अफगानिस्तान में तालिबान का राज स्थापित होने से इस्लामिक स्टेट, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को बहुत बड़ा फायदा हुआ है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबान के कब्जे के बाद बड़ी संख्या में इन समूहों के आंतवादी काबुल में पहुंच गए हैं. तालिबान के नेतृत्व को भी इन आंतकवादी समूहों के आंतकवादियों के घुसने की पूरी जानकारी है, जो तालिबान का झंडा लेकर अफगानिस्तान में दाखिल हुए हैं.


अमेरिकी सैनिकों की वापसी के समझौते के अनुसार, तालिबान अफगानिस्तान में किसी भी आंतकवादी समूह को काम करने से रोकने के लिए प्रतिबद्ध है. अगले कुछ दिनों में काबुल में कथित आंतकवादी संगठनों को बेदखल करने की उम्मीद है. दरअसल द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोहा में तालिबान के साथ मिलकर काम करने वाले एक अफगान मानवाधिकार कार्यकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अगले कुछ दिन विदेशी आंतकवादी समूहों के लिए महत्वपूर्ण है जो तालिबानी हुकूमत के आदेशों का उल्लंघन कर सकते हैं.


IS, Let और Jem से जुड़े हैं आंतकी 


न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार पाकिस्तान के आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा और लश्कर-ए-झांगवी ने तालिबान के साथ मिलकर काबुल के कुछ गांवों में चेकपोस्ट भी बनाए हैं. संयुक्त राष्ट्र से प्राप्त डेटा के अनुसार इनकी संख्या लगभग 10,000 हजार के आस पास की है क्योंकि हजारों की संख्या में पाकिस्तान के IS, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद के आंतकवादी तालिबान ने जुड़े हुए हैं.


तालिबान अफगानिस्तान में सरकार बनाने के लिए फिलहाल पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई,ताजिक नेता, पूर्व सीईओ अब्दुल्ला, अब्दुल्ला औह हिज्ब-ए-इस्लामी प्रमुख गुलबुद्दीन हिकमतयार से समर्थन मांग रहा है.


अपनी सरकार के पहले चरण में काबुल की सुरक्षा सुनिश्चित करना तालिबान के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. अफगानिस्तान में आंतवादी IS, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आंतकी संगठनों पर रोक लगाने के लिए प्रतिबद्ध तालिबान पर अंतराष्ट्रीय समूह की हमेशा निगाहें बनी रहेगी. जमीन पर पुलिस बलों की पर्याप्त मात्रा में तैनाती न होने से हिंसा का डर कायम है. अब देखना होगा की तालिबान काबुल और पूरे अफगानिस्तान को कैसे सुरक्षित रखता है.  


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