शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बीजेपी पर निशाना साधा है. शिवसेना ने सामना में संपादकीय के जरिए बीजेपी पर हमला करते हुए लिखा है कि यूपी में हालत इतने खराब हो चुके हैं कि बीजेपी को जितिन प्रसाद के जरिए ब्राह्मण वोटों का सहारा लेना पड़ रहा है. सामना में लिखा है कि यूपी में बीजेपी से सवर्ण वोटर छिटक रहे हैं. अब तक राज्य में बीजेपी को किसी गणित या चेहरे की जरूरत नहीं पड़ी थी लेकिन अब ऐसा करना पड़ रहा है.


"बीजेपी को जितिन प्रसाद के ब्राह्मण वोटों का सहारा लेना पड़ रहा"
सामना में लिखा है, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने वाले जितिन प्रसाद आखिरकार भाजपाई बन गए हैं. जितिन प्रसाद के आगमन का बीजेपी में जश्न मनाया जा रहा है. इसकी वजह उत्तर प्रदेश में चुनाव का जातीय गणित है. यदि उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण वोटों पर प्रसाद का इतना प्रभाव था तो इन मतों को वे कांग्रेस की ओर क्यों नहीं मोड़ सके? इसका दूसरा अर्थ ये भी लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी समर्थक उच्च जाति के मतदाता अब उनसे दूर जा रहे हैं. अब तक उत्तर प्रदेश में बीजेपी को किसी और गणित व चेहरे की जरूरत नहीं पड़ी थी. सिर्फ नरेंद्र मोदी ही सब कुछ यही नीति थी. राम मंदिर या हिंदुत्व के नाम पर वोट मिल रहे थे. अब उत्तर प्रदेश में अवस्था इतनी खराब हो गई है कि जितिन प्रसाद के ब्राह्मण वोटों का सहारा लेना पड़ रहा है.


"कांग्रेस के बचे-खुचे दिग्गज भी अब नाव से धड़ाधड़ कूद रहे"
कांग्रेस की हालत पर संपादकीय में लिखा है, सवाल इतना ही है कि कांग्रेस पार्टी के बचे-खुचे दिग्गज भी अब नाव से धड़ाधड़ कूद रहे हैं. फिर यह सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही हो रहा है, ऐसा नहीं है. राजस्थान में अब सचिन पायलट ने पार्टी नेतृत्व को विदाई की चेतावनी दे दी है. सचिन पायलट और उनके समर्थक पहले से ही अप्रसन्न हैं और उनका एक पैर बाहर है ही. सचिन पायलट ने साल भर पहले बगावत ही की थी. उसे किसी तरह शांत किया गया, फिर भी असंतोष आज भी जारी ही है. पंजाब कांग्रेस में बड़ी फूट पड़ गई है और मुख्यमंत्री अमरिंदर के खिलाफ विरोधी गुट ने आरपार की लड़ाई छेड़ दी है. उस पर चिंता तब और बढ़ जाती है जब प्रसाद जैसे नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो जाते हैं. इस पतझड़ से बची-खुची कांग्रेस को नुकसान हो रहा है.


"कांग्रेस को कैसे खड़ा होना चाहिए?"
कांग्रेस पर सवाल उठाते हुए शिवसेना ने संपादकीय में कहा है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की करारी हार हुई. केरल में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होने के बाद भी सत्ता स्थापित नहीं कर सकी. असम में अवसर होने के बावजूद कांग्रेस पिछड़ गई. पुडुचेरी मे सत्ता गंवा दी. इस तमाम पतझड़ में कांग्रेस को क्या करना चाहिए और कैसे खड़ा होना चाहिए? आज भी मनमोहन सिंह, नरसिम्हा राव, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की ‘छाप’ को कोई मिटा नहीं पाया है. लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल को छोड़ दें तो कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. देश का राजनीतिक संतुलन बिगाड़ने वाली यह तस्वीर है. यह लोकतंत्र के लिए घातक स्थिति है. 


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