RSS Chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत शनिवार (15 अप्रैल) को गुजरात विश्वविद्यालय (Gujarat University) के कार्यक्रम में शामिल हुए. इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि भारत के पारंपरिक ज्ञान को दुनिया को समझना चाहिए.


अपने संबोधन के दौरान भागवत ने कहा कि भारत का गठन वैश्विक कल्याण के लिए किया गया था. उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे देश की ताकत और प्रतिष्ठा बढ़ रही है, तो भारत की जिम्मेदारी और ज्ञान साझा करने का कर्तव्य और भी बढ़ जाता है.


भारतीय पारंपरिक ज्ञान को दुनिया में साझा करना चाहिए

मोहन भागवत ने कहा कि 'हमारे राष्ट्र का निर्माण हमारे पूर्वजों की तपस्या के कारण हुआ था, जो दुनिया का कल्याण चाहते थे. इसलिए ज्ञान बांटना हमारा कर्तव्य है. हमें पहले यह देखना चाहिए कि अतीत में क्या था. उसे फिर से सीखें और वर्तमान में करें.' उन्होंने कहा कि भारत में समय और स्थिति के लिए प्रासंगिक भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर दुनिया के लिए ज्ञान का एक विरासत रूप है. मोहन भागवत ने इस कार्यक्रम में पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणाली और संबंधित विषयों पर 1,051 संस्करणों का उद्घाटन किया है. भागवत ने भारतीयों को अनुसंधान में संलग्न होने की बात कही है.


इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देश में समय और स्थिति के लिए यह जरूरी है. कि प्रासंगिक भारतीय ज्ञान के विरासत को दुनिया के सामने साझा करने के लिए लोगों को प्रोत्साहन करना चाहिए. मोहन भागवत ने स्वीकार किया कि बहुत से लोग पारंपरिक भारतीय ज्ञान के बारे में संदेह और अविश्वास रखते हैं. उन्होंने कहा की कि पहले खुद भारत के परंपरा को जाने उसके बाद उस ज्ञान को दूसरों तक साझा करने का प्रयास करें.


उन्होंने कहा कि मौजूदा ज्ञान का आकलन करने से पहले ज्ञान के तरीके का आकलन करना चाहिए. इसके साथ कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि दुनिया को पेश करने के लिए ज्ञान के स्तरों के जरूरत पर प्रकाश डालना की जरूरत है.

स्वास्थ्य पर क्या बोले मोहन भागवत?

मोहन भागवत ने कार्यक्रम में कहा कि भारतीय आयुर्वेद और योग को वैश्विक स्तर पर लोग प्रशंसा कर रहे हैं. इसके साथ ही भागवत ने कहा कि इन विषयों के कुछ पहलुओं को पेटेंट कराने के प्रयासों की आलोचना की. उन्होंने जोर देकर कहा कि ज्ञान सभी के लिए होना चाहिए. ये जन्म,जाति,राष्ट्र,भाषा या क्षेत्र तक सीमित नहीं होना चाहिए.


भागवत के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया को एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है और इसे प्रदान करने वाला भारत होना चाहिए. उन्होंने अपनी परिवर्तनकारी दृष्टि के लिए नई शिक्षा नीति (एनईपी) की सराहना की. साथ ही विज्ञान और ज्ञान के बीच अंतर भी स्पष्ट किया. आरएसएस प्रमुख ने चेतावनी देते हुए कहा कि जहां विज्ञान मानवता को तबाही के करीब ला सकता है, वहीं सच्चा ज्ञान व्यक्तियों और उनके अंतर्मन  में होने चाहिए.


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