प्लास्टिक की वॉटर बोटल के गुणवत्ता मानकों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है. याचिकाकर्ता का दावा कि भारत में बोतलबंद पानी के मानक बहुत पुराने हैं. कंपनियों को यूरो 2 मानक अपनाने के लिए कहा जाना चाहिए.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि गांवों और पिछड़ों हुए क्षेत्रों में जाकर देखें कि वहां पानी के लिए लोगों को कैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जब वह इन इलाकों में जाएंगे और ऐसी चीजें देखेंगे तो उन्हें जमीनी स्तर की हकीकत का पता चलेगा. सीजेआई ने याचिकाकर्ता से पूछा कि मौजूदा हालातों को देखते हुए क्या उन्हें लगता है कि यूएस गाइडलाइंस यहां लागू की जा सकती हैं. जमीनी हकीकत को ध्यान में रखें.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार (18 दिसंबर, 2025) को मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि जमीनी हकीकत को समझना चाहिए. भारत में अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे गाइडलाइंस जारी नहीं किए जा सकते हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह सक्षम ऑथोरिटी को आवेदन दें.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता गांवों में पानी की आपूर्ति का मुद्दा उठाते तो हम समझ सकते थे क्योंकि वहां इसकी कोई सुविधा नहीं है, लेकिन पानी की बोतल पर क्या विवरण होना चाहिए, ये तो एक अनावश्यक कानूनी बहस है.
सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप ऑस्ट्रेलिया और सऊदी अरब की गाइडलाइंस का हवाला दे रहे हैं. ये तो बस हवाई बातें हैं. उन्होंने कहा कि जब महात्मा गांधी भारत आए थे तो वह ग्रामीण इलाकों में गए थे. जब आप गरीबी क्षेत्र में जाएंगे और देखेंगे कि कैसे वे लोग पानी लाते हैं तब आपको असलियत का पता चलेगा. सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह प्रशासन को यह सुझाव दें, उन्हें यकीन है कि वहां इन पर विचार किया जाएगा.
(निपुण सहगल के इनपुट के साथ)
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