उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि महज संदेह के आधार पर कदाचार स्थापित नहीं किया जा सकता. इसके साथ ही इसने राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) का फैसला निरस्त करते हुए बर्खास्त न्यायिक अधिकारी को नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया.


राजस्थान उच्च न्यायालय ने घूसखोरी के मामले में एक अभियुक्त को जमानत मंजूर करने के लिए एक न्यायिक अधिकारी (Judicial officer) को नौकरी से बर्खास्त कर दिया था. न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने अभय जैन नामक न्यायिक अधिकारी की अपील स्वीकार कर ली.


न्यायिक अधिकारी पर जमानत याचिका को मंजूर करने का था आरोप


जैन ने उस याचिकाकर्ता की जमानत याचिका मंजूर कर ली थी, जिसे कुछ दिन पहले उच्च न्यायालय से निराशा हाथ लगी थी. इसके बाद उन्हें ‘कदाचार’ के आरोप में 2016 में बर्खास्त कर दिया गया था. पीठ की ओर से न्यायमूर्ति सरन द्वारा लिखे गये 70 पन्नों के फैसले में कहा गया है कि हम मानते हैं कि याचिकाकर्ता इस मामले में लापरवाही बरतने का दोषी हो सकता है कि उसने केस फाइल को ठीक से नहीं पढ़ा था और उच्च न्यायालय के नोटिस का संज्ञान नहीं लिया था, जो उस फाइल में मौजूद था. लेकिन लापरवाही को कदाचार नहीं कहा जा सकता है.


50 फीसदी वेतन दिये जाने का आदेश


शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता न्यायिक अधिकारी को सेवा की निरंतरता और वरिष्ठता सहित सभी लाभ दिये जाने का निर्देश दिया, लेकिन कहा कि न्यायिक अधिकारी को 50 प्रतिशत वेतन का ही भुगतान किया जाएगा. न्यायालय ने इस राशि के भुगतान के लिए चार माह का समय दिया है.


पीठ ने कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि केवल संदेह के आधार पर ‘कदाचार’स्थापित नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने कहा कि इसके लिए मौखिक या दस्तावेजी तथ्य मौजूद होना चाहिए, लेकिन मौजूदा मामले में इस आवश्यकता को पूरा नहीं किया जा सका है.


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