Desis In US: अमेरिका में भारतीय अधिक से अधिक सीखने और समृद्धि के लिए अपना सफर जारी रखे हुए हैं. अमेरिका में भारतीयों की औसत घरेलू आय अब 123,700 डॉलर है. ये संख्या राष्ट्रीय आंकड़े 63,922 डॉलर का करीब दोगुना है. 34 फीसद के राष्ट्रीय आंकड़े की तुलना में 79 फीसद भारतीयों की संख्या उल्लेखनीय रूप से ग्रेजुएट है. अमेरिकी जनगणना के ताजा डेटा में खुलासा हुआ है कि उन्होंने शिक्षा और समृद्धि पर बढ़त बनाए रखा है.


परदेस में देसी लोगों ने बनाया सफलता का रिकॉर्ड


रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीयों ने तरक्की का अद्भुत सफर तय किया है. उन्होंने अमेरिका में औसत घरेलू आमदनी लेवल पर दूसरे एशियाई जत्थों को भी मात दे दी है. अगले सबसे अच्छे समुदायों में ताइवानी और फिलिपीनियों रखा गया है. ताइवानियों की जहां औसत घरेलू आय 97,000 डॉलर है तो वहीं फिलिपीनियों का 95,000 डॉलर है. अमेरिका में चीनी लोगों का औसत घरेलू आय 85,229 डॉलर और जापानियों का 84,068 डॉलर है.  भारतीयों में भी सबसे कम गरीब लोग हैं, जिनकी औसत पारिवारिक आय केवल 14 फीसद है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 33 फीसद की तुलना में 40,000 डॉलर से कम है. 25 फीसद भारतीय परिवारों की आमदनी 8 फीसद के राष्ट्रीय आंकड़ों की तुलना में 200,000 डॉलर से ज्यादा है.


अमेरिकी जनगणना में सबसे ज्यादा अमीर और शिक्षित


जनगणना का डेटा दिखाता है कि वीजा पर भारतीय अप्रवासी और अमेरिका में पैदा हुए भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक की लगभग समान औसत पारिवारिक आय करीब 115,000 डॉलर है. लेकिन भारत के अमेरिकी नागरिकों की ज्यादा औसत आमदनी 140,000 डॉलर है. अमेरिका में लगभग 40 लाख भारतीयों में से करीब 16 लाख वीजा धारक हैं, 14 लाख अमेरिकी नागरिक हैं और दस लाख अमेरिकी मूल के नागरिक हैं. ये खाई दूसरे एशियाई समूहों के बीच ज्यादा बड़ी है. इससे पता चलता है कि भारत अमेरिका को अपना सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभावान भेजता है या भारत का कथित क्रीमी लेयर अन्य देशों के कम शिक्षित अप्रवासियों की तुलना में अमेरिका पलायन या प्रवास कर रहा है. 


न्यूयार्क टाइम्स के विश्लेषण में बताया गया है कि भारतीय मूल के लोगों का कंप्यूटर विज्ञान, वित्तीय प्रबंधन और चिकित्सा सहित कई उच्च-भुगतान वाले क्षेत्रों की नौकरी में महत्वपूर्ण दखल है. अमेरिका में नौ फीसद डॉक्टर भारतीय मूल के हैं, और उनमें से आधे से ज्यादा अप्रवासी हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में एशियाई के तौर पर पहचाने जानेवालों की संख्या पिछले तीन दशक में करीब तीन गुना हो गई है, और एशियाई अब देश के चार सबसे बड़े नस्लीय और जातीय समूहों में सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं. 


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