पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिमों को इंडियन सिटीजनशिप देने के लिए लाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की दुनियाभर में चर्चा हो रही है. खासतौर से पाकिस्तान में इसे लेकर खूब बातें की जा रही हैं. सीएए को लेकर कई लोगों का कहना है कि मुस्लिमों को भी इसमें शामिल करना चाहिए, उन्हें क्यों नहीं रखा गया है. इस पर पाकिस्तानी एक्सपर्ट ताहिर गोरा ने कहा कि गैर-मुस्लिमों को इन देशों में प्रताड़ना झेलनी पड़ी है और सीएए का मकसद इन लोगों को बचाना है. अगर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुस्लिमों को भी भारत की नागरिकता देनी थी तो सीएए की जरूरत ही क्या है.


ताहिर गोरा ने कहा कि सीएए 1950 के नेहरू-लियाकत अली खां पैक्ट से जुड़ा है. जब पाकिस्तान बनने के बाद वहां से प्रताड़ित आबादी भाग रही थी तो उनके लिए ऐसी व्यवस्था करने का सोचा गया था. ताहिर गोरा ने कहा, '1947 के बाद लाखों हिंदू और सिखों का कत्लेआम हुआ. तो जब ये लोग भारत आ रहे थे तो भारत की सरकार चाहती थी कि उन्हें भारत में समाया जाए और उन्हें नागरिकता दी जाए.'


ताहिर गोरा बोले, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान की क्या जरूरत
ताहिर गोरा ने कहा, 'भारत से मुस्लिम भी पाकिस्तान आए, लेकिन आज भी भारत में मुसलमानों की बड़ी आबादी हिंदुस्तान में रहती है. जो मुस्लिम उस वक्त आए वो अपनी मर्जी से आए या फिर इसलिए कि दूसरा मुल्क बनाना उनका सपना था. अब पाकिस्तान की बात करें तो शायद 6-7 हजार सिख और एक लाख से भी कम हिंदू रहते होंगे. अगर इनकी संख्या कम होते-होते इतनी कम हो गई तो इसका मतलब ये है कि इन्हें वहां दिक्कत है. अगर सीएए में मुस्लिमों को भी शामिल करना है तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अपगानिस्तान की क्या जरूरत है. इन्हें भारत के साथ ही मिला लिया जाए. हालांकि, इनका शामिल होना भारत के लिए डिजास्टर होगा.'


मुस्लिमों को सीएए में लाने मांग करने वाले राजनीति कर रहे, बोले ताहिर गोरा
ताहिर गोरा ने कहा, 'भारत को इतना हक तो है. उसने दूसरे देशों में प्रताड़ना झेल रहे लोगों को नागरिकता देने का मौका दिया है. इस बात को भी समझा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश में बसने वाले ईसाई और अगर अफगानिस्तान में 1-2 खानदान ईसाई रह गए हैं तो हम उन्हें भी नागरिकता दे देंगे तो ये भारत की गुडविल है.' उन्होंने आगे कहा कि राजनीतिक दल या अन्य लोग जो इस मुद्दे को उठा रहे हैं, ये सब राजनीति है और उन्हें क्योंकि सिर्फ राजनीति करनी होती है तो वह ये नहीं देखते कि ह्यूमन राइट्स और माइनॉरिटी के राइट्स की हानि तो नहीं हो रही. 


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