India Independence Day Speech: पीवी नरसिम्हा राव देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने जो गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र से थे. नरसिम्हा राव ने 21 जून 1991 को जिस वक्त देश की कमान संभाली उस समय उनके सामने बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना एक बड़ी चुनौती थी. राव के कार्यकाल के दौरान एक तरफ जहां साम्प्रदायिक और जातीय राजनीति चरम पर थी तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस भारी अंतर्कलह की राजनीति से जूझ रही थी.


जिस वक्त 1993 में साम्प्रदायिक राजनीति देश में फैली हुई थी और उसके बाद मुंबई में हुए सीरियल विस्फोट और दंगे ने उनके सामने एक नई मुश्किलें खड़ी कर दी. इसके बावजूद पीवी नरसिम्हा राव ने कहा कि भारत की सुधरती अर्थव्यवस्था को बमों से बर्बाद नहीं होने देंगे. राव ने कहा था- “ऐसे बड़े देश में क्या हम अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने के लिए दो या तीन बमों की अनुमति देंगे? हम ऐसा होने की इजाजत नहीं देंगे.”




नरसिम्हा राव ने खोले उदारीकरण के रास्ते


नरसिम्हा राव देश के पांच साल तक प्रधानमंत्री रहे. राजीव गांधी की हत्या के बाद देश के प्रधानमंत्री बने नरसिम्हा राव ने देश को उदारीकरण का तोहफा दिया. चंद्रशेखर की सरकार बनने के समय देश की माली हालत काफी खराब हो चुकी थी. यह वो दौर था जब विमान में सोना रखकर गिरवी के लिए भेजा गया था. ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने थी. उस वक्त मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाकर उन्होंने अर्थव्यवस्था के मुहाने पर बेहतरीन काम किया था. उनकी कैबिनेट में शरद पवार रक्षा मंत्री बने और अर्जुन सिंह को मानव संसाधन विकास मंत्रालय मिला.


नरसिम्हा राव उस साल लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ाे थे. बाद में वह आंध्र प्रदेश की नांदयाल सीट से उपचुनाव लड़े और जीते. उन्होंने लाल किले से अपने भाषण में कहा था- "बड़ी प्रगति है जहां ढाई हजार करोड़ 1991 में आज 60 हजार करोड़ की विदेश मुद्रा हमारे यहां पर है, जिससे हर किसी चीज को मंगाने में कोई परेशानी और कठिनाई नहीं है." इससे उस वक्त की मुश्किल घड़ी का अंदाजा लगाया जा सकता है.   


नरसिम्हा राव के पहले भाषण में उदारीकरण की चर्चा


नरसिम्हा राव के पहले भाषण के दौरान उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था कहां खड़ी थी इस पर बात की. उन्होंने बताया कि क्यों उदारीकरण का रास्ता उन्हें अपनाना पड़ा. लेकिन बाकी के भाषणों में उदारीकरण के साथ अगले कार्यकाल का एक तरह से ब्लू प्रिंट रखा था. नरसिम्हा राव ने खुले बाजार की वकालत करते हुए लाल किले से देश को यह बताते रहे कि उनके पिटारे में देश के अलग-अलग वर्गों के लिए योजनाएं हैं.




मंदिर-मस्जिद विवाद में उलझे नरसिम्हा राव


उदारीकरण के रास्ते खोलने वाले नरसिम्हा राव के सामने एक ऐसा गंभीर संकट आया कि वह मंदिर-मस्जिद के मामलों में उलझ गए. उनकी सरकार के दौरान ही 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढ़ांचा गिरा दिया गया और इसके बाद 1993 की शुरुआत में ही मंबई जल उठा. मुंबई में सीरियल विस्फोट ने देश को झकझोर कर रख दिया. दूसरी तरफ सीमा पर पाकिस्तान का उत्पात भी लगातार जारी था. इसके बाद जब 15 अगस्त 1993 में लाल किले पर भाषण देने के लिए चढ़े तो उनके चेहरे पर बाबरी ढांचा गिराए जाने की कसत साफतौर पर मससूस की जा सकती थी. नरसिम्हा राव ने कहा कि समाज का ताना-बाना नहीं टूटने दिया जाएगा.




लाल किले से नरसिम्हा राव ने जितनी बार पाकिस्तान को चेतावनी दी उतनी बार किसी और पीएम ने नहीं दी होगी. लेकिन दो साल के बाद ही नरसिम्हा राव का करिश्म खत्म होने लगा था. उनके ऊपर शेयर दलाल हर्षद मेहता ने एक करोड़ रूपये दलाली देने का सनसनीखेज आरोप लगाया. लेकिन, राजनीति के चतुर खिलाड़ी इन सभी चुनौतियों के बीच लाल किले से अपनी आवाज कश्मीर की तरफ मोड़ते हुए पाकिस्तान पर सारा ठीकड़ा फोड़ते थे.


1993 में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव जीत गए और अगले 2 साल और पीएम बने रहे. पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल का चौथा साल आते-आते कांग्रेस बिखड़ने लगी थी. उनके ऊपर घोटाले के कई आरोप लगे. उनके ऊपर अपनी सरकार बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को खरीदने का भी आरोप लगा था. 1995 में लाल किले से उनका आखिरी भाषण था.


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