Nuclear Energy: कैसे काम करती है न्यूक्लियर एनर्जी, इसे बनाने में पीछे क्यों है भारत?
न्यूक्लियर एनर्जी न्यूक्लियर फिशन नाम की प्रक्रिया से बनती है. एक रिएक्टर के अंदर यूरेनियम 235 के एटम पर न्यूट्रॉन से हमला किया जाता है. इससे वे टूट जाते हैं. इसके टूटने से काफी कम मात्रा के फ्यूल से काफी ज्यादा गर्मी निकलती है. कोयल या फिर गैस की तरह न्यूक्लियर फ्यूल जलता नहीं है.
फिशन के दौरान निकलने वाली गर्मी का इस्तेमाल पानी उबालने के लिए किया जाता है. इससे काफी हाई प्रेशर बाप बनती है. यह भाप बड़े टर्बाइन को घूमाती है. यह टर्बाइन जनरेटर से जुड़े होते हैं जो मैकेनिक मोशन को बिजली में बदलते हैं.
2025 तक भारत की कुल इंस्टॉल न्यूक्लियर क्षमता लगभग 8.8 गीगावाट है. न्यूक्लियर पावर भारत के एनर्जी मिक्स में सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है. यही वजह है कि सरकार ने शांती फ्रेमवर्क के तहत लॉन्ग टर्म विस्तार का प्रस्ताव दिया है.
भारत की सबसे बड़ी समस्या है सीमित यूरेनियम भंडार. इस वजह से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. खास बात यह है कि भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े थोरियम भंडार में से कुछ हैं, लेकिन थोरियम का सीधे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए काफी ज्यादा निवेश की जरूरत होती है. साथ ही इन्हें चालू होने में 10 से 15 साल लग सकते हैं. इसके अलावा भारत का न्यूक्लियर डैमेज के लिए सिविल लायबिलिटी एक्ट 2010 सप्लायर पर एक्सीडेंट की जिम्मेदारी डालता है.
अब तक न्यूक्लियर पावर पर सरकारी कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड का दबदबा रहा है. शांति बिल 2025 प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी के लिए दरवाजा खोलकर एक बड़ा मोड लाता है.