PM Modi likely To Host Putin: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 6 दिसंबर 2021 को मोदी दिल्ली में अपने रूसी समकक्ष राष्ट्रपती व्लादिमिर पुतिन का स्वागत कर सकते हैं. दरअसल, भारत-रूस ‘टू-प्लस-टू’मीटिंग रक्षा और विदेश मंत्रिस्तरीय संवाद का पहला संस्करण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक शिखर बैठक के साथ आयोजित किया जा सकता है, जिसके छह दिसंबर को होने की संभावना है. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को इसकी जानकारी दी.उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष मुख्य रूप से कई सामरिक मत्हत्व के कई मुद्दों के कारण शिखर सम्मेलन के समय ‘टू-प्लस-टू’मीटिंग आयोजित करने पर विचार कर रहे हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव और सर्गेई शोयगु के साथ बातचीत करने वाले हैं. आपको बताते चलें कि पिछले वर्ष भी यह बैठक वैश्विक महामारी कोविड़-19 के कारण नहीं हो सकी थी. 


जयशंकर और सिंह को नवंबर के अंतिम सप्ताह में मास्को की यात्रा करनी थी, लेकिन 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के कारण कार्यक्रम में संशोधन किया जा रहा है. दोनों मंत्रियों के इस महीने के अंत में या दिसंबर की शुरुआत में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के साथ भारत-अमेरिका‘टू-प्लस-टू’मीटिंग के लिए वाशिंगटन का दौरा करने की भी संभावना है. लेकिन, सूत्रों ने कहा कि अब इस बातचीत को अब अगले वर्ष जनवरी तक टाले जाने की खबर है. पुतिन के 6 दिसंबर को मोदी के साथ द्विपक्षीय शिखर वार्ता के लिए भारत आने की संभावना है. शिखर सम्मेलन से दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार तथा ऊर्जा के क्षेत्रों में संबंधों को और गति मिलने की उम्मीद है. 


क्या होती है दो देशों के बीच ‘टू-प्ल्स-टू’मीटिंग?  


‘टू-प्लस-टू’मीटिंग' एक शब्द है जिसे दो देशों के दो मंत्रालयों के प्रमुख समकक्षों के बीच होने वाली वार्ता के लिए अपनाया जाता है. इस मीटिंग का इस्तेमाल दो देशों के मंत्रालय जैसे, रक्षा और विदेश के बीच एक संवाद तंत्र की स्थापना के लिए किया जाता है. सीधे शब्दों में कहें तो,‘टू-प्लस-टू’मीटिंग में प्रत्येक देश के दो नियुक्त मंत्री दोनों देशों के रणनीतिक और सुरक्षा हितों पर चर्चा करने के लिए मिलेंगे. यह मीटिंग ज्यादातर दो देशों के रक्षा व विदेश मामलों के मध्य ही होती हैं. इन मीटिंग्स का उद्देश्य दोनों देशों के रक्षा और विदेश मामलों के प्रमुखों के बीच एक राजनयिक संबंध स्थापित करना है. 


 


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