अमेरिका में एक पुलिसवाले ने अपने जूते के नीचे रखकर जॉर्ज फ्लायड को मार डाला. इस हत्याकांड के बाद अमेरिका में गोरे और कालों के बीच चल रहे नस्लभेद विरोधी आंदोलन ने एक बड़ा रूप ले लिया. आंच दुनिया को और भी देशों तक पहुंची और फिर इस आंदोलन में गोरों ने भी काले लोगों का साथ दिया. कई जगहों पर देश के प्रधानमंत्री के साथ ही पुलिस बल के मुखिया घुटनों पर बैठे नज़र आए और इस आंदोलन को समर्थन करते नज़र आए.


इस दौरान एक और घटना घटी. इस आंदोलन के दौरान दुनिया भर में किसी के लिए नायक तो किसी के लिए खलनायक बने लोगों की लगाई गई प्रतिमाओं को या तो ध्वस्त कर दिया गया या फिर उनके साथ तोड़फोड़ की गई. हर प्रतिमा के साथ की गई तोड़फोड़ के पीछे कुछ अलग-अलग तर्क भी थे, लेकिन एक तर्क सबके लिए दिया गया कि ये प्रतिमाएं या मूर्तियां गोरों के वर्चस्व का प्रतिनिधित्व करती हैं.


जेफरसन डेविस : 11 जून की रात को अमेरिका के वर्जीनिया में जेफरसन डेविस की प्रतिमा गिरा दी गई और इसे चौराहे पर फेंक दिया गया. जेफरसन डेविस की ये प्रतिमा वर्जीनिया के मशहूर मॉन्यूमेंट एवेन्यू रिचमॉन्ड में लगी थी. जेफरसन डेविस अमेरिका के उन 11 राज्यों के संघ के राष्ट्रपति थे, जो अमेरिका में दास प्रथा को कायम रखना चाहते थे.


क्रिस्टोफर कोलंबस : 10 जून को अमेरिका के रिचमॉन्ड में ही क्रिस्टोफर कोलंबस की प्रतिमा को गिराकर प्रदर्शनकारियों ने उसमें आग लगा दी और फिर उसे एक झील में फेंक दिया. बोस्टन में कोलंबस की प्रतिमा का सिर उड़ा दिया गया. मियामी में भी कोलंबस की प्रतिमा को तोड़ दिया गया. इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि वो अश्वेतों के सामूहिक नरसंहार का दोषी था और दास प्रथा का समर्थन करता था.


एडवर्ड कॉलस्टन : इंग्लैंड के ब्रिस्टल में एडवर्ड कॉलस्टन की मूर्ति को न सिर्फ तोड़ा गया, बल्कि उसे तोड़कर एक जेटी में फेंक दिया गया. और फिर गूगल मैप पर उसकी लोकेशन को पानी में दिखा दिया गया. एडवर्ड को अंग्रेजी इतिहास में दास प्रथा को कायम रखने वाले इंसानी तस्कर के रूप में जाना जाता है.


जेईबी स्टूअर्ट/स्टोनवॉल जैक्सन/रॉबर्ट ई. ली : ये तीनों ही अमेरिका के उन 11 राज्यों के संघ के जनरल थे, जो अमेरिका में दास प्रथा को कायम रखना चाहते थे. रिचमन्ड के मॉन्यूमेंट एवेन्यू में इनकी प्रतिमाएं लगी हैं. जून महीने के शुरुआती दिनों में इन प्रतिमाओं पर कालिख पोत दी गई थी.


सेसिल रोड्स : ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के बाहर लगी सेसिल रोड्स की प्रतिमा को प्रदर्शनकारियों ने वहां से हटा दिया. सेसिल रोड्स दक्षिण अफ्रीका में केप कॉलोनी के प्रधानमंत्री रहे थे. सोने और हीरो की खदानों में काम करने वाले अश्वेत मज़दूरों का सेसिल ने बेतहाशा शोषण किया था.


लियोपोल्ड सेकेंड : बेल्जियम के राजा रहे लियोपोल्ड सेकेंड की कम से कम छह मूर्तियों को प्रदर्शनकारियों ने हटा दिया है या फिर उनके साथ तोड़-फोड़ की है. लियोपोल्ड सेकेंड को कांगों में लाखों लोगों के नरसंहार के लिए जिम्मेदार माना जाता है.


रानी विक्टोरिया : इंग्लैंड के लीड्स के हाइड पार्क में लगी रानी विक्टोरिया की मूर्ति पर प्रदर्शनकारियों ने ग्रैफिटी पेन्टिंग कर दी. साथ ही साम्राज्यवादी और नस्लभेदी जैसे स्लोगन भी मूर्ति के चारों ओर लिख दिए. रानी विक्टोरिया इंग्लैंड के साम्राज्य की रानी थीं.


इनके अलावा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल की प्रतिमा के साथ भी तोड़-फोड़ की गई है. अमेरिकी सिनेटर और अखबार के संपादक रहे एडवर्ड कार्मेक की मूर्ति को भी तोड़ गया है. इसके अलावा उनकी एक मूर्ति को हटाया भी गया है, ताकि प्रदर्शनकारियों से उसे बचाया जा सके. स्कॉटलैंड के दासों के व्यापारी रहे रॉबर्ट मिलिगन की प्रतिमा को लंदन के म्यूजियम के बाहर से हटा दिया गया, ताकि प्रदर्शनकारी उसे न तोड़ सकें. और इन घटनाओं के बाद से अब दुनिया भर में इस बात पर बहस होने लगी है कि क्या इन प्रतिमाओं को लगाना सही फैसला है या नहीं.


जो लोग प्रतिमाओं के लगे देने के पक्ष में हैं, उनका कहना है कि इन प्रतिमाओं से इतिहास बोध होता है. लेकिन जो लोग इन प्रतिमाओं के विरोध में हैं, उनका कहना है ये प्रतिमाएं दासता की याद दिलाती हैं. ये प्रतिमाएं शोषण और जुल्म का प्रतीक हैं, लिहाजा इन्हें गिरा देना चाहिए. दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं. और इस तर्क के बीच प्रदर्शनकरी अपने हक और हुकूक के लिए पूरी दुनिया में लगातार लामबंद हो रहे हैं और जुल्म के प्रतीकों को धराशायी करते हुए जा रहे हैं.