SCO Summit 2022: समरकंद में SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की समिट हो रही है. इस बार पूरी संभावना है कि ईरान (Iran) को भी इस संगठन का पूर्णकालिक सदस्य बना दिया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो फिर इस संगठन में अमेरिका (America) के 3 खास दुश्मन एक साथ आ जाएंगे, क्योंकि चीन (China) और रूस (Russia) तो पहले से ही इस क्षेत्रीय संगठन का हिस्सा हैं ही. ईरान भी इसमें जुड़ जाएगा. जिस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाये हुए हैं. ऐसे में भारत (India) किस तरह से अमेरिका के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों का संतुलन बिठाएगा. ये देखना महत्वपूर्ण होगा.


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी एक ही मंच पर हैं. उस मंच का नाम है - SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन. इसी मंच पर दो ऐसे देश भी होंगे, जिन्हें अमेरिका शक की निगाहों से देखता है. पाकिस्तान और तुर्की. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और तुर्की के राष्ट्रपति आर्दुगॉन भी SCO समिट में हिस्सा लेने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद शहर पहुंच चुके हैं.


समरकंद में कूटनीति की बिछी बिसात


यानी कुल मिलाकर उज्बेकिस्तान के समरकंद शहर में अमेरिका के खिलाफ रहने वाले देशों की संख्या बहुत ज्यादा है. यहां रूस भी है, चीन भी, ईरान भी और पाकिस्तान-तुर्की भी. मुद्दा भले ही क्षेत्रीय सहयोग का हो लेकिन क्या अपने दुश्मनों की ये मुलाकात अमेरिका को नहीं खटक रही होगी. समरकंद में कूटनीति की जो बिसात बिछी है, उसमें अमेरिका का सिर्फ एक ही दोस्त है. और उसका नाम है भारत. क्योंकि ये भारत की कूटनीति की ही सफलता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस मंच पर पूरे कॉन्फिडेंस के साथ भारत की बात कहने जाएंगे, जहां अमेरिका के विरोधी ज्यादा हों.


SCO मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तमाम नेताओं से मिलेंगे. जिनमें चीन और रूस के राष्ट्रपति भी शामिल हैं लेकिन इसके बाद शाम को इसी समरकंद के रेजेंसी होटल में 4 बजकर 10 मिनट पर प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्विपक्षीय बैठक करेंगे. जिस पर निश्चित तौर पर अमेरिका की निगाहें लगी होंगी.


मोदी-पुतिन के मुलाकात के बाद अमेरिका क्या करेगा?


SCO की मुलाकात में मोदी के क्या बोलेंगे, इस पर दुनिया की निगाहें क्यों लगी हुई हैं? SCO में मोदी पर दुनिया की निगाहें क्यों? इस पर पूर्व राजनयिक दीपक वोरा कहते हैं कि सब जगह समस्याएं हैं, लेकिन भारत सबसे करीबी दोस्त है. चीन को टॉलरेट करते हैं, लेकिन भरोसा भारत पर करते हैं. रूस के साथ सोवियत संघ का संबंध है. नरेन्द्र मोदी शो के स्टार हैं. सब लोग देखेंगे कि मोदी की पुतिन और ईरान के साथ जब मीटिंग है, भारत के ऊपर फोकस रहेगा कि इंडिया की क्या पोजिशन है.


कल जब मोदी और पुतिन मिलेंगे, तो उस पर सबसे ज्यादा निगाहें अमेरिका की होंगी और इसकी वजह है अमेरिका और रूस की दुश्मनी. इसी साल फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो पूरी दुनिया ने उसकी निंदा की. अमेरिका ने तो रूस पर कई तरह से प्रतिबंध तक लगा दिये. ये बात अलग है कि यूक्रेन अब रूस से अपनी हारी हुई जमीन वापिस ले रहा है लेकिन रूस के इस अग्रेशन के खिलाफ पूरी दुनिया खड़ी हुई. सिवाए उन देशों के जो रूस के मित्र हैं और उन मित्रों में भारत सबसे ऊपर है.


भारत ने कैसे रूस का साथ दिया ?



  • युद्ध के बाद भारत ने रूस की निंदा करने से इंकार कर दिया था.

  • संयुक्त राष्ट्र में भारत ने रूस के खिलाफ वोट नहीं किया.

  • प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से खूब कच्चा तेल खरीदा.

  • इसी की वजह से रूस ने भारत को और भी सस्ते दामों पर तेल बेचा.

  • जून में रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन गया था.


इन्हीं वजहों से ये माना जा रहा है कि अमेरिका भारत से खफा होगा लेकिन यही भारत की विदेश नीति की खूबी है कि वो अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल भी खरीद रहा है और अमेरिका से दोस्ती भी निभा रहा है. जी7 के मंच पर दुनिया के बड़े बड़े नेता फोटो खिंचवा रहे थे, तभी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पीछे से आए और भारतीय प्रधानमंत्री से इस गर्मजोशी से मिले. इससे ठीक एक महीने पहले भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति जापान में भी मिल चुके हैं. ये मौका क्वॉड का था. यहां दोनों के बीच मई में द्विपक्षीय बातचीत भी हुई थी.


अमेरिका को है भारत की जरूरत


यहां ये बताना जरूरी है कि जिस वक्त ये दोनों मुलाकातें हुईं, उस वक्त रूस और यूक्रेन का युद्ध (Russia-Ukraine War) चल रहा था और भारत (India) रूस से अपनी दोस्ती जग जाहिर कर चुका था. इसीलिए अमेरिका (America) भारत को रूस के खिलाफ भड़काता तो है लेकिन अपनी विदेश नीति की वजह से भारत किसी भी ब्लॉक में नहीं है और अमेरिकी की मजबूरी ये है कि उसे चीन (China) का सामना करने के लिए भारत की जरूरत है.


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