रूसी सैनिकों की ओर से यूक्रेन के अलग-अलग इलाकों में लगातार हमले जारी हैं. भारी बमबारी की वजह से कई इलाकों में तबाही का मंजर है. रूसी सैनिक बड़ी-बड़ी इमारतों को निशाना बना रहे हैं यहां तक कि स्कूल भवनों पर भी बम गिराए जा रहे हैं. रूसी हमले में भारी बमबारी की वजह से भारी संख्या में लोग हताहत हो रहे रहे हैं. इस बीच रूस की गतिविधियों पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कोर्ट की भी नजर है. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court) ने यूक्रेन में युद्ध अपराध के आरोपों की जांच शुरू की है. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कोर्ट के अभियोजक करीम ए ए खान (Karim A A Khan) ने कहा कि इस कोर्ट के 12 से अधिक सदस्यों ने उन्हें जांच के लिए आग्रह करते हुए पत्र लिखा था. इस जांच के तहत रूसी अधिकारियों पर युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार के आरोपों को लेकर गंभीरता से जांच की जाएगी. दोषी अधिकारियों की पहचान के बाद रूस को युद्ध अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है.


अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कोर्ट की यूक्रेन संकट पर नजर


रूसी हमले में यूक्रेन (Ukraine Russia War) में भारी संख्या में लोग मारे गए हैं. हालांकि ये संख्या कितनी है इसकी अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. पिछले कुछ दिनों में यूक्रेनी अधिकारियों ने रूसी सेना पर नागरिक और आवासीय क्षेत्रों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने इसे निर्विवाद आतंकवाद करार दिया है. रूस-यूक्रेन गतिरोध के मद्देनजर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) के अभियोजक करीम खान ने 28 फरवरी को कहा था कि वो यूक्रेन में जितनी जल्दी हो सके स्थिति की जांच शुरू करेंगे. उनका मानना ​​​​है कि यूक्रेन में युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध दोनों ही किए गए हैं.


क्या है आईसीसी?


अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कोर्ट गंभीर अंतर्राष्ट्रीय अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए एक स्थायी अदालत है. यह नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और आक्रामकता जैसे अपराधों को लेकर मुकदमा चलाता है. अदालत की स्थापना वैश्विक दंड से लड़ने और अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायरे में अपराधियों को लाने के लिए की गई थी. चाहे उनकी रैंक या कद कुछ भी हो. 2002 में ICC के एक्टिव होने से पहले इसकी संस्थापक संधि को 1998 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा रोम, इटली में अपनाया गया था. 123 देश वर्तमान में ICC के सदस्य हैं. जिनमें अफ्रीकी देश सबसे बड़ा ब्लॉक हैं. विशेष रूप से, भारत, चीन, इराक, उत्तर कोरिया और तुर्की सहित देशों ने रोम संविधि पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए. जबकि अमेरिका, रूस, इजराइल और सीरिया सहित अन्य ने हस्ताक्षर किए लेकिन कभी इसकी पुष्टि नहीं की.


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