रूस और यूक्रेन के बीच करीब 22 दिन से जंग जारी है. एक तरफ दोनों देश बातचीत की टेबल पर आमने-सामने हैं. वहीं रूस की सेना यूक्रेन के शहरों पर बारूद बरसा रही है.  इस बीच यूक्रेन ने रूस की कार्रवाई रोकने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस से गुहार लगाई थी. आईसीजे ने अपना फैसला यूक्रेन के हक में देते हुए रूस को अपना हमला तुरंत रोकने को कहा है. कोर्ट ने अपना फैसला 13-2 के बहुमत से सुनाया. जिन 13 जजों ने रूस के खिलाफ वोट किया, उसमें भारत के जज दलवीर भंडारी भी शामिल थे. 


कौन हैं दलवीर भंडारी


1 अक्टूबर 1947 को जन्मे जस्टिस दलवीर भंडारी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज भी रह चुके हैं. इसके अलावा वह दिल्ली हाई कोर्ट के जज और बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस भी रहे हैं.  जस्टिस दलवीर भंडारी के पिता महावीर चंद्र भंडारी, दादा बीसी भंडारी राजस्थान बार का हिस्सा रह चुके हैं.  उन्होंने जोधपुर यूनिवर्सिटी से ह्यूमैनिटीज और लॉ में डिग्री हासिल की है. इसके बाद 1968 से लेकर 1970 तक राजस्थान हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की.


साल 1970 में उन्हें भारतीय कानून पर रिसर्च के लिए शिकागो यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित 6 सप्ताह की वर्कशॉप के लिए बुलाया गया था. इससे पहले 2012 में भी वह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज रह चुके हैं.  इसके बाद वह 20 नवंबर 2017 को वह दोबारा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज नियुक्त किए गए. उन्हें 193 में से 183 वोट मिले थे. ये उनका दूसरा कार्यकाल है. उन्होंने ब्रिटेन के क्रिस्फोफर ग्रीनवुड को मात दी थी. वह इस पद पर 9 साल तक रहेंगे.


वह चर्चा में इसलिए भी हैं क्योंकि भारत ने अब तक यूक्रेन-रूस युद्ध में तटस्थता बरकरार रखी हुई है. लेकिन यूक्रेन के मसले पर दलवीर भंडारी का रुख भारत सरकार से उलटा नजर आया. इससे पहले भारत ने यूएन में भी रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग से खुद को अलग कर लिया था. 


 संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को रूस को यूक्रेन में युद्ध रोकने का आदेश दिया. हालांकि कई लोगों को संदेह है कि रूस इसका पालन करेगा. दो सप्ताह पहले यूक्रेन ने इस अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से हस्तक्षेप का अनुरोध किया था और दलील दी थी कि रूस ने उस पर नरसंहार का झूठा आरोप लगाकर 1948 की नरसंहार संधि का उल्लंघन किया व उसकी (नरसंहार के आरोप की) आड़ में उस पर हमला कर दिया.


अदालत के अध्यक्ष अमेरिकी न्यायाधीश जोन ई डोनोगुई ने कहा, 'रूसी संघ ने 24 फरवरी, 2022 को जो सैन्य अभियान शुरू किया था, उसे वह तत्काल बंद करे.' मजो देश इस अदालत के आदेश को मानने से मना कर देते हैं , उनका मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भेजा जाता है जहां रूस को वीटो का अधिकार प्राप्त है.


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