सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के मुकदमे की बहाली के लिए तीसरे पक्ष की ओर से दायर की गई विलंब क्षमा याचिका पर अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी ऐसे शख्स को याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसका कार्यवाही से कोई संबंध ही नहीं है. महाराष्ट्र की ट्रायल कोर्ट ने तीसरे पक्ष को विलंब क्षमा याचिका दाखिल करने की अनुमति दी थी, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.


सुप्रीम कोर्ट विजय लक्ष्मण (मृतक) बनाम पी एंड संस निर्माण प्राइवेट लिमिटेड के मामले की सुनवाई कर रहा था. जस्टिस भूषण रामाकृष्ण और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि अगर मामले में ट्रायल कोर्ट के दृष्टिकोण को अनुमति दी गई तो कोई भी टॉम, डिक और हैरी टाइप का आदमी जिसका मामले से लेना-देना नहीं है वो भी मामले की बहाली के लिए विलंब क्षमा याचिका दायर करेगा.


सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि कैसे कोई अजनबी दो साल बाद ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता और औचित्य पर सवाल उठा रहा है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अनुमति बिल्कुल नहीं दी जा सकती, भले ही वह उसी तरह के किसी मामले में पक्षकार ही क्यों न हो.


पीठ ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुनवाई कर रहा था. राज्य सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि तीसरे पक्ष के आवेदन पर विचार नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह कार्यवाही से संबंधित नहीं था, जबकि 2019 से ही ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक लंबित आवेदन पहले से ही प्रक्रिया में है.


मुकुल रोहतगी के तर्क पर प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम ने कहा कि आवेदक ने 2009 में ही बिक्री के लिए नॉन-रजिस्टर्ड समेझौते के कारण केस में पक्षकार होने का हक हासिल कर लिया था. इस वजह से उनकी ओर से देरी के लिए क्षमा का आवेदन दायर करना उचित है क्योंकि मूल वादी मामले में आगे नहीं बढ़ रहे थे.


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