Supreme Court On ED CBI: कांग्रेस (Congress) सहित 14 राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट से बुधवार (5 अप्रैल) को बड़ा झटका लगा. SC ने केंद्रीय जांच एजेंसियों (CBI-ED) के मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. याचिका में जांच एजेंसियों (Central Probe Agency) को लेकर भविष्य के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई थी.
विपक्षी दलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि 2013-14 से 2021-22 तक सीबीआई (CBI) और ईडी (ED) के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि ईडी की ओर से 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है, जिनमें से 95 प्रतिशत विपक्षी दलों से हैं. सीबीआई की ओर से 124 जांचों में से 95 प्रतिशत से अधिक विपक्षी दलों से हैं. लेकिन लोकतंत्र क्या है? जब नेता ही इन मामलों के लिए लड़ रहे हैं. केवल इन वर्गों के लोगों के लिए ट्रिपल टेस्ट के अधीन एक अदालत हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इसपर सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि क्या हम इन आंकड़ों की वजह से कह सकते हैं कि कोई जांच या कोई मुकदमा नहीं होना चाहिए? कोर्ट का कहना है कि अंततः एक राजनीतिक नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है और नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं. सीजेआई ने कहा कि आप कहते हैं कि ईडी अपराध या संदेह की गंभीरता के बावजूद गिरफ्तार नहीं कर सकता. हम ऐसा कैसे कर सकते हैं. अपराध की गंभीरता को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है?
"सामान्य दिशानिर्देश देना खतरनाक होगा"
सिंघवी ने कहा कि पक्षकार नहीं चाहते कि याचिका से भारत में कोई लंबित मामला प्रभावित हो और वे मौजूदा जांच में हस्तक्षेप करने के लिए यहां नहीं हैं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष मामले के तथ्यों के बिना सामान्य दिशानिर्देश निर्धारित करना संभव नहीं है. जब आपके पास व्यक्तिगत आपराधिक मामला हो तो हमारे पास वापस आएं. मामले के तथ्यों से संबंध रखे बिना सामान्य दिशानिर्देश देना खतरनाक होगा.
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