India-Turkiye Relations: तुर्किये (तुर्की) में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए रविवार (14 मई) को मतदान हुआ है. मौजूदा राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) का मुकाबला विपक्षी नेता कमाल केलिकदारोग्लू (Kemal Kilicdaroglu) के साथ है. चुनाव के नतीजे जल्द घोषित किए जाएंगे. दो दशकों में ये पहली बार है जब एर्दोगन को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.


राष्ट्रपति एर्दोगन की आक्रामक विदेश नीति ने विदेशों में तुर्किये की प्रतिष्ठा बढ़ाई थी, लेकिन इसने अंतरराष्ट्रीय संघर्षों का समाधान खोजने में नाटो और पश्चिमी सहयोगियों के बीच तीखे मतभेद भी पैदा किए थे. ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि तुर्किये के चुनाव भारत के लिए क्या मायने रखते हैं. 2020 से 2022 तक तुर्किये में भारत के राजदूत रहे संजय पांडा ने द वायर के साथ बातचीत में इन चुनावों के महत्व और इसके नतीजों का भारत-तुर्किये संबंधों पर क्या असर पड़ेगा इस बारे में बात की. 


क्या भारत के साथ संबंधों में आएगा बदलाव?


कश्मीर पर अंकारा (तुर्किये की राजधानी) की स्थिति के कारण तुर्किये के साथ भारत के संबंध खराब हो गए थे. साथ ही तुर्किये के पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध रहे हैं. पूर्व भारतीय दूत के अनुसार, तुर्किये का विपक्ष पश्चिम के साथ भरोसे के कुछ मुद्दों को सुलझाएगा, लेकिन वह पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में अपने मूल मुद्दों को नहीं छोड़ेगा. इसी तरह, वह भारत के साथ संबंधों में नाटकीय बदलाव की उम्मीद नहीं करता है.


उन्होंने बताया कि कमाल केलिकदारोग्लू के साथ मेरी बातचीत एक औपचारिक कॉल थी. वह कम बोलने वाले आदमी हैं. 30 मिनट की बातचीत में औपचारिक आदान-प्रदान और खुशियों से परे जाना संभव नहीं है. मेरी राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ भी बैठकें हुईं. इस दौरान भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की उनकी इच्छा को महसूस किया जा सकता था. 

 

तुर्किये और पाकिस्तान बहुत करीब रहे


पूर्व राजदूत ने बताया कि तुर्की सरकार की विदेश नीति के विकल्पों में इस्लाम एक प्रमुख कारक है. नतीजा ये है कि मुस्लिम देशों में नेतृत्व की भूमिका हासिल करने की इच्छा का मतलब है कि उन्हें लगता है कि उन्हें कश्मीर को उठाने की जरूरत है. बेशक, ऐतिहासिक रूप से तुर्किये और पाकिस्तान बहुत करीब रहे हैं. अगर आप पिछले दशकों को देखें, तो हमारे संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं, लेकिन अगर आप इसे विशुद्ध रूप से द्विपक्षीय संदर्भ में देखें, तो तुर्किये के साथ हमारे संबंधों में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. 


तीसरे देश के चश्मे से एक-दूसरे को नहीं देखना चाहिए


उन्होंने कहा कि विडंबना ये है कि ये बाहरी कारक हैं जिन्होंने रिश्ते को बंधक बना लिया है. पाकिस्तान और कश्मीर प्रमुख अड़चन बने हुए हैं. इसलिए भारत-तुर्किये संबंध को अपनी योग्यता पर खड़ा होना चाहिए और किसी तीसरे देश के चश्मे से एक-दूसरे को नहीं देखना चाहिए. अगस्त 2019 के बाद दोनों देशों के रिश्तों में खटास आई थी जब राष्ट्रपति एर्दोगन ने यूएनजीए प्लेनरी में जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने के फैसले के बारे में गंभीर रूप से बात की. भारत को यह पसंद नहीं आया था. 


दोनों देश एक दूसरे के लिए क्यों जरूरी?


पांडा ने कहा कि तुर्किये भारत के साथ आर्थिक रूप से जुड़ना चाहता है. महामारी के बाद ये सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण था, विशेष रूप से चीन के प्रति बढ़ते अविश्वास के बाद. तुर्किये भारत की उपेक्षा नहीं कर सकता है. अब भारत के दृष्टिकोण से भी बताते हैं कि तुर्किये महत्वपूर्ण क्यों हैं. ऐसे बहुत से भारतीय हैं जो तुर्किये में दुकान स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि रहने और व्यापार करने की लागत पश्चिमी यूरोप की तुलना में यहां ज्यादा ठीक है. आप तुर्की में स्थित होने से भी लाभान्वित होते हैं. 


भारत ने भूकंप के लिए सहायता भेजी


पिछले साल, पीएम मोदी और राष्ट्रपति एर्दोगन ने उज्बेकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर अप्रत्याशित रूप से मुलाकात की. क्या अंकारा से ये संकेत था कि वे रिश्तों में सुधार चाहते हैं, इसपर उन्होंने कहा कि जब तुर्किये इस मुलाकात को चाहता था तो मुझे बहुत खुशी हुई कि प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत निमंत्रण स्वीकार कर लिया. ऐसी कई चीजें हैं जो हाल के महीनों में हुई हैं जो शुभ संकेत देती हैं. भारत ने भूकंप के लिए सहायता भेजी. संयोग से, दूसरी लहर के दौरान तुर्किये ने भी मदद भेजी थी. 


उन्होंने कहा कि चाहे कोई भी सत्ता में आए. अगर आप सोच रहे हैं कि अगर विपक्ष सत्ता में आता है तो भारत-तुर्किये संबंधों में नाटकीय बदलाव आएगा, मुझे इसकी उम्मीद नहीं है. मुझे लगता है कि तुर्किये जिस सुधार की ओर पहले से ही बढ़ रहा था, उसमें यह एक निरंतरता होगी. 


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