नई दिल्ली: निजता के मौलिक अधिकार पर आज सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है. इस फैसले के बाद सरकार आपकी निजी जानकारी जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड या क्रेडिट कार्ड की जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने निजता का मौलिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिया है.


सवाल: सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला क्या है?
जवाब: प्राइवेसी भारत के नागरिक का मौलिक यानी फंडामेंटल अधिकार है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है. कोर्ट ने प्राइवेसी को मौलिक अधिकार माना है. सरकार आपके आधार कार्ड, पैन कार्ड या क्रेडिट कार्ड की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने पहले 1954 और 1962 में राइट टू प्राइवेसी के मामले में फैसला सुनाया था लेकिन तब कोर्ट ने कहा था प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है. आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने इन्हीं दो फैसलों को पलट दिया.


सवाल: क्या है मौलिक अधिकार?
जवाब: संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिक के मौलिक अधिकार का जिक्र है. जिस तरह संविधान नागरिक को बराबरी का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी यानी अपनी बात कहने का अधिकार देती है. उसी तरह सम्मान से जीने का अधिकार भी देती है. इन अधिकारों को छीने जाने पर देश के नागरिक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं. हालांकि मौलिक अधिकारों की भी कुछ सीमाएं होती हैं जिनका जिक्र संविधान में भी है.


सवाल: राइट टू प्राइवेसी तक मामला पहुंचा कैसे?
जवाब: आधार को लागू तो यूपीए की मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने कराया था लेकिन पीएम मोदी की सरकार ने आधार का दायरा इतना बढ़ा दिया कि जिंदगी के लिए आधार अनिवार्य हो गया. सरकार की 92 योजनाओं औऱ इनकम टैक्स रिटर्न को आधार से जोड़ दिया. एलपीजी सब्सिडी, फूड सब्सिडी, मनरेगा की मजदूरी, स्कॉलरशिप जैसी सुविधाएं आधार से ही मिलती हैं. अगर आधार कार्ड नहीं है तो गैस सब्सिडी जैसी सुविधा नहीं मिलेगी. बैंक अकाउंट नहीं खुलेगा. इनकम टैक्स रिटर्न नहीं फाइल कर सकते. सरकार की देखादेखी कई निजी कंपनियों ने भी आधार को अनिवार्य कर दिया. जैसे-रिलायंस जिओ का कनेक्शन लेना है तो बिना आधार नंबर के मिल नहीं सकता. यहीं से राइट टू प्राइवेसी का विवाद शुरू हुआ. आधार को प्राइवेसी के खिलाफ बताकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई. इस केस के कई याचिकाकर्ताओं में से एक श्याम दीवान ने कोर्ट में दलील रखी कि मेरी आंख और फिंगर प्रिंट मेरी निजी संपत्ति है. सरकार की नहीं. इस पर फैसला करने से पहले सुप्रीम कोर्ट यह करना चाहता था कि आखिर किसी की निजता उसका मौलिक अधिकार है या नहीं. आज का फैसले के बाद स्पष्ट हो गया कि निजता मौलिक अधिकार है.


सवाल: राइट टू प्राइवेसी फैसले का मतलब क्या है?
जवाब: कोर्ट का आज का फैसला भारत के हर नागरिक को ये छूट देता है कि अगर टेलिकॉम कंपनियां, रेलवे या एयरलाइन कंपनियां आपसे आपकी निजी जानकारी मांगती हैं तो आप मना कर सकते हैं. फैसले के बाद अभी ये कहना मुश्किल है कि आपके इनकार कर देने से आपका काम होगा या नहीं. विवाद सिर्फ बायोमैट्रिक डिटेल्स का नहीं है. जन्म तारीख, शादी की तारीख, एड्रेस प्रूफ, बैंक अकाउंट डिटेल, ये कुछ भी हो सकता है.


सवाल: जानकारी ना देने के लिए राइट टू प्राइवेसी की आड़ ले सकते हैं?
जवाब: आज का फैसला ये व्यवस्था कतई नहीं बनाता कि आप पूरी तरह से अपनी मर्जी के मालिक हो गए. आप निजी जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं. अगर आपसे कोई अपराध हो गया है तो आप मना नहीं कर सकते कि आप पुलिस या किसी जांच एजेंसी को मांगी गई जानकारी नहीं देंगे. आप ये भी नहीं कह सकते कि आपको बैंक अकाउंट भी खोलना है लेकिन आप अपनी फोटो और अन्य जानकारी नहीं देंगे.


सवाल: अगर जानकारी नहीं देंगे तो क्या होगा?
जवाब: अगर आप जानकारी देने से मना करते हैं तो आपका काम होगा या नहीं? इसका जवाब है कि अगर आपको रिलायंस जिओ का कनेक्शन चाहिए और आप आधार कार्ड देने को तैयार नहीं है तो कंपनी आपको कनेक्शन देने से मना कर सकती है. अगर आपको लोन चाहिए लेकिन आप अपने अकाउंट की डिटेल देने से मना करते हैं तो बैंक आपको लोन देने से मना कर सकता है.


सवाल: प्राइवेसी का उल्लंघन कैसे होता है?
जवाब: आप खुद अपनी निजी जानकारी ऐसे कंपनी या ऐसे व्यक्तियों को दे देते हैं जो आपकी निजी जानकारी का दुरुपयोग भी कर सकता है और किसी और के साथ शेयर भी कर सकता है. मान लीजिए आप किसी मॉल के स्टोर में गए. स्टोर में आपने शॉपिंग कार्ड बनवाया ताकि आपको रिवॉर्ड प्वाइंट मिल सके. रिवॉर्ड प्वाइंट की लालच में आप स्टोर को नाम, एड्रेस, मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी, मैरिज एनवर्सरी स्टोर को देते हैं. ये सारी डिटेल स्टोर से कई मार्केटिंग कंपनियों के पास जाती हैं.


सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोदी सरकार के लिए झटका है?
जवाब: हां, सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोदी सरकार के लिए झटका इसलिए है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार की दलील थी कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है. मामला आधार से शुरू हुआ था जिसे जिंदगी का हिस्सा बनाने के लिए सरकार ने कई फैसले लिए हैं. हालांकि कोर्ट ने आधार पर कुछ कहा नहीं है लेकिन सरकार के लिए आधार का दायरा बढ़ाना आसान नहीं होगा. अभी तक आधार सरकार की योजनाओं और इनकम टैक्स रिटर्न के लिए जरूरी किया गया है. देश का नागरिक सरकार से कई मुद्दों पर कह सकता है कि वो जानकारी देना नहीं चाहता. कुछ मामलों को छोड़कर सरकार उसे मजबूर नहीं कर सकती.


सवाल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी क्या सरकार निजी जानकारी ले पाएगी?
जवाब: हां, इस पर कोई रोक नहीं है. पूरी व्यवस्था सरकार और नागरिक के संबंधों पर आधारित है. सरकारी काम के लिए ज़रूरी जानकारी देने से नागरिक मना नहीं कर सकता. अगर आप संपत्ति खरीद रहे हैं और अपने बारे में ज़रूरी जानकारी न देना चाहें तो ये मान्य नहीं होगा. बेचने और खरीदने वाले का ब्यौरा कानूनी अवश्यकता है. आप निजता के अधिकार का हवाला देकर इससे मना नहीं कर सकते.


सवाल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आधार का क्या होगा?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट ने आज जो फैसला सुनाया है उसमें आधार कार्ड को लेकर कुछ कहा नहीं गया है. इसलिए ये सवाल बना हुआ है कि राइट टू प्राइवेसी के तहत अगर आप बायोमैट्रिक डिटेल्स देने से मना करते हैं तो आपका आधार बनेगा या नहीं. इस मामले में पांच जजों की एक बेंच अलग से सुनवाई करेगी.


सवाल: आखिर आधार बनता कैसे है?
जवाब: आधार बनवाने के लिए नाम, एड्रेस प्रूफ के साथ तीन तरह की बायोमैट्रिक डिटेल्स ली जाती है. पहला-फिंगर प्रिंट्स. दूसरा-आई स्कैन और तीसरा फेस स्कैन.


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