Uniform Civil Code Provision: उत्तराखंड सरकार समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक को मंजूरी देने के लिए विधानसभा का एक विशेष सत्र आयोजित करेगी. यूसीसी को विधानसभा से मंजूरी मिलने से पहले लॉ कमीशन ने उत्तराखंड की यूनिफॉर्म सिविल कोड कमेटी से विचार विमर्श किया है. वर्तमान में गोवा एकमात्र राज्य है, जहां एक नागरिक संहिता लागू है. इसे पुर्तगाली शासन के दौरान पेश किया गया था.


सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय पैनल ने उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने के लिए मसौदा रिपोर्ट तैयार की है.


केवल ज्यूडीशियल तलाक होगा मान्य
इस बीच एबीपी न्यूज को यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल के प्रावधानों की जानकारी मिली है. बिल के प्रावधानों के मुताबिक, सभी तरह के तलाक खत्म कर दिए जाएंगे और केवल ज्यूडीशियल तलाक ही मान्य होगा. इसके अलावा तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन पर भी रोक लगेगी.


लिव इन रिलेशनशिप करना होगा घोषित
प्रावधान के मुताबिक अब लिव इन रिलेशनशिप को घोषित करना होगा. लिव इन रिलेशनशिप को घोषित न करने पर सजा का प्रावधान किया गया है. इसकी सूचना लड़के और लड़की के मां-बाप को भी दी जाएगी. इसके अलावा इसमें बहुविवाह, निकाह हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का प्रावधान भी है.


शादी का रजिस्ट्रेशन होगा अनिवार्य
बिल में लड़कियों की शादी की आयु बढ़ाने का भी प्रावधान रखा गया है, ताकि ताकि वे शादी से से पहले ग्रेजुएट हो सकें. शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा. बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नही मिलेगा. ग्राम स्तर पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी.


तलाक के लिए पति-पत्नी दोनों को बराबर के अधिकार
बिल के प्रावधान के मुताबिक पति-पत्नी दोनों को तलाक का समान आधार होगा. तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्री के लिए भी लागू होगा. फिलहाल पर्सनल लॉ के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग अलग ग्राउंड हैं. इसके अलावा पॉलीगैमी या बहुविवाह पर भी रोक लगेगी. 


उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर का हिस्सा 
बिल में दिए गए प्रावधानों के अनुसार उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर का हिस्सा मिलेगा. अभी तक पर्सनल लॉ के मुताबिक लड़के का शेयर लड़की से अधिक होता था. नौकरीशुदा कर रहे बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में बेटे के माता-पिता के भरण पोषण की भी व्यवस्था होगा. 


अगर पत्नी पुर्नविवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले कंपेंशेसन में बेटे के माता पिता का भी हिस्सा होगा. वहीं, अगर पत्नी की मौत हो जाती है और उसके माता-पिता का कोई सहारा न है, तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी पति की होगी.


अडोप्शन की प्रक्रिया होगी आसान
बिल में पेश किए गए प्रावधान के मुताबिक सभी को मिलेगा अडोप्शन का अधिकार मिलेगा. इसके लिए अडोप्शन की प्रक्रिया आसान की जाएगी. इतना ही वहीं बच्चे के अनाथ होने की सूरत में गार्जियनशिप की प्रक्रिया को भी आसान किया जाएगा.  पति-पत्नी के झगड़े में बच्चों की कस्टडी उनके ग्रैंड पैरेंट्स को दी जा सकती है. 


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