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Sindoor Daan: क्या होता है सिंदूरदान, जानें इसका जीवन में महत्व

एबीपी लाइव   |  08 May 2025 10:00 AM (IST)
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हिंदू धर्म में दान का विशेष महत्व माना गया है. अलग-अलग दानों का वर्णन धर्म शास्त्रों में किया गया है. इन्हीं में से एक खास दान है — सिंदूरदान. यह परंपरा विवाह संस्कार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है. सिंदूरदान केवल एक रस्म नहीं बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत और अखंड बनाए रखने का प्रतीक है.

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जब हिंदू रीति-रिवाज से शादी होती है तो दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरकर सिंदूरदान की परंपरा निभाता है. शादी में सप्तपदी और अग्नि के फेरे होने के बाद दूल्हा वधू की मांग में सिंदूर भरता है. यह रस्म यह दर्शाती है कि दोनों जीवनभर के लिए एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं.

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शास्त्रों के अनुसार शादी के बाद विवाहित महिलाएं प्रतिदिन अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं. यह सिंदूर सुहागिन महिलाओं के सौभाग्य और उनके पति की लंबी उम्र का प्रतीक होता है. यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बहुत खास मानी जाती है.

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माना जाता है कि सिंदूर लगाने से नारी के सौंदर्य में निखार आता है और उसका चेहरा और अधिक आकर्षक दिखाई देता है. इसके अलावा, सिंदूर जिस स्थान पर लगाया जाता है वह ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ऊपर होता है, जो बहुत संवेदनशील और ऊर्जा का केंद्र माना जाता है.

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धार्मिक विश्वासों के अनुसार, प्रतिदिन मांग में सिंदूर भरना अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का प्रतीक है. कहा जाता है कि जो स्त्री हमेशा अपनी मांग में सिंदूर भरती है, उसकी पति की रक्षा स्वयं माता सीता करती हैं. यह विश्वास महिलाओं के मन में अपने पति के प्रति विश्वास और श्रद्धा को और मजबूत करता है.

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सिंदूरदान के समय एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है. यह मंत्र है: ॐ सुमंगलीरियं वधूरिमां समेत पश्यत. सौभाग्यमस्यै दत्त्वा याथास्तं विपरेतन.. इस मंत्र का अर्थ है कि दूल्हा सभी उपस्थित लोगों से प्रार्थना करता है कि वे वधू को सौभाग्यशाली होते हुए देखें और उन्हें आशीर्वाद दें.

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इस मंत्र के साथ सिंदूरदान की रस्म पूरी होती है. दूल्हा यह भी कहता है कि वह सिंदूर देकर अपना कर्तव्य निभा रहा है और यह सिंदूर वधू की हर कठिनाई में उसकी रक्षा करेगा. इस तरह सिंदूरदान केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवनभर के रिश्ते और जिम्मेदारी की शुरुआत होती है.

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