नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवा को अपने ऐतिहासिक एक बार तीन तलाक को ‘अवैध और असंवैधानिक’ करार दिया. इसके बाद देश की कुछ मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने बुधवार को कहा कि मुस्लिम धर्मगुरू मस्जिदों में नमाज खासकर जुमे की नमाज के दौरान लोगों को इस अदालती फैसले के बारे में जागरुक करें.


राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता शमीना शफीक ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया है जिसका सभी लोग स्वागत करते हैं. अब इसके क्रियान्वयन को लेकर जागरूकता पैदा करनी होगी. जागरूकता पैदा करने की जिम्मेदारी समाज, धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों की है.’’


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की नाकामी की वजह से तीन तलाक का मामला पहुंचा अदालत: शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी


शमीना ने कहा, ‘‘मैं उलेमाओं से कहना चाहूंगी कि वे इस फैसले को लेकर मस्जिदों और खासकर जुमे की नमाज के कुतबे (धार्मिक संबोधन) के समय लोगों को जागरुक करें. इससे समुदाय में काफी व्यापक स्तर पर संदेश का प्रसार होगा.’’ कॉलमनिस्ट और मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ता नाइश हसन ने कहा, ‘‘फैसले को लेकर जागरुकता पैदा करने की जिम्मेदारी हम सबकी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमा लोगों को मेरी सलाह है कि अब वे इस इस फैसले को पूरी तरह स्वीकार करें और महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए जागरूकता फैलाएं और लोगों को इस बारे में बताएं.’’


वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता तसनीम कौसर ने कहा, ‘‘यह फैसला बिल्कुल वाजिब है और महिलाओं के हक में है. इसका सही ढंग से क्रियान्वयन एक चुनौती है. इसके क्रियान्वयन के लिए पूरे समाज को साथ होना होगा. महिलाओं को इसमें बढ़चढ़कर योगदान देना होगा.’’


गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिमों में एक बार में तीन तलाक  यानि तलाक-ए-बिदत: की प्रथा ‘अमान्य’, ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है. शीर्ष अदालत ने 3:2 के मत से सुनाए गए फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया.