नई दिल्ली: किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से जुड़े सभी मामलों की सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा. पिछले हफ्ते एक मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने बातचीत के ज़रिए गतिरोध सुलझाने पर ज़ोर दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर सरकार ने जानकारी दी कि आंदोलनकारी संगठनों के साथ उसकी बातचीत सही दिशा में चल रही है, तो सुनवाई को टाला भी जा सकता है.


पिछली सुनवाई में क्या हुआ?


सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पिछली सुनवाई 17 दिसंबर को की थी. उस दिन जो याचिकाएं सुनवाई की लिस्ट में थी, उनमें से कुछ में सड़क से किसानों को हटाने की मांग की गई थी. कुछ याचिकाओं में किसानों के आंदोलन के लिए समर्थन भी जताया गया था. कोर्ट आंदोलन कर रहे हैं किसान संगठनों का भी पक्ष सुनकर कोई आदेश देना चाहता था.इसलिए सुनवाई टाल दी गई थी. तब कोर्ट ने कहा था कि किसान अगर शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हैं तो फिलहाल मामले में यथास्थिति बने रहने दी जाए.


सभी मामलों को एक साथ जोड़ा


खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ किसान आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर छुट्टी के बाद सुनवाई की बात कही, बल्कि 3 किसान कानूनों के विरोध में दायर याचिकाओं को भी मामले के साथ जोड़ दिया. इन याचिकाओं पर 12 अक्टूबर को नोटिस जारी हुआ था. लेकिन उसके बाद से कोई सुनवाई नहीं हो सकी थी. मौजूदा गतिरोध को दूर करने की मंशा से कोर्ट ने चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने एक अहम सुझाव भी दिया था. कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या वह कानूनों की वैधता पर फैसला होने तक उनके अमल पर रोक लगा सकती है?


गतिरोध बरकरार


किसान अभी तक अपनी जगह पर डटे हैं सरकार ने उनसे कई बार बातचीत की है. लेकिन कानूनों की वापसी को लेकर किसानों के कड़े रुख के चलते मसला हल नहीं हो पा रहा है. किसान यह भी चाहते हैं कि सरकार किसी भी तरह की खरीद में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी दे.


कोर्ट के सामने लंबित सवाल


कल अगर कोर्ट सुनवाई नहीं टालता है तो वह मुख्य रूप से 3 मुद्दों पर विचार करेगा :-


• किसानों को सड़क से हटा कर प्रदर्शन के लिए तय जगह पर भेजना


• विवाद के हल के लिए अपनी तरफ से एक कमिटी के गठन करना


• कानूनों की वैधता पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान उनके अमल पर रोक लगाना


क्या कानून पर लगेगी रोक?


कोर्ट ने कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 अक्टूबर को सरकार से जवाब तो मांगा, लेकिन कानून पर रोक नहीं लगाई थी. लेकिन चूंकि कोर्ट ने पिछली सुनवाई में खुद सरकार से कानूनों के अमल पर रोक को लेकर विचार पूछा था. इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि कोर्ट फिलहाल कानून पर रोक लगा कर गतिरोध को दूर करने पर विचार करे. हालांकि, ऐसा करने से पहले सरकार का पक्ष ज़रूर सुना जाएगा. अगर कानूनों से देश के बड़े हिस्से में किसानों को फायदे की बात सामने आती है, तो कोर्ट शायद ही उस पर रोक लगाएगा.


संतुलित आदेश की उम्मीद


बहरहाल, चूंकि कोर्ट ने मसले के सभी पहलुओं को एक साथ जोड़ लिया है. ऐसे में कल सब पर साझा सुनवाई होनी है. कोर्ट को शांतिपूर्ण विरोध के मौलिक अधिकार के साथ शाहीन बाग मामले में दिए अपने उस फैसले कभी ध्यान रखना है, जिसमें कहा गया था कि विरोध के नाम पर अनिश्चित समय तक सार्वजनिक सड़क को नहीं रोका जा सकता. ऐसे में संभव है कि कोर्ट किसान संगठनों से भी यह पूछे कि क्या वह प्रदर्शन के लिए प्रशासन की तरफ से तय जगह पर जाने को तैयार हैं. कोर्ट बड़ी संख्या में जमा आंदोलनकारियों के बीच कोरोना फैलने को लेकर भी चिंता जता चुका है. हो सकता है कि वह इस पहलू पर भी चर्चा करे.


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