कर्नाटक कांग्रेस में सत्ता को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान एक बार फिर सुर्खियों में है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच आज दूसरी बार ब्रेकफास्ट मीटिंग हुई. यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब पावर-शेयरिंग को लेकर पुराने समझौते की यादें फिर से ताज़ा होने लगी हैं.

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सिद्धारमैया ने बैठक के बाद कहा कि वे डीके शिवकुमार के न्योते पर नाश्ते के लिए पहुंचे. दोनों नेताओं ने आगामी शीतकालीन सत्र, विपक्ष की संभावित रणनीति और किसानों से जुड़े मुद्दों जैसे गन्ना, मक्का आदि पर विस्तार से चर्चा की. दूसरी ओर डीके शिवकुमार ने बैठक को राज्य में सुशासन जारी रखने की दिशा में एक सामूहिक प्रयास बताया.

राजनीति में संदेश देने का एक सधा हुआ तरीकायह बैठकें महज़ नाश्ते तक सीमित नहीं हैं, बल्कि राजनीति में संदेश देने का एक सधा हुआ तरीका भी हैं. 2023 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद से ही पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर साइलेंट पावर गेम लगातार जारी है. माना जाता है कि पार्टी हाईकमान की मौजूदगी में एक समझौता हुआ था, जिसमें पांच साल की सरकार में ढाई-ढाई साल के लिए सत्ता का बंटवारा तय था. पहले सिद्धारमैया और फिर डीके शिवकुमार को मौका.

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अब जबकि ढाई साल पूरे हो चुके हैं, डीके शिवकुमार गुट इस समझौते की याद दिला रहा है. दूसरी ओर सिद्धारमैया अपने कामकाज और लोकप्रियता का हवाला देकर कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं. यही वजह है कि पार्टी हाईकमान को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ रहा है. मल्लिकार्जुन खरगे ने हाल ही में दोनों नेताओं को सख्त संदेश दिया था कि वादा निभाना ही पार्टी की विश्वसनीयता के लिए जरूरी है.

दो ब्रेकफास्ट मीटिंग में मेन्यू भी चर्चा में रहाइन सबके बीच दिलचस्प यह कि दो ब्रेकफास्ट मीटिंग में मेन्यू भी चर्चा में रहा. पहली बार इडली-सांभर और उपमा, जबकि दूसरी बार नाटी चिकन और इडली पर चर्चा हुई. हालांकि फिलहाल मामला शांत दिख रहा है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह अटकलें तेज हैं कि विधानसभा सत्र के बाद यह खींचतान फिर से उभर सकती है. कुछ नेता ज्योतिषीय कारणों का हवाला देते हुए कहते हैं कि मकर संक्रांति के बाद स्थिति बदल सकती है. कर्नाटक की राजनीति में यह खींचतान सिर्फ दो नेताओं की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में कांग्रेस की साख से जुड़ा मसला है. इसलिए हाईकमान हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है, लेकिन बड़ा सवाल अब भी वही है कि नेतृत्व परिवर्तन आखिर कब?

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