लखनऊ: यूपी चुनाव में जीत के लिए प्रदेश की चारों बड़ी पार्टियां जी-जान लगाए हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए ये चुनाव बेहद अहम है.


पीएम मोदी के लिए क्यों अहम है ये चुनाव ?


पीएम मोदी ने एक रैली में चौथे दौर से पहले जाति-धर्म के नाम पर भेदभाव का मुद्दा उठाकर वो कार्ड भी खेल दिया जो उन्होंने इस चुनाव में अभी तक नहीं खेला था. इस चुनाव में मोदी के सामने यूपी में लोकसभा चुनाव वाली बड़ी जीत दोहराने की चुनौती है. 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को 80 में से 71 सीटें मिली थी.


ये चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि, नोटबंदी के बाद ये पहला बड़ा चुनाव है. अगर यूपी में सत्ता मिली तो बीजेपी के लिए राज्यसभा में भी सीटों का संकट कम होगा. जीत से पीएम मोदी का कद और बढ़ेगा और इससे 2019 के लोकसभा चुनाव की राह आसान होगी. हारे तो मोदी की लोकप्रियता पर सवाल उठेंगे.


यूपी में अगर बीजेपी को सत्ता मिली, तो एक बार साबित हो जाएगा कि पार्टी के लिए मोदी से बड़ा चेहरा कोई नहीं है.


सीएम अखिलेश के लिए क्यों अहम है ये चुनाव ?


यूपी के चुनाव में अगर सबसे बड़ी परीक्षा किसी की हो रही है तो वो हैं यूपी के सीएम अखिलेश यादव. इस बार का चुनाव अखिलेश के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है. अखिलेश जीते तो पार्टी पर पूरी तरह पकड़ बनेगी अगर हार गए तो पार्टी और परिवार में चल रहा विवाद और बढ़ेगा. यही नहीं इस चुनाव में अखिलेश के बड़े राजनीतिक फैसले का भी टेस्ट हो रहा है. चुनाव के नतीजे बताएंगे कि राहुल गांधी से दोस्ती का फैसला सही था या गलत.


राहुल गांधी के लिए क्यों अहम है ये चुनाव ?


कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी में कांग्रेस की खोई राजनीतिक जमीन तलाश रहे है. राहुल गांधी के लिए ये चुनाव करो या मरो का सवाल है. अगर राहुल अगर इस बार कोई करिश्मा नहीं कर पाते हैं तो उनकी आगे की राजनीति की राह मुश्किल हो जाएगी. राहुल के नेतृत्व पर भी सवाल उठेंगे.


मायावती के लिए ये चुनवा अहम क्यों ?


दलित और मुस्लिम वोट के बूते मायावती इस बार यूपी की सत्ता को हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. ये चुनाव मायावती और उनकी पार्टी का भविष्य तय करेगा. मायावती ने इस बार करीब 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है.


मायावती के लिए दोबारा यूपी की सत्ता हासिल करने का मौका है लेकिन चुनौती बड़ी है. इस चुनाव में मायावती के दलित-मुस्लिम फॉर्मूले की परीक्षा हो रही है. जो वोटर मायावती से दूर हो चुके हैं उन्हें फिर से साथ जोड़ने की चुनौती भी है. अगर मायावती की पार्टी जीतती है तो जाहिर है उनका कद बढ़ेगा, लेकिन अगर हार हुई तो पार्टी के भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे.