Climate Change Superbug: सुपरबग की वजह से हर साल दुनियाभर में 13 लोगों की मौतें होती हैं. ये आंकड़ा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैलुएशन ने 204 देशों के 471 मिलियन रिकॉर्ड्स की स्टडी के बाद सामने आया था. वहीं, मेडिकल जनरल लांसेट की एक स्टडी के अनुसार, सुपरबग पर पारंपरिक एंटीबायोटिक और एंटी-फंगल दवाएं बेअसर साबित होती जी रही हैं. 


संभव है कि किसी बीमार शख्स पर एंटोबायोटिक्स कोई काम ही न करे. ऐसा तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या पैरासाइट्स उन्हें मारने के लिए बनाई गई दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं. इसके चलते रोजमर्रा में होने वाले इंफेक्शन के भी घातक होने की संभावना बन जाते हैं. दरअसल, क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन ने 'सुपरबग्स' को और खतरनाक बना दिया है. 


क्या होता है सुपरबग?


सुपरबग को एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट बैक्टीरिया भी कह जाता है. जब बैक्टीरिया समय के साथ खुद में बदलाव लाते हुए एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं तो उन पर दवाओं का असर नहीं होता है. इस स्थिति में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंट (AMR) पैदा होता है. जिसकी वजह से संक्रमण यानी इंफेक्शन का इलाज मुश्किल हो जाता है. जलवायु परिवर्तन ने इन सुपरबग के उद्भव और प्रसार को और बढ़ा दिया है.


सुपरबग के खतरे से बचने का क्या है तरीका?


पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में अनुसंधान निदेशक और न्यूनतम एएमआर मिशन लीड ब्रैनवेन मॉर्गन ने कहा कि हमारी नई रिपोर्ट इन चुनौतियों के आधुनिक समाधानों का आह्वान करती है. इनमें एकीकृत निगरानी और सेंसिंग सिस्टम, पॉइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक्स, नए टीके, और बेहतर खेतों, अस्पतालों और अन्य अधिक जोखिम वाले स्थानों के 'डिजाइन के जरिये रोकथाम' शामिल हैं. 


ज्यादा इस्तेमाल और दुरुपयोग बढ़ा रहा खतरा


एंटीबायोटिक दवाओं के चार मुख्य प्रकार हैं: एंटीबायोटिक्स स्टैफिलोकोकस ऑरियस (स्टैफ या गोल्डन स्टैफ) और ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस (जो स्ट्रेप थ्रोट का कारण बनता है) जैसे बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण का इलाज करते हैं. एंटीवायरल इन्फ्लुएंजा और सार्स-सीओवी-2 जैसे वायरस के कारण होने वाले संक्रमण का इलाज करते हैं (जो कोविड का कारण बनता है). एंटीफंगल टिनिया और थ्रश जैसे फंगस के कारण होने वाले संक्रमण का इलाज करते हैं. एंटीपैरासिटिक्स गियार्डिया और टोक्सोप्लाज्मा जैसे परजीवियों के कारण होने वाले संक्रमण का इलाज करते हैं.


इन एंटीबायोटिक दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल और दुरुपोग बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया में दवा के खिलाफ प्रतिरोध पैदा कर देता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सुपरबग को शीर्ष दस वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक घोषित किया है. 


क्लाइमेट चेंज कैसे सुपरबग को बना रहा खतरनाक?


ब्रैनवेन मॉर्गन ने कहा कि स्टडी में यह पाया गया है कि ज्यादा गर्मी इंसानों और जानवरों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध को विकास, संक्रमण और प्रसार को बढ़ावा देता है. बाढ़ जैसी घटनाओं के बाद साफ-सफाई का बुनियादी ढांचा चरमरा जाता है, पहले से ही भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में भीड़ बढ़ जाती है और सीवेज (जो एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीनों के लिए एक सिद्ध भंडार है) के प्रवाह और अतिप्रवाह के माध्यम से एंटीबायोटिक प्रतिरोध का प्रसार होता है. बारिश में बढ़ोत्तरी के चलते खेतों और उद्योगों से अपवाह में भी वृद्धि होती है और इसका नतीजा यह होता है कि जल में प्रदूषकों का स्तर बढ़ जाता है.


यह पाया गया है कि पर्यावरण प्रदूषक एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीन के उत्पादन को बढ़ावा देने और जीवाणु उत्परिवर्तन को बढ़ाने में मददगार होते हैं. अब होगा यह कि पोषक तत्वों से भरपूर कृषि अपवाह जल प्रणालियों में शैवाल के पनपने की संभावना को बढ़ाएगा और उच्च जीवाणु सांद्रता एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीन के हस्तांतरण के अवसरों को बढ़ावा देगी. सूखे की स्थिति में भी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, क्योंकि पानी की कमी से स्वच्छता कम हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग एक ही जल स्रोत को साझा करते हैं या कृषि उद्देश्यों के लिए दूषित पानी का उपयोग करते हैं.


भीड़भाड़ और पानी साझा करने से जलजनित रोगों के महामारी बनने की संभावना बढ़ सकती है, क्योंकि दस्त और उल्टी जैसे सामान्य लक्षण स्वच्छता में और कमी लाते हैं और पानी के संदूषण को बढ़ाते हैं. कुपोषण, भीड़भाड़ और अपर्याप्त स्वच्छता सभी बच्चों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी आंतों के संक्रमण के जोखिम को बढ़ाते हैं. इससे निश्चित रूप से हैजे का प्रकोप और बढ़ेगा; चिंता का विषय तब होगा अगर एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ता है, क्योंकि यह वर्तमान दवाओं को प्रभावी होने से रोकेगा.


जैसे-जैसे वैश्विक आबादी बढ़ती जा रही है, मनुष्यों और जानवरों के लिए साझा पर्यावरण तेजी से आपस में गड्डमड्ड हो रहा है. इससे पर्यावरण, मनुष्यों और जानवरों के बीच रोगजनक संचरण और प्रतिरोध की संभावना बढ़ जाती है. यदि जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो इसका लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से दुनिया भर के निम्न और मध्यम आय वाले देशों में.


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