नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का ने आज से 25 दिन पहले एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत पेरिस जलवायु समझौते में सिर्फ इसलिए शामिल हुआ है ताकि वो विकसित देशों से अरबों रुपये विदेशी मदद के रुप में ले सके.


उस वक्त विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्रंप को जवाब दिया था कि हम अपनी परंपरा की वजह से पेरिस समझौते से जुड़े थे. अब जब पीएम मोदी और ट्रंप पहली बार मिलेंगे तो पेरिस जलवायु समझौते की वजह से बने दरार को पाटने की भी कोशिश होगी.


आखिर पेरिस जलवायु समझौता है क्या ?
इस समझौते के तहत धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है. तापमान में बढ़ोतरी को रोकने के लिए कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन पर रोक लगाना होगा. चीन और अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है.


पेरिस समझौते पर 2015 में अमेरिका, चीन सहित दुनिया के 191 देशों ने दस्तखत किए थे, जबकि भारत ने 2016 में दस्तखत किया था. यानी भारत कार्बन उत्सर्जन कम करने पर सहमत हो गया था लेकिन अमेरिका करीब डेढ़ साल बाद ही इस समझौते से बाहर निकल गया. इसके पीछे वजह थी कि उसे कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए अपनी कई फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ती.


पेरिस समझौते के मुताबिक अमेरिका के कोयला उत्पादन पर लगाम लग जाएगी जिसकी वजह से 2025 तक अमेरिका में 27 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी. जबकि भारत को समझौते में छूट मिली हुई है जिसकी वजह से 2020 तक इसका कोयला उत्पादन दोगुना हो जाएगा. मतलब भारत में इससे हजारों नौकरियां पैदा होंगी. इसीलिए अमेरिका ने अपना नुकसान करने की बजाए दुनिया को नुकसान में डालना बेहतर समझा और दोष भारत पर मढ़ डाला.