एक तरफ रूस, यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में फंसता नजर आ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ रूस के दागिस्तान से सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें रूस के मुसलमानों और पुलिस के बीच झड़पें चल रही हैं. ऐसी खबरें आ रही हैं कि यूक्रेन के साथ-साथ अब रूस में रह रहे मुसलमानों ने भी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 


ऐसे में सवाल उठता है कि रूस में आखिर ऐसा क्या हुआ कि वहां के मुसलमान व्लादिमीर पुतिन का विरोध कर रहे हैं? वहीं रूस दागिस्तान पर भारी दबाव क्यों बना रहा है? क्या है रूस के इलाके दागिस्तान की पूरी कहानी आइए जानते हैं. 


सोवियत यूनियन का विघटन
1991 में सोवियत यूनियन के विघटन के बाद छोटे-छोटे 21 गणराज्यों को मिलाकर रूस बना. इसमें क्रीमिया को भी जोड़ दिया जाए तो अब ये संख्या बढ़कर 22 हो चुकी है. इन्हीं में से एक रिपब्लिक है दागिस्तान जो रशियन मैप पर 8वें नंबर पर आता है. ये इतना छोटा सा देश या यूं कहें रीजन है कि अगर आप विश्व के मैप पर इसे ढूंढने की कोशिश करेंगे तो आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी. दागिस्तान एक छोटा से देश है. दागिस्तान के एक तरफ कैस्पियन सी है, तो वहीं नीचे की तरफ अजरबैजान और लेफ्ट की तरफ जॉर्जिया और ऊपर की तरफ चेचन्या आते हैं.


रूस से अलग होने की लंबी लड़ाई 
दागिस्तान सहित इन इलाकों के मुसलमानों ने रूस से अलग होने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. वहीं दागिस्तान को पहाड़ों की धरती भी कहा जाता है जिसकी आबादी तकरीबन 31 लाख के करीब है. दागिस्तान की पूरी आबादी में से 87 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. लेकिन इस बार दागिस्तान की रूस से लड़ाई अलग है, ऐसे में यह जानना जरूरी है कि यहां के मुसलमान रशियन आर्मी और पुलिस और राष्ट्रपति पुतिन का विरोध क्यों कर रहे हैं? 


पुतिन का वो आदेश..
दरअसल, दागिस्तान के लोगों की सड़क पर उतरकर विरोध करने के पीछे की वजह है रूस का जबरन उनका इस्तेमाल करना. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के लोगों को यूक्रेन वॉर में रिजर्व फोर्स के तौर इस्तेमाल करने का आदेश दिया है. इस आदेश के जरिए पुतिन यूक्रेन में कमजोर पड़ रही सेना को नई ताकत देना चाह रहे हैं. लेकिन रूस द्वारा खेला गया ये दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा. 




वहीं, इस आदेश के बाद एक तरफ जहां रूस के लोगों ने अपना मुल्क छोड़ना शुरू कर दिया है. अब देश छोड़ने पर पाबंदी के बाद रशिया में प्रदर्शनों का दौर जारी है, जिसमें दागिस्तान में हो रहा विरोध हिंसक होता जा रहा है. दागिस्तान के लोग रूस-यूक्रेन के युद्ध में भाग नहीं लेना चाहते हैं. इसकी बानगी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियोज में भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. वहां हो रहे प्रदर्शनों में महिलाओं से लेकर बच्चे तक भाग ले रहे हैं. 


1990 से तनाव का माहौल
गौरतलब है कि दागिस्तान के इतिहास में 1990 से ही तनाव का माहौल चला आ रहा है. यहां के लोग हमेशा से रशियन सरकार के धुर विरोधी रहे हैं. उनका मानना है कि सेना में भर्ती करने के बहाने उन्हें निशाना बनाया जा रहा रहा है. पुतिन के ऐलान के बाद यहां के मुसलमान जहां पुलिस का विरोध कर रहे हैं, वहीं बहुत से नौजवान जॉर्जिया भागने की कोशिश भी कर रहे हैं, जिससे कि रशियन आर्मी वहां के युवाओं को जबरदस्ती सेना में भर्ती न करवा पाए.


दागिस्तान में ऐसे युवाओं को रोकने के लिए रूस ने टास्क फोर्स लगाई गई है. ये टास्क फोर्स जबरदस्ती दागिस्तानी युवाओं को रोक रही है और उसी के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. खबरों के मुताबिक अब तक 100 के करीब लोगों को पुलिस ने बंदी बना लिया है. प्रदर्शन कर रहे लोग इनकी भी रिहाई की मांग कर रहे हैं. 


लाशों से भरे ताबूत 
बता दें कि इस विरोध के पीछे एक कारण ये भी है कि दागिस्तान के बहुत से युवा लड़के रशिनय फौज में भर्ती थे. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान उनकी लाशों से भरे ताबूत जब दागिस्तान वापस आ रहे हैं तो पुतिन का विरोध और बढ़ता जा रहा है. महिलाएं सड़कों पर उतरकर नो वॉर के नारे लगा रही हैं. दागिस्तान में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बावजूद रशियन पुलिस जबरन इन्हें सेना में शामिल करने में लगी हुई है. 




दरअसल, दागिस्तान के इतिहास में जाने पर पता चलता है कि 1990 के बाद से दागिस्तान में कट्टर इस्लामिक विचारधारा बढ़ी. वहीं, 1999 में एक इस्लामिक गुट ने चेचन्या और दागिस्तान के कुछ इलाकों को आजाद भी घोषित कर दिया था. इस दौरान दागिस्तान में रूसी सेना के खिलाफ भी हमले हुए थे. 2010 में मॉस्को मेट्रो पर हमला हुआ था जिसमें 39 लोग मारे गए थे इसके लिए दागिस्तान के मिलीशिया कमांडर मागोमेड वागाबोव को जिम्मेदार बताया गया था.


हालांकि रूस की सेना ने इसका बदला 2010 में लेते हुए मिलीशिया कमांडर मागोमेड वागाबोव को मार गिराया था. लेकिन अभी भी दागिस्तान में कई हथियार बंद गुट काम कर रहे हैं. दागिस्तान जैसे इस छोटे से इलाके में सक्रिय रहने के इन्हीं हथियार बंद गुटों रशियन सरकार की नाक में दम कर रखा है. 


रूस-यूक्रेन की विभीषिका
वहीं एक दावे के मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध में 30 हजार से ज्यादा यूक्रेनी नागरिकों की मौत हो चुकी है, जिसमें 15 हजार से ज्यादा यूक्रेन के जवान शामिल हैं. वहीं यूक्रेन से 80 लाख से ज्यादा लोगों का अब तक पलायन हो चुका है. इस बीच यूक्रेन ने दावा किया था कि इस युद्ध में रूस के 30 हजार ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं, 40 हजार से ज्यादा रूसी सैनिकों को पकड़ लिया गया है. लेकिन इन सबके बीच रूस ने आंकड़ा जारी कर 1351 जवानों के मारे जाने की पुष्टि की थी. 




पिछले दिनों यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने दावा किया था कि रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में हर दिन कम से कम 60 से 100 यूक्रेनी सैनिक अपनी जान गंवा रहे हैं, जबकि रोजाना 500 सैनिक घायल हो रहे हैं.  उन्होंने कहा कि पूर्वी दिशा में स्थिति बहुत भयावह है. अभी तक इस युद्ध में दोनों देशों के हजारों सैनिकों की मौत हो चुकी है. इसमें रूस को भी भारी नुकसान पहुंचा है. यही वजह है कि रूस दागिस्तान के युवाओं पर अपनी सेना में भर्ती करवाकर भाग लेने का दबाव बना रहा है.