Qatar Diplomacy: हमास-इजरायल जंग के बीच शुक्रवार को अस्थाई युद्ध-विराम लागू किया गया. ये विराम एक समझौते की तहत कराया गया. हमास और इजरायल के बीच हुई डील में शर्त थी कि 4 दिनों के सीजफायर के बदले हमास 50 बंधकों को रिहा करेगा, लेकिन इसके बदले इजरायल को 150 फिलिस्तीनी भी सौंपने होंगे जो उनकी जेलों में बंद हैं. 


दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी जरूरतों की वजह से इस डील पर हामी भरी. लेकिन कुटनीतिक गलियारों में इस डील को कराने वाले कतर की चर्चा और वाहवाही हो रही है. पिछले कुछ सालों की गतिविधियों पर नजर डालने पर दिखता है कि कतर ने कूटनीतिक लिहाज से कई ऐसे काम किए हैं जो उसे डिप्लोमेसी में शीर्ष के पायदानों पर खड़ी करती हैं. 


अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी में कतर का हाथ


साल 2020 में अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया था, लेकिन ये फैसला एक शांति समझौते के बाद लिया गया था. ये समझौता कतर के दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच में हुआ था. कतर मध्यस्थता में इस कदर माहिर है कि इसी साल सितंबर महीने में उसने अमेरिकी और ईरानी कैदियों की रिहाई में मध्यथता की थी. इसके अलावा अक्टूबर में यूक्रेन के उन 4 बच्चों को लौटाने को रूस मान गया था, जो उसके कब्जे में थे. 


कतर की मध्यथता की कई मिसाल हैं जिसने उसे तटस्थ देशों की कतार में खड़ा कर दिया है. मसलन सीरिया में बंधकों की रिहाई, लेबनान में राष्ट्रपति पद की वजह से उपजे तनाव, जिबूती के युद्ध के कैदियों की रिहाई में कतर शामिल रहा है. 


जब अमेरिका कतर से हुआ था खफा


कतर और हमास के बीच रिश्ते काफी करीबी हैं. यहीं वजह है कि हमास के नेता कतर में ही रहते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि वे गाजा में इजरायली सैनिकों के हत्थे चढ़ जाएंगे. कतर के इजरायल के साथ भी राजनयिक संबंध हैं. साल 2012 में हमास ने कतर में अपना राजनीतिक दफ्तर खोला था, ये गाजा के लोगों के लिए कतर में एक दूतावास की तरह काम करता है. हमास के दफ्तर को लेकर अमेरिका ने कई बार कतर पर उसे बंद करने का दबाव बनाया. 


लेकिन करीबी साझेदार होने बावजूद कतर ने अमेरिका की बात मानने से इनकार कर दिया. कतर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह हमास के साथ बातचीत के रास्ते खुला रखना चाहता है. इसलिए हमास का दोहा में दफ्तर किसी जंग के लिए नहीं बल्कि बातचीत के रास्ते खुले रखने के लिए स्थापित किए गए हैं. 


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