Afghanistan Crisis: भले ही काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया हो, भले ही तालिबानी अब सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं. लेकिन अफगानिस्तान में अब भी लोकतंत्र की एक उम्मीद बची हुई है. वहां एक बड़े नेता हैं और वो अब भी देश छोड़कर भागे नहीं, बल्कि तालिबान से आमने-सामने लड़ाई की बात कर रहे हैं. 


दरअसल तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है लेकिन अब भी एक इलाका है जहां तक तालिबान नहीं पहुंच पाया. उस इलाके में 1 लाख लोग रहते हैं, उनके पीछे एक नेता खड़ा है और वो कहता है यही है कि सीने पर गोली खा लेंगे लेकिन तालिबान के आगे झुकेंगे नहीं. तालिबान के कब्जे के बाद जब देश के राष्ट्रपति अशरफ गनी भाग निकले ऐसे वक्त में इस नेता ने तालिबान को ललकारा है.


इस नेता का नाम अमरुल्लाह सालेह है, सालेह गनी सरकार में उपराष्ट्रपति थे. अमरुल्लाह सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया और तालिबान के खिलाफ आखिरी दम तक लड़ने की हुंकार भर दी. 


उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं मुल्क के भीतर ही हूं और कानूनी तौर पर मै ही पद का दावेदार हूं. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान का संविधान उन्हें इसकी घोषणा करने की शक्ति देता है. उन्होंने लिखा है कि वह सभी नेताओं से संपर्क साध रहे हैं ताकि उनका समर्थन हासिल किया जा सके और सहमति बनाई जा सके.



अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह राष्ट्रपति अशरफ गनी की तरह अपना मुल्क छोड़कर कहीं भागे नहीं. तालिबान के कब्जे के बाद सालेह की पहली तस्वीर भी सामने आई. उन्हें अफगानिस्तान के पंजशीर में देखा गया है. 


सालेह को अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और तालिबान विरोधी कमांडरों के साथ बैठक करते हुए देखे गए.अमरुल्लाह सालेह जिस पंजशीर में डटे हैं उस इलाके पर अभी भी तालिबान कब्जा नहीं कर पाया है. फिलहाल, पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और शांति परिषद प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला सहित कई अफगान नेता काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से बातचीत कर रहे हैं.


कौन है अमरुल्लाह सालेह जिन्होंने तालिबान को दी चुनौती
खुद को तालिबान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति थे. अब्दुल रशीद दोस्तम के बाद उन्होंने फरवरी 2020 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था. इससे पहले वे 2018 और 2019 में अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री और 2004 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के प्रमुख के रूप अफगानिस्तान को अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 


साल 1990 में सोवियत समर्थित अफगान सेना में भर्ती होने से बचने के लिए सालेह विपक्षी मुजाहिदीन बलों में शामिल हो गए. उन्होंने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के तहत लड़ाई लड़ी. 1990 के दशक के आखिर में वे उत्तरी गठबंधन के सदस्य बने और तालिबान के विस्तार के खिलाफ भी जंग लड़ी.


सालेह को खुले तौर पर पाकिस्तान का विरोधी और भारत का करीबी माना जाता है. उन पर अफगान नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसियों का दुरुपयोग कर पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगता है. अमरुल्ला सालेह ने अक्टूबर 1996 में भारत से सहायता पाने के लिए भारतीय राजनयिक मुथु कुमार और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के बीच एक बैठक भी करवायी थी.


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