नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट सेना में स्थाई कमीशन पाने से वंचित रह गई महिला अधिकारियों के मसले पर आज बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा है कि सेना में सेवारत सभी महिला अधिकारियों (जो 14 साल से ज्यादा सेवा दे चुकी हैं) को स्थायी कमीशन मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्थायी कमीशन पाने वाली महिलाओं को सिर्फ प्रशासनिक पद देने की नीति गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीनों में आदेश लागू करने को कहा है.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को काबिलियत के हिसाब से कमांड पद भी मिले. ये आदेश दस विभागों को लिए हैं. कॉम्बेट (सीधे युद्ध) वाले विंग के लिए नहीं नहीं है. साल 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट से लड़ाई जीतने के बावजूद यह महिलाएं सरकार के बेपरवाह रवैये के चलते अपना हक हासिल नहीं कर सकी हैं.


क्या है मामला


12 मार्च 2010 को हाई कोर्ट ने शार्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था. रक्षा मंत्रालय इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई. सुनवाई के दौरान कोर्ट का रवैया महिला अधिकारियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहा.


आखिरकार, हाई कोर्ट के फैसले के 9 साल बाद सरकार ने फरवरी 2019 में 10 विभागों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनाई. लेकिन यह कह दिया कि इसका लाभ मार्च 2019 के बाद से सेवा में आने वाली महिला अधिकारियों को ही मिलेगा. इस तरह वह महिलाएं स्थाई कमीशन पाने से वंचित रह गईं जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी.


कमान का भी है सवाल


महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नई नीति में एक और बड़ी कमी है उनको सिर्फ स्टाफ अपॉइंटमेंट में पद देना. यानी सिर्फ प्रशासनिक और व्यवस्था से जुड़े पद देना. इस तरह स्थायी कमीशन मिलने के बावजूद महिलाएं क्राइटेरिया अपॉइंटमेंट और कमांड अपॉइंटमेंट नहीं पा सकेंगी. कमांड अपॉइंटमेंट का मतलब होता है किसी विभाग का नेतृत्व करने वाला पद. जबकि, क्राइटेरिया अपॉइंटमेंट वैसे पद होते हैं जहां सीधे कमांड तो नहीं मिलती, लेकिन बहुत सी ऐसी जिम्मेदारियां मिलती हैं जिनमें नेतृत्व क्षमता साबित कर पाने का मौका मिलता है.


कमान पर सरकार का पक्ष


सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सेना में ज़्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले जवान महिला अधिकारियों से कमांड लेने को लेकर बहुत सहज नजर नहीं आते. महिलाओं की शारीरिक स्थिति, परिवारिक दायित्व जैसी बहुत सी बातें उन्हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर मानसिकता में बदलाव किया जाए और इच्छाशक्ति हो तो बहुत कुछ कर पाना संभव है.


स्थायी कमीशन पर सरकार कुछ झुकी


सुनवाई के दौरान रक्षा मंत्रालय ने मार्च 2019 के बाद सेना में शामिल होने वाली महिलाओं को ही स्थायी कमीशन देने की शर्त को ढीला किया। कहा- पहले से नौकरी कर रही जो महिलाएं अब 14 साल की सेवा पूरी करेंगी, उनको स्थायी कमीशन दिया जाएगा. लेकिन मार्च 2019 से पहले सेवा में 14 साल पूरे कर चुकी महिला अधिकारियों को लाभ नहीं मिलेगा. इन महिलाओं के लिए सरकार ने कहा कि उन्हें 6 साल का सेवा विस्तार देकर 20 साल तक काम करने का मौका देने का प्रावधान बनाया गया है. उन्हें भले स्थायी कमीशन न मिल रहा हो, लेकिन बकायदा स्थायी अधिकारियों की तरह पेंशन और बाकी सुविधाएं दी जाती हैं.


महिला अधिकारियों की दलील


महिला अधिकारियों ने बिना स्थायी कमीशन 20 साल तक सेवा और उसके बाद तमाम लाभ देने की व्यवस्था को खैरात बताया है. उनका कहना है कि उन सब महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलना चाहिए जिन्होंने 2010 में हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद सेवा में 14 साल पूरे किए. भले ही वह अभी तक सेवा में हों या रिटायर हो चुकी हों. अगर सरकार ने नीति बनाने में देरी कि तो उसका खामियाजा वह महिलाएं क्यों उठाएं जिन्होंने हक की लड़ाई लड़ी.


महिला अधिकारियों ने यह भी कहा है कि पुरुष सैनिकों को महिलाओं से कमांड लेने में दिक्कत होने का दावा गलत है. सेना में लोग अधिकारी का प्रोफेशनल स्तर देखते हैं. सैनिकों को महिलाओं से कमांड लेने में कोई दिक्कत नहीं होगी. महिलाओं का शारीरिक रूप से कमज़ोर होना, पारिवारिक ज़िम्मेदारी, बच्चों को जन्म देना जैसे तर्कों के आधार पर भी उन्हें कमांड पद के अयोग्य कहना गलत है.


महिलाओं को लड़ाई में भेजने का मामला नहीं


फरवरी 2019 में सरकार ने सेना के इन 10 विभागों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनाई है- जज एडवोकेट जनरल, आर्मी एजुकेशन कोर, सिग्नल, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स-मेकेनिकल इंजीनियरिंग, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस और इंटेलिजेंस.


इनमें से कोई भी सीधे लड़ाई में हिस्सा लेने वाला विभाग नहीं है। सरकार की तरफ से दलील रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, "कॉम्बैट विंग यानी सीधी लड़ाई वाली यूनिट में महिला अधिकारियों को तैनात कर पाना संभव नहीं है. दुर्गम इलाकों में तैनाती के लिहाज से शारीरिक क्षमता का उच्चतम स्तर पर होना जरूरी है. सीधी लड़ाई के दौरान एक अधिकारी आगे बढ़कर अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करता है. अगर कभी कोई महिला शत्रु देश की तरफ से युद्ध बंदी बना ली जाए, तो उसकी स्थिति क्या होगी?"


महिला अधिकारियों ने वैसे तो इसके जवाब में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा समेत 22 देशों की लिस्ट सौंपी है, जहां महिलाओं को कॉम्बैट विंग में भेजने की नीति है. लेकिन महिला अधिकारियों की लड़ाई दो बातों पर केंद्रित थी:-


* मार्च 2019 से पहले सेवा मे 14 साल पूरी करने वाली महिलाओं को भी स्थायी कमीशन मिले
* जिन 10 विभागों में स्थायी कमीशन दिए जाने हैं, वहां सिर्फ स्टाफ अपॉइंटमेंट न मिले। कमांड यानी नेतृत्व का भी मौका मिले.