नई दिल्ली: कॉम्बेट ड्रोन, फाइटर जेट्स, सबमरीन, टैंक और तोप पाकिस्तान को मुहैया कराने के बाद चीन अब पाकिस्तानी सेना को अपने बताए ‘रास्ते’ पर चलाने के लिए तैयार है. जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना अब अपने मिसाइल सिस्टम्स के नेविगेशन के लिए चीन के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, बेदू (बेइदूओ) का इस्तेमाल करने जा रही है. पाकिस्तानी सेना दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले अमेरिकी नेविगेशन सिस्टम, जीपीएस का इस्तेमाल बंद करने जा रही है. एबीपी न्यूज आज आपको बताने जा रहा है कि आखिर पाकिस्तानी सेना को जीपीएस सिस्टम से क्या डर सता रहा है.


जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना जल्द ही चीनी नेविगेशन सिस्टम, बेदू का इस्तेमाल शुरू करने वाली है. क्योंकि चीन की पीएलए सेना भी अब पूरी तरह से अपने स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर रही है. पाकिस्तानी सेना भी अब चीनी सेना की तरह पूरी तरह से अमेरिकी नेविगेशन सिस्टम, जीपीएस यानि ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम को खत्म करने जा रही है.


दरअसल, पाकिस्तान ने साल 2013 में चीन के साथ इस बात का करार किया था कि जैसे ही चीन का बेदू नेविगेशन सिस्टम पूरी तरह से काम करने लगा तो पाकिस्तानी सेना भी इसी सिस्टम का इस्तेमाल करेगी. इसी साल मई के महीने में चीन ने बेदू नेविगेशन सिस्टम से जुड़ी अपनी आखिरी सैटेलाइट (54वीं सैटेलाइट) भी लॉन्च कर दी है, जिसके बाद से चीन दावा कर रहा है कि उसका नेविगेशन सिस्टम भी ग्लोबल हो चुका है. इसका मतलब है कि अब पूरी दुनिया उसकी जद में आ चुकी है. चीन इस नेविगेशिन सिस्टम को ईजात करने वाला तीसरा देश बन गया है.


चीन और पाकिस्तानी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं रही है. चीन लगातार पाकिस्तान को सैन्य तौर से मजबूत करने के लिए टैंक, तोप, पनडुब्बी, जंगी जहाज और मिसाइल तक मुहैया करा रहा है. ये चीन और पाकिस्तान के बीच डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक कॉपरेशन एग्रीमेंट का हिस्सा है. हाल ही में चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की दक्षिण चीन सागर के हैनान (हाइनान) आईलैंड पर स्ट्रेटेजिक-डायलॉग के तहत एक अहम बैठक भी हुई थी.


एबीपी न्यूज को जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक, पाकिस्तान दो बड़े कारणों से चीन के बेदू नेविगेशन सिस्टम को इस्तेमाल करना चाहता है. पहला तो ये कि चीन की मिसाइल सिस्टम, पनडुब्बी और जंगी जहाज इस्तेमाल करने के लिए चीनी नेविगेशन सिस्टम ही पाकिस्तान को बेहतर विकल्प दिखाई पड़ा रहा है. इसके लिए चीन जल्द ही पाकिस्तान में एक रडार स्टेशन (कनटिनियोएसली ओपरेटिंग रडार स्टेशन) लगाने वाला है.


एबीपी न्यूज को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, इससे भी बड़ी वजह ये हो सकती है कि पाकिस्तान को डर सता रहा है कि अगर भविष्य में कोई युद्ध हुआ तो अमेरिका पाकिस्तान के जीपीएस सिस्टम को जाम कर सकता है, जिससे पाकिस्तानी मिसाइल को टारगेट नहीं मिल पाएगा और गलत जगह पर मिसाइल जाकर गिर सकती है. या फिर वो काम ही नहीं कर पाएगी यानी लॉन्च ही नहीं हो पाएगी. क्योंकि आधुनिक मिसाइल सिस्टम फायर एंड फॉरगेट सिद्धांत के तहत नेविगेशन के सहारे ही अपने टारगेट को पहचानती हैं.


जैसा बालाकोट एयर-स्ट्राइक के समय भारतीय वायुसेना के मिराज फाइटर जेट्स ने स्पाइस बम से हमले के दौरान किया था. इन स्पाइस बम में पहले से ही बालाकोट आंतकी कैंप की लोकेशन (लॉन्गिट्यूड और लैटिट्यूड) ‘फीड’ कर दिए गए थे और मिराज लड़ाकू विमानों ने करीब 15-20 किलोमीटर पहले ही इन बमों को टारगेट पर लॉन्च कर दिया था. स्पाइस बम जीपीएस नेविगेशन सिस्टम के जरिए ठीक उसी जगह जाकर गिरे जहां की लोकेशन उसमें ‘फीड’ थी.


दरअसल, जीपीएस सिस्टम अमेरिका की स्पेस फोर्स ऑपरेट करती है. इससे हमेशा इस बात का डर रहता है कि अमेरिका पाकिस्तानी सेना की मूवमेंट को भी ट्रैक कर सकती है. नेविगेशन सिस्टम के अलावा चीन स्पेस और साईबर डोमेन में भी पाकिस्तानी की खासी मदद कर रहा है. हाल ही में खबर आई थी कि चीन पाकिस्तान को कोविड-19 जैसे वायरस की रोकथाम की आड़ में बायोलॉजिकल-वैपन्स बनाने में भी मदद कर रहा है. इसके लिए वुहान लैब ने पाकिस्तानी सेना के डिफेंस साईंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गेनाइजेशन (डीईएसटीओ) के साथ एक सीक्रेट करार भी किया है.


रविवार को ही चीन ने पाकिस्तानी नौसेना के लिए हूडोंग शिपयार्ड में फ्रीगेट-क्लास युद्धपोत को समंदर में लॉन्च किया था. चीन इस तरह के चार फ्रीगेट्स पाकिस्तानी नौसेना के लिए बना रहा है. साथ ही आठ (08) पनडुब्बियों का भी चीन पाकिस्तानी नौसेना के लिए निर्माण कर रहा है. इससे पहले दोनों देशों में कॉम्बेट ड्रोन, सीएच-4 और लॉन्ग रेंज मिसाइल डिफेंस सिस्टम का भी करार हो चुका है. पाकिस्तान की चीन पर बढ़ती सैन्य-निर्भरता और दोनों के रक्षा क्षेत्र में बढ़ती नजदीकियों के चलते ही अब पाकिस्तानी सेना का एक बड़ा सैन्य अधिकारी बीजिंग स्थित पीएलए सेना के हेडक्वार्टर में तैनात किया गया है.


जानकारों की मानें तो चीन पाकिस्तान को जितने सैन्य साजो सामान मुहैया करा रहा है, उसके पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला तो ये कि पाकिस्तान को सैन्य तौर से मजबूत कर चीन भारत का तोड़ निकलना चाहता है. ताकि भारत पाकिस्तान के साथ ही एलओसी पर उलझा रहे और चीन को सैन्य तौर से टक्कर ना दे पाए. और दूसरा कारण ये है सीपीईसी यानि चीन-पाकिस्तान ईकोनोमिक कोरिडोर की सुरक्षा. सीपीईसी की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान ने एक अलग से सिक्योरिटी डिवीजन तैयार की है. करीब 15 हजार जवानों वाली स्पेशल सिक्योरिटी‌ डिवीजन (एसएसडी) में पाकिस्तानी सेना की इंफेंट्री और पैरामिलिट्री के बटालियन शामिल हैं.