गोरखपुर: योगी आदित्यनाथ आज पूरे देश में चर्चा में हैं क्योंकि उन्हें उत्तर प्रदेश की कमान मिली है. योगी से उम्मीदें बहुत हैं जिनपर उन्हें खरा उतरना ही होगा. लेकिन योगी के लिए प्रशासन और प्रबंधन नया नहीं है. गोरखपुर में पिछले 20 सालों से मठ का साम्राज्य योगी ही देखते रहे हैं. आज हम आपको बता रहे हैं कि गोरखधाम मंदिर ट्रस्ट के स्कूल, कॉलेज और अस्पताल का पूरा सिस्टम कैसे काम करता है.


गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ का ऐसा है साम्राज्य


आपको बता दें कि गोरखधाम मंदिर के ट्रस्ट के अंतर्गत 28 स्कूल-कॉलेज हैं. जिसमें गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है. मंदिर ट्रस्ट के 3 अस्पताल हैं जिसमें गरीबों का मुफ्त में इलाज होता है. इसके साथ ही आसपास के लोगों के कल्याण के लिए काम स्कूल-अस्पतालों के सेवा केंद्र भी हैं.



ये तस्वीरें महज सात महीने पुरानी हैं तब योगी सिर्फ गोरखपुर के सांसद हुआ करते थे और अब प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. इंसेफलाइटिस से बीमार बच्चों को देखने आदित्यनाथ खुद अस्पताल जाया करते हैं. कुछ इसी तरह गोरखधाम मठ के संचालित सभी स्कूलों-कॉलेजों और सेवाकेंद्रों पर योगी खुद नजर रखते रहे हैं. वो समय निकाल के बेड टू बेड हर मरीज के पास जाना और ये जानकारी लेना कि वो मरीज कहां का है और किस रोग से ग्रसित है और भर्ती के बाद उसे सुधार हुआ है कि नहीं. वो मरीजों से सीधा संवाद रखते थे.


डॉक्टर की फीस सिर्फ तीस रुपये


योगी के साम्राज्य में गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखनाथ मंदिर में अस्पताल भी चलाया जाता है. गोरक्षनाथ हॉस्पिटल में डॉक्टर की फीस सिर्फ तीस रुपये है और भर्ती होने पर सिर्फ 250 रुपये लगते हैं. गोरक्षनाथ हॉस्पिटल के 12 एंबुलेंस हैं. अस्पताल में 350 बेड है और हर रोज तकरीबन 700-800 मरीज यहां आते हैं.


योगी की छवि भले कट्टर हिंदु नेता की रही हो लेकिन इस अस्पताल सभी धर्म, मजहब और जाति के लोगों का इलाज बिना किसी भेदभाव के होता है. और गरीबों का मुफ्त में इलाज होता है. गरीब और निरीह मरीजों को भी नि:शुल्क सुविधा दी जाती है. चाहे वो हॉस्पिटल खर्च हो, ऑपरेशन खर्च हो, बेड चार्ज हो, पैथोलॉजी चार्ज हो. दरिद्र नारायण कोष से हम मरीजों को नि:शुल्क दवा भी देते हैं.


10 रुपये में पेट भर खाना खा सकता है कोई भी मरीज


यहां कोई भी मरीज 10 रुपये में पेट भर खाना खा सकता है. इन अस्पतालों में शहर के सभी बड़े डॉक्टर श्रमदान के तौर पर अस्पताल आकर मरीज देखते हैं. 30 रुपये की ओपीडी फीस में 20 रुपये डॉक्टर को दिया जाता है और बाकी 10 रुपये अस्पताल ट्रस्ट अपने पास रखता है.. अस्पताल का ब्लड बैंक ऐसा है जहां पूरे पूर्वांचल के लिए जरूरत पड़ने पर खून मिल जाता है.


बाबा गोरखनाथ, महंत दिग्विजयनाथ, महाराणा प्रताप और महंत अवैद्यनाथ के नाम पर 28 शैक्षणिक संस्थाएं चलती हैं. जिसमें 19 स्कूल, 3 डिग्री कॉलेज, गोरखपुर में एक पॉलिटेक्निक, एक नर्सिंग कॉलेज और एक टेलरिंग कॉलेज है. गोरखधाम मंदिर ट्रस्ट का 3 अस्पताल भी है. दिग्विजय नाथ आयुर्वेदिक कॉलेज, गोरखनाथ अस्पताल और मां पाटेश्वरी सेवा आश्रम. गोरखपुर और महाराजगंज में मुफ्त इलाज के लिए दो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 5000 से ज्यादा धार्मिक संस्थाओं में ऐसा ही नियम है.



पैसे के अभाव में ना हो कोई शिक्षा से वंचित


महंत योगी आदित्यनाथ महाराजजी का ये स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी शिक्षण संस्था में या चिकित्सा संस्था में यदि कोई भी व्यक्ति आता है तो पैसे के अभाव में अगर उसका प्रवेश वंचित हुआ या पढ़ाई से वंचित हुआ तो इसकी जवाबदेही संस्था अध्यक्ष की होती है.


गोरखपुर शहर में महाराणा प्रताप के नाम पर इंटर कॉलेज, दिग्विजयनाथ के नाम पर पीजी कॉलेज हज़ारों छात्रों का सहारा बना हुआ है. इसके अलावा दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज में बीएड और महाराणा प्रताप पॉलिटेक्निक भी छात्रों को नौकरी दिलाने में मदद करता है. ट्रस्ट के 28 स्कूल-कॉलेजों में करीब 70 हज़ार छात्र पढ़ते हैं और 10 हज़ार शिक्षक और कर्मचारी काम करते हैं.


सफाई अभियान में लगते हैं सभी लोग


जिस दफ्तर और थानों में सफाई अभियान को लेकर इतना हल्ला मचा है पिछले 15 सालों से योगी ने वो सिस्टम मठ के स्कूल-कॉलेजों में लागू करवा रखा है. हर हफ्ते शनिवार को दोपहर 12 बजे से 1.10 बजे तक स्वच्छता का काम करना अनिवार्य है. इसमें ना सिर्फ छात्र बल्कि प्रिंसिपल और अध्यापकों की भी भूमिका होती है. यहां पर प्रिंसिपल, शिक्षक, कर्मचारी और विद्यार्थी हर शनिवार को 12 बजे से लेकर 1.10 तक, यानि एक घंटी बजती है, उस 1 घंटे 10 मिनट तक सफाई अभियान में सभी के सभी लोग लगते हैं.


आसपास के इलाकों में कॉलेजों की तरफ से सामाजिक काम का जिम्मा भी प्रिंसिपल के पास होता है. अगर कोई छात्र गरीब है तो उसे मुफ्त में पढ़ाया जाता है. बड़ी बात ये है कि फीस माफ नहीं की जाती बल्कि उसे पैसे दिए जाते हैं ताकि वो काउंटर पर बाकी बच्चों की तरह फीस भरे और इसकी जानकारी सिर्फ प्रिंसिपल के पास होती है.


कमजोर नहीं होना चाहिए विद्यार्थी का आत्मसम्मान


संस्था अध्यक्ष का काम ये होता है कि वो सीधे विद्यार्थी को पैसा देता है. विद्यार्थी वो पैसा अपने काउंटर पर जाकर अपने फीस से जमा करता है. इसके पीछे उनका उद्देश्य ये होता है कि उस विद्यार्थी को नैतिक रूप से, उस विद्यार्थी का आत्मसम्मान कहीं कमजोर नहीं होना चाहिए. ये केवल हम जानते हैं और जो संबंधित विद्यार्थी फीस पाता है वो जानता है. यह व्यवस्था लगभग सभी शिक्षण संस्थानों में लागू है.


खास बात ये है कि धार्मिक आयोजनों के अलावा गोरखनाथ पीठ की तरफ से गांवों को गोद लेकर उनका विकास करने से लेकर इलाज के लिए कैम्प लगाने समेत कई ऐसे काम हैं जो चर्चा में नहीं रहते लेकिन पिछले कई सालों से चल रहे हैं और लाखों लोगों को इससे फायदा होता आ रहा है.