कोरोना के इलाज के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति, मरीजों को हॉस्पिटल में भर्ती करने की नीति और टीकाकरण अभियान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत आदेश जारी किया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को राज्यों में ऑक्सीजन का आपातकालीन भंडार बनाने का निर्देश दिया है ताकि किसी भी स्थिति में मरीजों के लिए खतरा न हो. कोर्ट ने राज्यों को वैक्सीन महंगी कीमत पर मिलने पर भी सवाल उठाए हैं.


 


4 दिन में ऑक्सीजन भंडार बने


 


मामले पर खुद संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को लगभग 4 घंटे की सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रखा था. अब कोर्ट ने 64 पन्ने का आदेश अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है. इसमें केंद्र सरकार से यह कहा गया है कि वह 4 दिन के भीतर राज्यों में ऑक्सीजन का आपातकालीन भंडार तैयार करे. कोर्ट ने कहा है कि अगर भविष्य में कभी भी ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई बाधा आती है, तो इस आपातकालीन भंडार का इस्तेमाल कर मरीजों की जान बचाई जा सकेगी.


 


वैक्सीन नीति पर सवाल


शुक्रवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजधानी दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतों पर गहरी चिंता जताई थी. आज जारी किए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह 3 मई की आधी रात तक दिल्ली में ऑक्सीजन की आपूर्ति में आ रही सभी दिक्कतों को दूर कर दे. कोर्ट ने कोविड वैक्सीन की अलग-अलग कीमत पर भी सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा है केंद्र सरकार ने 45 साल से अधिक उम्र के आयु के लोगों को मुफ्त वैक्सीन की सुविधा दी. लेकिन अब 18 से 44 साल की आयु के लोगों के टीकाकरण के का मसला राज्यों और वैक्सीन निर्माता कंपनियों के बीच छोड़ दिया गया है. ऐसे में हर राज्य अपनी वित्तीय स्थिति और नीति के हिसाब से वैक्सीन को लेकर अलग-अलग घोषणा कर रहा है. कोविड टीकाकरण जीवन के मौलिक अधिकार यानी संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़ा है। इससे जुड़ी नीति में समानता होनी चाहिए.


 


कोर्ट ने पूछा है कि शुरू में दो वैक्सीन कंपनियों को 1500 और 3000 करोड रुपए केंद्र सरकार की तरफ से दिए गए. यह वैक्सीन विकसित करने की कुल लागत का कितना बड़ा हिस्सा था? केंद्र सरकार को जो कम दर पर वैक्सीन उपलब्ध कराई गई उसकी वजह क्या सरकार का यह अनुदान था? अगर ऐसा है तो फिर राज्यों को भी रियायती दर पर वैक्सीन क्यों नहीं दी जा रही है? इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से आवश्यक दवाओं के उत्पादन और आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए भी कहा है.


 


दवा की कालाबाज़ारी पर कार्रवाई हो


कोर्ट ने यह भी कहा है कि रेमडेसिविर की अधिकतम कीमत केंद्र ने तय की है. इसके बावजूद इस दवा की कालाबाजारी सामने आ रही है. यह बहुत महंगी कीमत पर लोगों को मिल रही है. डॉक्टरों की तरफ से लिखी जा रही दूसरी दवाइयां जैसे फेविपिरावीर, टोसिलीजूमैब आदि की तो अधिकतम कीमत भी सरकार ने तय नहीं की है. सरकार को अपने कानूनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इन दवाओं की भी अधिकतम कीमत तय करनी चाहिए. कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह सुझाव भी दिया है कि वह एक विशेष टीम बनाकर जरूरी दवाओं और ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने वाले लोगों की पहचान करे और उन पर उचित कार्रवाई करे.


 


इलाज के लिए आवास प्रमाण न मांगें हॉस्पिटल


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भाट की बेंच ने केंद्र सरकार से यह भी कहा है कि वह 2 हफ्ते में कोरोना के मरीजों को हॉस्पिटल में भर्ती करने को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनाए. कोर्ट ने कहा है कि जब तक यह नीति नहीं बन जाती, तब तक किसी भी राज्य के हस्पताल में मरीज को आवास प्रमाण पत्र या दूसरे दस्तावेज के आधार पर इलाज या जीवनरक्षक दवा देने से मना न किया जाए.


 


सोशल मीडिया पर लिखने के लिए उत्पीड़न न हो


सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि कोई भी राज्य सोशल मीडिया या इंटरनेट पर कोरोना से जुड़ी अपनी तकलीफ लिख रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई न करे. अगर पहले से परेशान लोगों पर मुकदमा दर्ज कर उनका उत्पीड़न किया गया, तो सुप्रीम कोर्ट ऐसा करने वाले अधिकारी को दंडित करेगा. कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी देश के सभी जिलाधिकारियों को भी देने का निर्देश दिया है.


 


लॉकडाउन में गरीबों का रखा जाए ध्यान


मामले की अगली सुनवाई 10 मई को होगी. कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से कहा है कि वह कोरोना वायरस का विस्तार रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी दे. अगर वह पूर्ण लॉकडाउन लगाना चाहते हैं तो उससे प्रभावित होने वाले गरीब तबके को राहत देने के लिए भी ज़रूरी उपाय करें.


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