उत्तर प्रदेश सरकार ने बांदा जिला जेल, नैनी सेंट्रल जेल (प्रयागराज) और बरेली जिला जेल के अधीक्षकों को निलंबित कर दिया है. इन सभी जेल अधीक्षकों पर हाई प्रोफाइल मुजरिमों को स्पेशल ट्रीटमेंट देने का आरोप है. यूपी सरकार ने कुछ दिन पहले ही चित्रकूट जेल से जेल अधीक्षक अशोक सागर, जेलर संतोष कुमार, डिप्टी जेलर पीयूष पांडे समेत 8 जेलकर्मियों को सस्पेंड किया था. इन सभी पर हाई प्रोफाइल मुजरिमों को स्पेशल ट्रीटमेंट देने का आरोप था.


स्पेशल ट्रीटमेंट लेने की लिस्ट में कई बड़े कुख्यात अपराधियों के नाम सामने आए हैं. इस लिस्ट में अतीक अहमद का भाई अशरफ अहमद से लेकर पूर्व बाहुबली विधायक माफिया के बेटे विधायक अब्बास अंसारी का नाम शामिल है. 


फिलहाल बांदा जेल है पुलिस के निशाने पर


बांदा जेल में अभी खुफिया जांच चल रही है. डीआईजी जेल की रिपोर्ट के आधार पर बांदा के जेल अधीक्षक अविनाश गौतम सस्पेंड कर दिए गए हैं. यह कार्रवाई जेल के अंदर काम न करने, लापरवाही और अनुशासनहीनता के मामले में की गई है. 


बता दें कि पूर्वांचल का माफिया मुख्तार अंसारी इस समय बांदा जेल में बंद है. मुख्तार अंसारी के खिलाफ भी अभी कार्रवाई जारी है. रिपोर्ट्स ये दावा करती हैं कि माफिया मुख्तार अंसारी की बैरक से कांटे जैसी प्रतिबंधित चीज भी बरामद हुई है.


कई बाहुबलियों का ठिकाना रह चुका है बांदा जेल


बांदा जेल कई खतरनाक अपराधियों जैसे अतीक अहमद, संगीत सोम, दाऊद इब्राहिम गैंग से जुड़े महाराष्ट्र निवासी सुक्का पाचा, सिंहराज भाटी, अनिल दुजाना बनारस का शार्प शूटर आलम सिंह, गाजीपुर का गोरा राय, झांसी का शिशुपाल यादव, और प्रयागराज का कौशलेंद्र त्रिपाठी , ग्रेटर नोएडा का जयराज भाटी का ठिकाना रह चुका है. बांदा जेल के बारे में एक पुरानी कहावत है कि बांदा जेल में आने के बाद बड़े-बड़े बाहूबली भी अपनी गुंडागर्दी भूल जाते हैं. 


बांदा जेल में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर हिंदुस्तान टाइम्स को ये बताया कि इस जेल में कैद रहने के दौरान बड़े-बड़े 'बाहुबली' दूसरी जेल में स्थानांतरित होने के लिए खुद को अस्पताल में भर्ती कराने या बीमार होने की तरकीब अपना चुके हैं. 


माफिया से राजनेता बने मुख्तार अंसारी ने साल 2018 में सीने में दर्द की शिकायत की थी, और खुद को एसजीपीजीआई, लखनऊ में भर्ती कराने की बात कही थी. मुख्तार अंसारी अभी भी बांदा जेल में ही बंद है. 


इन बड़े बाहुबलियों को है बांदा जेल से नफरत


सिर्फ अंसारी ही नहीं, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, अनिल दुजाना, पुरुषोत्तम नरेश देवेदी, अतीक अहमद और सुंदर भाटी जैसे लोग जेल से नफरत करते हैं.


बांदा जेल से क्यों डरते हैं कुख्यात अपराधी


हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक जेल के अधिकारियों की मानें तो 'बाहुबलियों' को जेल में कई कुख्यात डकैतों से सबसे ज्यादा डर लगता है. बांदा जेल में राधे यादव, गोप्पा यादव, तोहिनी उर्फ तहसीलदार, दीपक पटेल, नरेश पटेल और ज्ञान सिंह जैसे खतरनाक डकैत बंद हैं. ये डकैत इन बाहुबलियों को हावी नहीं देते और अक्सर उन पर हमला करते हैं. 


सुविधाओं में सुधार किए बिना जेल को डिवीजनल जेल स्तर पर अपग्रेड किया गया है. इस जेल में कैदियों को पीने के पानी के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है. जेल की क्षमता 600 है लेकिन इसमें करीब 1,400 कैदी बंद हैं.


मुलायम सिंह यादव ने की थी बांदा जेल से राजा भैया की रिहाई की घोषणा


साल 2002 में जब कुंडा से निर्दलीय विधायक राजा भैया को तत्कालीन बसपा सरकार ने बांदा जेल में डाल दिया था, तब उनके समर्थकों ने उन्हें दूसरी जेल में स्थानांतरित करने के लिए राज्य सरकार के समक्ष एक याचिका दायर की थी. 


2003 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने बांदा जाकर एक जनसभा में राजा भैया की रिहाई की घोषणा की. 2012 में जब राजा भैया को अखिलेश यादव सरकार में जेल मंत्री बनाया गया तो उन्होंने विधानसभा में बहस के दौरान बांदा जेल में अपने कठिन दिनों को याद किया था.


अनिल दुजाना और सुंदर भाटी भी खुद को बांदा जेल दूसरे जेल शिफ्ट करा चुके हैं


वेस्ट यूपी के कुख्यात गैंगस्टर अनिल दुजाना और सुंदर भाटी ने भी अपने राजनीतिक कनेक्शन का इस्तेमाल कर खुद को बांदा जेल से सेंट्रल यूपी की दूसरी जेल में शिफ्ट कराया था. बसपा के पूर्व विधायक पुरुषोत्तम नरेश देवेदी बांदा के रहने वाले थे, लेकिन बलात्कार के एक मामले में गिरफ्तार होने के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें दूसरी जेल में स्थानांतरित करने के लिए याचिका दायर की. 


अतीक अहमद को भी बांदा जेल से डर लगता है


राजू पाल और उमेश पाल मामले में साबरमती जेल जा चुका अतीक अहमद भी बांदा जेल से स्थानांतरण की मांग कर चुका है. डॉन से नेता बना अतीक अहमद ने लगातार पांच बार इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से जीत हासिल की है. 


बांदा जेल यानी कालापानी की सजा


बांदा जेल साल 1860 में ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी थी.  बांदा जेल को अक्सर "काला पानी" (ब्रिटिश शासन के दौरान अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल का दूसरा नाम) के रूप में जाना जाता है . चंबल घाटी के कई खूंखार अपराधियों, डॉन और डकैतों को इस जेल में रखा गया है.


बांदा जेल में सात लाख रुपये के इनामी डकैत ददुआ और बलखड़िया भी बंद हुए थे. ये दोनों उन अपराधियों में से थे जो चंबल और पाथा के वन क्षेत्रों में आतंक मचाने वाले गिरोह में शामिल थे. 


बांदा में क्यों नहीं दी जाती है कैदियों को स्पेशल ट्रीटमेंट


बांदा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का हिस्सा है. विकास के मानकों पर बुंदेलखंड पिछड़े क्षेत्रों में से एक है. बांदा जेल में क्षमता से कहीं ज्यादा कैदियों के होने से अधिकारियों के लिए हाई-प्रोफाइल कैदियों का प्रबंधन करना मुश्किल हो जाता है. 


नैनी, बरेली और जेल के आला अधिकारी भी निलंबित 


नैनी जेल के वरिष्ठ जेल निरीक्षक शशिकांत सिंह, बरेली सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक राजीव शुक्ला को निलंबित किया जा चुका है. नैनी जेल के वरिष्ठ जेल निरीक्षक शशिकांत सिंह पर अतीक अहमद और उसके भाई और पूर्व विधायक खालिद अजीम उर्फ अशरफ को मदद पहुंचाने का आरोप है.


28 मार्च को माफिया अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा होने के बाद नैनी जेल लाया गया. उस समय नैनी के वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने माफिया अतीक को सलाखों के पीछे डालने में जानबूझ कर देरी की. अब जेल निरीक्षक शशिकांत सिंह के निलंबन का ये भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है. 


वहीं जेल निरीक्षक शशिकांत सिंह जेल में बंद अशरफ की सारी डिमांड पूरी कर रहे थे. साथ ही अशरफ के पसंद का खाना से लेकर उसकी पालतू बिल्ली तक को रखने की इजाजत दे दी गयी थी.  अशरफ के कहने पर बिल्ली के लिए दूध, ब्रेड भी मंगाया जाता था. जेल की कैंटीन में अशरफ की पसंद का खाना ही बनाया जाता था. 


बरेली सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक राजीव शुक्ला पर ये आरोप है कि वो अशरफ की मुलाकात अतीक गैंग से करवा रहे थे. वहीं डिप्टी जेलर दुर्गेश प्रताप समेत 5 अधिकारी को पहले ही निलंबित किया गया है. अशरफ फिलहाल बरेली जेल में बंद है. उमेश पाल हत्या की पूरी प्लानिंग बरेली सेंट्रल जेल में ही हुई थी. 


उमेश पाल मामले में अशरफ का रोल क्या है


उमेश पाल हत्याकांड के मामले में अतीक अहमद का भाई अशरफ पर भी केस दर्ज हुआ था. मामले में अतीक को साबरमती जेल और अशरफ को बरेली जेल भेजा गया था. अशरफ पर 50 से ज्यादा मामले चल रहे हैं.  


24 फरवरी को उमेश पाल की हत्या हुई . हत्याकांड के समय अतीक का भाई अशरफ बरेली जेल में बंद था. आरोप है कि उमेश पाल की हत्या के 13 दिन पहले बरेली सेंट्रल जेल में 9 शूटर अशरफ से मिलने आए थे.


इस दिन अतीक का बेटा असद, विजय उर्फ उस्मान चौधरी, गुड्‌डू मुस्लिम, गुलाम और अन्य पांच आरोपियों ने फर्जी ID से अशरफ से मुलाकात की. बरेली सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक राजीव शुक्ला ने इन सभी की मुलाकात अशरफ करवाई थी.


जेल में सुरक्षित हूं ,बाहर खतरा है- अशरफ


अशरफ ने बरेली जेल जाते समय मीडिया से ये कहा था कि उसकी जान का खतरा जेल के अंदर नहीं जेल के बाहर है. अशरफ ने ये दावा किया था कि एक जेल अधिकारी ने मुझसे कहा है कि अपहरण मामले में तो तुम बच गए लेकिन जेल से बाहर निकालकर तुम्हारी हत्या कर दी जाएगी.'


बता दें कि अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ पर उमेश पाल के अपहरण का आरोप है.  राजू पाल हत्याकांड मामले में उमेश पाल इकलौते गवाह थे. अहमद और अशरफ पर उमेश पाल की हत्या की साजिश में शामिल होने का भी आरोप है.


बसपा विधायक राजू पाल की 25 जनवरी 2005 को हत्या हुई थी. हत्या अतीक गैंग ने ही कराई थी. दोनों भाइयों ने जेल में बंद होने के बावजूद इसी साल राजू पाल मामले के चश्मदीद गवाह उमेश पाल की हत्या करवा दी थी. 


इस मामले में उमेश पाल की पत्नी जया पाल ने अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ, पत्नी शाइस्ता परवीन, 2 बेटों, अतीक के साथी गुड्डू मुस्लिम, गुलाम मोहम्मद और 9 अन्य साथियों पर केस दर्ज कराया था. 


अतीक अहमद के बहनोई अखलाक का नाम भी इस अपराध में सामने आ चुका है. अखलाक पर शूटरों को शरण देने और अपराध करने के बाद उन्हें भागने में मदद करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. फिलहाल उसे 14 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया है. अखलाक उत्तर प्रदेश के मेरठ के नौचंदी इलाके का रहने वाला है.