CPCB Advocate On Firecrackers: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में खतरनाक प्रदूषण फैलाने वाले परंपरागत पटाखों को जलाने पर पाबंदी लगाई हुई है. इस बीच बाजार में ग्रीन पटाखे मिल रहे हैं हालांकि दिल्ली-एनसीआर समेत कई राज्यों में सरकार ने किसी भी तरह के पटाखे जलाने पर रोक लगा रखी है. कुछ राज्यों में ग्रीन पटाखे जलाने को लेकर भी टाइम टेबल है. ऐसे में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के वकील विजय पंजवानी ने एबीपी न्यूज से बात की और बताया कि ग्रीन पटाखे क्या हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इसका आदेश क्यों दिया? देश में इलेक्ट्रॉनिक पटाखों का भविष्य क्या है? 


सुप्रीम कोर्ट ने इसका आदेश क्यों दिया?


सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के वकील विजय पंजवानी ने एबीपी न्यूज के साथ बातचीत में बताया कि शुरू में पटाखों पर बैन की बात बाल श्रम के चलते हुई. बाद में प्रदूषण का मामला आगे आ गया. उन्होंने कहा कि बेरियम, एल्यूमिनियम, सल्फर जैसी अलग-अलग केमिकल रोशनी, रंग और आवाज़ के लिए डाली जाती हैं. जिनसे काफी प्रदूषण होता है. सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण का ध्यान रखते हैं पटाखों में बेरियम, सल्फर और दूसरे खतरनाक रसायनों की मात्रा कम करने को कहा. जिसका मैन्यूफैक्चर्स कंपनियों के वकीलों ने विरोध भी किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ ग्रीन क्रैकर्स ही बनाने का विकल्प दिया. CPCB के वकील विजय पंजवानी ने बताया कि नीरी नाम की संस्था ने फॉर्मूला बनाया ताकि पटाखों में आवाज तो हो लेकिन प्रदूषण काफी कम हो. हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि पुअर लेवल में पटाखे जला सकते हैं. लेकिन प्रदूषण का लेवल इससे भी खराब है तो पटाखों पर बैन लगाना जरुरी है.



ग्रीन पटाखे हैं क्या?


CPCB के वकील विजय पंजवानी ने बताया कि ये परंपरागत पटाखों से प्रदूषण के मामले में बिल्कुल अलग होते हैं. इसमें बेरियम, एल्युमिनियम और सल्फर की बहुत ही कम मात्रा का इस्तेमाल होता है. खासकर सुप्रीम कोर्ट ने बेरियम को लेकर दिशा निर्देश दिए. ग्रीन पटाखों में केमिकल के कम उपयोग से प्रदूषण की संभावना बहुत ही कम हो जाती है. ग्रीन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर (PM) का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद प्रदूषण न के बराबर हो. ऐसे पटाखों की आवाज 125 डेसिबल से अधिक नहीं हो सकती.


ग्रीन पटाखों की पहचान कैसे?


कोर्ट के आदेश के मुताबिक ग्रीन पटाखों के पैकेट पर ग्रीन लेबल लगाना अनिवार्य है. इसके साथ ही QR कोड डालना भी जरुरी कर दिया गया है. संबंधित अधिकारी इसी QR की जांच कर पहचान करते हैं. QR कोड मोबाइल या फिर कंप्यूटर के जरिए जांच की जाती है. अगर नकली लेबल या कोड हो तो प्रशासन उसे ज़ब्त करता है. जांच में लैब टेस्ट भी शामिल है. जिसमें पटाखों से निकलने वाली आवाज़ से पता लगता है कि ये ग्रीन क्रैकर्स हैं या नहीं. ग्रीन पटाखों की आवाज़ 125 डेसिबल से अधिक नहीं हो सकती. CPCB के वकील विजय पंजवानी ने बताया कि पिछले साल नकली QR कोड लगाकर पटाखे बेचे जा रहे थे. उन्होंने कहा कि आदेश का पालन कराना भी प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.


दिल्ली में पटाखों पर सरकार का आदेश


CPCB के वकील विजय पंजवानी ने कहा कि जहां तक दिल्ली सरकार की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने पटाखों पर बैन का आदेश दे दिया था. दिल्ली सरकार ने पहले ही पटाखों की बिक्री और खरीदने पर पाबंदी लगा दी है. ये आदेश ग्रीन पटाखों को लेकर भी है. वकील विजय पंजवानी ने कहा कि करीब 2 करोड़ की आबादी वाले शहर दिल्ली में ऑर्डर को रेग्यूलेट करना काफी मुश्किल काम है. अवैध रूप से पटाखे बिक्री के लिए लाए जाते हैं और करीब 5000 करोड़ रुपए दिल्ली वासी फूंक देते हैं.


इलेक्टॉनिक पटाखों पर क्या बोले वकील विजय पंजवानी


CPCB के वकील विजय पंजवानी ने भविष्य में पटाखों के डिजायन को लेकर भी बातचीत की. वकील विजय पंजवानी ने कहा कि भविष्य तो इलेक्टॉनिक पटाखों का है जो बिना धुंआ के रोशनी और आवाज करे. उन्होंने कहा कि ऐसे पटाखों से प्रदूषण भी कम होगा और उत्सव भी बचा रहेगा.


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