UNEP Report on Global Warming: भारत में दुन‍िया की आबादी का करीब 18 फीसदी ह‍िस्‍सा है जबक‍ि अमेर‍िका में 4 फीसदी है लेक‍िन ग्लोबल वार्मिंग के मामले में उसका योगदान 17 फीसदी दर्ज क‍िया गया है. इसमें मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन का प्रभाव भी शामिल है. अच्‍छी बात यह है क‍ि भारत ही हिस्‍सेदारी एत‍िहास‍िक रूप से मात्र 5 फीसदी र‍िकॉर्ड की गई. यूएनईपी की रि‍पोर्ट में भारत के प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को विश्व औसत से काफी नीचे दर्ज क‍िया है. 


एचटी की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की ओर से सोमवार (20 नवंबर) को उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2023 को "ब्रोकन रिकॉर्ड" शीर्षक से जारी क‍िया गया है. रिपोर्ट में भारत का हवाला देते हुए विश्व स्तर पर वर्तमान और ऐतिहासिक उत्सर्जन में अत्यधिक असमानता होने का ज‍िक्र क‍िया है. दुन‍िया के तमाम देशों में प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions) काफी अलग होता है. 


रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में 6.5 टन CO2 समकक्ष (tCO2e) यानी ऐतिहासिक उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग का योगदान व‍िश्‍व औसत के मुकाबले दोगुना से भी अधिक हैं, जबकि भारत में इसका योगदान आधे से भी कम यानी स‍िर्फ 5 फीसदी है. रिपोर्ट में यह भी स्‍पष्‍ट क‍िया है क‍ि विश्व की 50% निचली आबादी का कुल उत्सर्जन में केवल 12 फीसदी का योगदान है. 


र‍िपोर्ट में दावा क‍िया गया है क‍ि विश्व स्तर पर, सबसे अधिक आय वाली 10% आबादी उत्सर्जन के लगभग आधे (48%) के लिए जिम्मेदार है. इस ग्रुप के दो-तिहाई लोग विकसित देशों में रहते हैं. र‍िपोर्ट में यह भी साफ क‍िया गया है क‍ि कहा उपभोग-आधारित उत्सर्जन में असमानता देशों के बीच और भीतर भी पाई जाती है. 


ग्लोबल वार्मिंग में चीन, अमेरिका व यूरोपीय संघ का सबसे ज्‍यादा ह‍िस्सेदारी 


यूएनईपी ने बताया है कि ऐतिहासिक उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान समान रूप से देशों और ग्रुप ऑफ कंट्रीज में काफी अलग होता है. करीब 80 फीसदी ऐतिहासिक समग्र जीवाश्म और लैंड यूज CO2 उत्सर्जन जी20 (G20) देशों से आया है जिसमें सबसे बड़ा योगदान चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ का शाम‍िल है जबकि सबसे कम विकसित देशों का स‍िर्फ 4% योगदान ही रहा.  


अमे‍र‍िका का ग्लोबल वार्मिंग में 17 फीसदी योगदान
 
र‍िपोर्ट में भारत और अमेर‍िका की जनसंख्‍या और उसकी ग्‍लोबल वार्म‍िंग में योगदान की तुलना भी की गई है. इसमें बताया गया है क‍ि वर्तमान विश्‍व जनसंख्या में अमेरिका की भागीदारी मात्र 4 फीसदी है लेकिन 1850 से 2021 तक ग्लोबल वार्मिंग में इसका योगदान 17 फीसदी दर्ज क‍िया गया है. इसमें मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन का प्रभाव भी शामिल है. इसके उलट, भारत में दुनिया की आबादी का 18 फीसदी भाग है लेकिन वार्मिंग में इसका योगदान मात्र 5 पर्सेंट है. 
 
स‍िर्फ 9 देशों ने पेश क‍िए नए एनडीसी 


इस बीच देखा जाए तो सीओपी (COP) यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए दुनिया का सबसे बड़ा मंच है, जिसका गठन 1994 में हुआ था. इसमें पेर‍िस समझौते के तहत 193 देशों के नेताओं और रिसर्चर्स के बीच जलवायु परिवर्तन पर समझौते की बात होती है लेक‍िन र‍िपोर्ट की माने तो प‍िछले साल 27वीं सीओपी के बाद से केवल 9 देशों की तरफ से ही नए या अपडेटेड एनडीसी पेश क‍िए गए है. समझौत के बाद से अपडेटेड एनडीसी की कुल संख्या 149 हुई है. 


GHG उत्‍सर्जन कम करने के लक्ष्य निर्धारित करती है एनडीसी 


एनडीसी से मतलब जहां देश जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु प्रभावों को अपनाने के लिए लक्ष्य निर्धारित करते हैं. योजनाएं परिभाषित करती हैं कि लक्ष्यों तक कैसे पहुंचा जाए. वहीं, प्रगति की मॉन‍िटर और वेर‍िफाई करने को ड‍िटेल स‍िस्‍टम भी है ताकि यह सब ट्रैक पर बनी रहे.


मेक्सिको को छोड़ G20 सदस्यों ने निर्धारित किए नेट-शून्य लक्ष्य 


गत 25 सितंबर 2023 तक वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन के लगभग 81% को कवर करने वाली 97 पार्टियों ने नेट-शून्य प्रतिज्ञा या कानून (27 पार्टियों) अपनाया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि मेक्सिको को छोड़कर सभी G20 सदस्यों ने नेट-शून्य लक्ष्य निर्धारित किए हैं लेकिन कुल मिलाकर नेट शून्य लक्ष्य आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं करते हैं. 


सभी देशों से कम-कार्बन विकास करने का आह्वान  


रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि G20 सदस्यों में से कोई भी वर्तमान में अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को पूरा करने के अनुरूप गति से उत्सर्जन में कमी नहीं ला रहा है. 
इसमें सभी देशों से अर्थव्यवस्था-व्यापी, कम-कार्बन विकास करने का आह्वान भी किया गया है. 


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