिडेमिक है. ट्रांसप्लांट से पहले डोनर के ब्लड में पैरासाइट की जांच नहीं की गई थी, जिसकी वजह से मरीज को यह दिक्कत हुई.