नई दिल्ली: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट, 1989 में सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाने का फैसला दिया था. अब सोमवार को केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर इस फैसले को चुनौती देगी. सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने एससी/ एसटी एक्ट को रिव्यू करते हुए कहा था कि अगर केस पहली नज़र में निराधार या गलत इरादे से दाखिल लगता है तो आरोपी को अग्रिम ज़मानत मिल सकती है. इस फैसले के बाद ही गुजरात हाई कोर्ट ने एक बिल्डर को अग्रिम जमानत दे दी.


एससी/एसटी एक्ट, 1989 कानून का लक्ष्य हाशिए पर मौजूद दलित और आदिवासी तबके की हिफाजत करना है. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को याचिका दायर की जाएगी. सरकार याचिका में ये कहेगी कि शीर्ष न्यायालय का आदेश अनुसूचित जाति (एसी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के प्रावधानों को कमजोर करेगा.


सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय यह भी कह सकता है कि हालिया आदेश से कानून का डर कम होगा और इस कानून का उल्लंघन बढ़ सकता है. इस मामले को लेकर एलजेपी प्रमुख राम विलास पासवान और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के नेतृत्व में एनडीए के एसएसी और एसटी सांसदों ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी. इनका कहना था सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 कमजोर हो जाएगा.


गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के लिए हाल ही में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक पत्र लिखा था. उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि यह आदेश इस कानून को निष्प्रभावी बना देगा और दलितों और आदिवासियों को न्याय मिलने को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।.


इसबीच, गहलोत ने शीर्ष न्यायालय के फैसले का विरोध कर रहे विभिन्न संगठनों और लेागों से शुक्रवार को अपना प्रदर्शन वापस लेने की अपील की. वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए कहा कि मूल अधिनियम को बहाल किया जाना चाहिए.