Delhi Kanjhawala Accident Case: कंझावला कांड की क्रूरता ने देशभर को हिला कर रख दिया है. कार में सवार आरोपियों को कड़ी सजा की मांग हो रही है. मृतक अंजलि की मां अपनी बेटी की बेरहमी से मौत के बाद सदमे में है और इंसाफ की बात करते हुए पांचों आरोपियों के लिए फांसी की सजा की मांग कर रही है जिसे डेथ पेनल्टी कहते हैं. अब सवाल उठता है कि इन पांचों आरोपियों को क्या फांसी की सजा मिलेगी? कंझावला कांड को लेकर कानून क्या कहता है.


आइये इसे जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील विनीत कुमार सिंह से


सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि दिल्ली पुलिस ने कंझावला मामले में किन धाराओं में केस दर्ज किया है. दिल्ली पुलिस ने सुल्तानपुरी सड़क हादसे में गिरफ्तार किए गए 5 आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 279, 304, 304ए, 34 में केस दर्ज किया है. पांचों आरोपियों की पहचान दीपक खन्ना, अमित खन्ना, कृष्णन, मिथुन और  मनोज मित्तल के तौर पर हुई है. 


कंझावाला के आरोपियों का क्या होगा?


सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत कुमार सिंह का कंझावला कांड को लेकर यह मानना है कि रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस की शुरुआत बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य से हुई, जहां सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से मर्डर से जुड़े अपराधों के स्थापित नियम को ये दर्शाते हुए हटाया कि कब डेथ पेनल्टी जैसी बड़ी सजा देनी चाहिए. 4-1 के बहुमत से डेथ पेनल्टी का समर्थन हुआ और ये नियम स्थापित किया गया की डेथ पेनल्टी सिर्फ रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों तक सीमित रहेगी. हालांकि, इस नियम की सीमा को अस्पष्ट तरीके से छोड़ दिया गया.


बच्चन सिंह मामले के निर्णय का रेश्यो ये है कि,डेथ पेनल्टी केवल उन मामलों तक सीमित है जहां होमिसाइड का अपराध हो और उसकी सजा आजीवन कारावास या फिर डेथ पेनल्टी हो. इसका मतलब ये हुआ कि डेथ पेनल्टी सिर्फ रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों तक ही सीमित है जहां और कोई विकल्प बचता ही ना हो. 


कब माना जाता है रेयरेस्ट ऑफ रेयर?


वकील विनीत कुमार सिंह ने आगे बताया कि मच्छी सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब, में कोर्ट ने अपराध के रेयरेस्ट ऑफ रेयर होने के कुछ निर्धारित नियम बनाए. मच्छी सिंह मामले में कोर्ट ने निर्धारित मापदंड तय कर दिए कि कब अपराध रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में माना जाएगा.
नियमों की जांच पड़ताल निम्न रूप से होनी चाहिए:
होमिसाइड करने का तरीका- अगर मर्डर भयंकर, घृणित, रिवॉल्टिंग या अक्षम्य हो. 
दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम (CrPC)1955 से पूर्व भारत में मृत्युदंड नियम (Rule)था. जबकि आजीवन कारावास एक अपवाद था.
 1955 के संशोधन के बाद अदालतें अपने विवेक से मृत्युदंड या आजीवन कारावास देने के लिये स्वतंत्र हो गईं.
सीआरपीसी, 1973 की धारा 354 (3) के अनुसार न्यायालयों को उच्चतम/अधिकतम दंड देने के कारण को लिखित रूप से बताना आवश्यक है.
लेकिन स्थिति को अब उलट दिया गया है, जहां आजीवन कारावास नियम है जबकि जघन्यतम अपराध के लिये मृत्युदंड एक अपवाद है. 
ट्रायल कोर्ट द्वारा दिये गए मृत्युदंड पर तब तक अमल नहीं किया जा सकता जब तक कि इसकी पुष्टि उच्च न्यायालय से नहीं की गई हो.


रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलेजब हत्या बेहद क्रूर, शैतानी, विद्रोही, या निंदनीय तरीके से की जाती है और समुदाय में तीव्र और अत्यधिक आक्रोश पैदा हो. जब हत्या के पीछे का मकसद पूरी तरह से क्रूरता हो. 

डेथ पेनल्टी सजा को  निर्भया कांड से समझिए


16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में निर्भया से 6 लोगों ने बारी-बारी से गैंगरेप किया था. इसके बाद इन हैवानों का रेप से भी मन नहीं भरा तो निर्भया के प्राइवेट पार्ट में लोहे की रॉड डालकर उसकी अंतड़ियां बाहर निकाल दी. इसके बाद दरिदों ने निर्भया को नग्न अवस्था में चलती बस से नीचे फेंक दिया. वहां से गुजर रहे राहगीरों ने इसकी सूचना पुलिस को दी, जिसके बाद निर्भया और उसके दोस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया और मामले की जांच शुरू की गई.  गैंगरेप के बाद जिंदगी की जंग हार चुकी निर्भया ने लोगों ने दिल में इतना गुस्सा भर दिया कि देशभर में सड़कों पर उतकर लोगों ने खूब प्रदर्शन किया. मामले की गंभीरता के चलते सरकार पर भी चौतरफा दबाव बढ़ने लगा. आखिरकार कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सभी आरोपियों को दोषी पाया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. 


मृत्युदंड के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का मत


बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीटिगेटिंग और एग्रेवेटिंग परिस्थितियों (Mitigating and Aggravating Circumstances) को एक-दूसरे के साथ संतुलित किया जाना चाहिये और इस सिद्धांत की स्थापना हुई कि मृत्युदंड तब तक नहीं दिया जाना चाहिये जब तक आजीवन कारावास का विकल्प निर्विवाद रूप से (Unquestionably Foreclosed) ना हो. इसी तरह मोफिल खान बनाम झारखंड राज्य 2021 मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य का कर्तव्य है कि वो ये साबित करने के लिए सबूत हासिल करे कि आरोपी के सुधार और पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है.


कुल मिलाकर अब कंझावला कांड को भी लोग रेयरेस्ट ऑफ रेयर के तौर पर देख रहे हैं. हालांकि पुलिस ने गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है. लेकिन जिस तरीके की क्रूरता हुई है और अंजलि को 12 किलोमीटर तक घसीटा गया उसे देखकर रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में फांसी की सजा भी हो सकती है. कंझावला कांड के पांच कासूरवार हैं और इन सभी के लिए मृतक अंजलि की मां मौत की सजा यानी डेथ पेनल्टी की मांग कर रही हैं.


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