जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की शुक्रवार यानी 29 दिसंबर को बैठक है. माना जा रहा है कि बैठक में बिहार के सीएम नीतीश कुमार बड़ा फैसला ले सकते हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाया जा सकता है. चर्चा तो ये भी है कि ललन सिंह ने नीतीश को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. 26 दिसंबर से शुरू हुई इस चर्चा को और बल तब मिल गया, जब बीजेपी नेता सुशील मोदी ने दावा किया कि नीतीश कुमार का कोई भी करीबी लंबे समय तक नहीं चल सकता. ललन सिंह लालू यादव के करीबी हो गए हैं, इसे नीतीश कुमार बर्दाश्त नहीं कर सकते. हालांकि, जदयू ने इन खबरों को अफवाह बताया. खुद नीतीश कुमार और ललन सिंह ने भी इन दावों को खारिज कर दिया. इसके बावजूद चर्चा ये है कि नीतीश कुमार बैठक में ललन सिंह की जगह किसी और को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का ऐलान कर सकते हैं.  


कहां से शुरू हुई चर्चा?


ललन सिंह के इस्तीफे वाली चर्चा को हवा तब मिली जब 19 दिसंबर को विपक्ष के इंडिया गठबंधन की बैठक में नीतीश कुमार के नाराज होने की खबर सामने आई. बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने दावा किया कि नीतीश कुमार अपने पार्टी अध्यक्ष ललन से नाराज हैं और उन्हें 29 तारीख को हटाया जाएगा. लेकिन नीतीश के ललन सिंह से नाराज होने की बात कहां से आई, इसे समझने के लिए एक साल पहले के घटनाक्रम को देखना होगा. 


दरअसल, नीतीश कुमार ने जब पिछले साल बीजेपी से नाता तोड़ा था, तब इसके पीछे ललन सिंह का ही दिमाग बताया गया था. ललन सिंह की सलाह पर ही नीतीश ने आरजेडी से गठबंधन किया था. उस वक्त राजनीतिक गलियारों में ये बात चली कि नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन के पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा. ललन सिंह ने नीतीश के पीएम प्रोजेक्ट की कमान संभाली और इसके बाद मई महीने में नीतीश कुमार ने ललन सिंह को साथ लेकर विपक्षी नेताओं से मिलने का सिलसिला शुरू कर दिया. नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता का जब नेतृत्व कर रहे थे, तब जदयू को लग रहा था कि नीतीश पीएम दावेदारी की तरफ एक-एक कदम बढ़ा रहे हैं. लेकिन 19 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की बैठक में नीतीश के सपने को जोर का झटका लगा. बैठक में ममता बनर्जी और केजरीवाल ने मिलकर पीएम उम्मीदवारी के लिए मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर दिया. खबर है कि नीतीश इससे नाराज हो गए. ललन सिंह को नीतीश का करीबी माना जाता है. कहा जाता है कि नीतीश जब भी कोई फैसला लेते हैं, तो ललन सिंह समेत कुछ पदाधिकारियों से राय लेते हैं. 


ललन सिंह के इस्तीफे की खबर पर क्या बोले नीतीश?


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को दिल्ली में शुरू होने वाली बैठक से पहले जनता दल (यू) में संगठनात्मक बदलाव की अफवाहों के बारे में पूछे गए सवालों को टाल दिया. उन्होंने कहा, ये सामान्य बैठक है, ऐसी बैठकें हर साल होती हैं. यह सामान्य है. इसमें कुछ खास नहीं है. जब सीएम से पूछा गया कि क्या दिल्ली में होने वाली बैठक में ललन सिंह अपने इस्तीफे की औपचारिक पेशकश कर सकते हैं, तो इस पर नीतीश कुमार ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया. सीएम ने उनके एनडीए में शामिल होने की अफवाहों के बारे में पूछे गए सवालों को भी टाल दिया. 


ललन सिंह बोले- ये बीजेपी का नैरेटिव


वहीं, जब ललन सिंह से इस्तीफे को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, जब हमको इस्तीफा देना होगा, तब हम आप लोगों को बुला लेंगे. आप लोगों से परामर्श कर लेंगे. इस्तीफे में क्या क्या लिखना है, वह भी पूछ लेंगे. ताकि आप लोगों बीजेपी दफ्तर से उसका ड्राफ्ट ले लें. इस देश में मीडिया में मैनेजमेंट है, वह बीजेपी के नियंत्रण में है. इसलिए बीजेपी जो नैरेटिव सेट करती है, उसी पर आपका मैनेजमेंट आपको निर्देश देता है. आपको इसे फॉलो करना आपकी मजबूरी है. उन्होंने कहा, ये पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है. ये नियमित बैठक है. इसके लिए आप नैरेटिव सेट कर रहे हैं. जनता दल एक है और एक रहेगा, आप चाहें जितना ताकत लगाना है, लगा लीजिए. 


नीतीश के ये अपने हो चुके पराए


चर्चा तो ये भी है कि ललन सिंह के इस्तीफे के बाद जदयू में टूट भी हो सकती है. हालांकि, अगर ललन सिंह जदयू का साथ छोड़ते हैं, तो वे ऐसा करने वाले पहले नेता नहीं होंगे. इससे पहले उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी, आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर, शरद यादव जैसे तमाम नेता हैं, जो कभी नीतीश के करीबी हुआ करते थे और बाद में नीतीश से उनका मोहभंग हो गया.  


उपेंद्र कुशवाहा: इसी साल फरवरी में नीतीश से अलग की राहें


उपेंद्र कुशवाहा ने इसी साल फरवरी में नीतीश कुमार से नाता तोड़ दिया था. उन्होंने जदयू से इस्तीफा देकर नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाने का ऐलान किया था. उपेंद्र अब बीजेपी के करीबी हैं, माना जा रहा है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल होकर चुनाव लड़ सकती है. 


उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक करियर समता पार्टी से शुरू हुआ था. 2000 विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी के सामने समता पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद समता पार्टी और जदयू का विलय हो गया. उपेंद्र नीतीश के सबसे करीबियों में शुमार हो गए. 2003 में उपेंद्र कुशवाहा को जदयू ने नेता प्रतिपक्ष बनाया. 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी-जदयू गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन इस चुनाव में उपेंद्र अपनी सीट से ही चुनाव हार गए. इसके बाद कुशवाहा और नीतीश के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. 


उपेंद्र ने इसके बाद जदयू से इस्तीफा दे दिया और नई पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई. हालांकि, उपेंद्र अपनी पार्टी को ज्यादा दिन तक नहीं चला पाए. 2010 में वे नीतीश के बुलावे पर जदयू में आ गए. लेकिन 2013 मार्च में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) बना ली. 2014 लोकसभा चुनाव में उपेंद्र बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े, उनकी पार्टी तीन सीटों पर चुनाव लड़ी और मोदी लहर में तीनों पर जीत हासिल की. कुशवाहा मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. 2018 में वे एनडीए से बाहर आ गए और वे महागठबंधन में शामिल हो गए. 


2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में चुनाव लड़े, उन्होंने 5 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, इनमें से दो पर खुद लड़े. हालांकि, उनका खाता भी नहीं खुला. इसके बाद उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया. बिहार में 2020 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो उपेंद्र कुशवाहा ने मायावती की बीएसपी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाया. लेकिन इस चुनाव में भी खाता नहीं खुला. इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी का जदयू में विलय करा दिया. लेकिन इस साल वे नई पार्टी बनाकर फिर नीतीश को चुनौती देने के लिए तैयार हैं.


जब आरसीपी सिंह ने छोड़ा साथ


आरसीपी सिंह इसी साल मार्च में बीजेपी में शामिल हो गए. उन्होंने पिछले साल अगस्त में जदयू से इस्तीफा दे दिया था. आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा और एक ही जाती कुर्मी समुदाय से आते हैं. ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती काफी गहरी थी. आरसीपी सिंह यूपी कैडर के आईएएस अफसर थे. नीतीश कुमार जब रेल मंत्री बने थे, तब उन्होंने आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया था. इतना ही नहीं जब नीतीश बिहार के सीएम बने, तो उन्होंने आरसीपी सिंह को प्रमुख सचिव बनाया. आरसीपी सिंह 2010 में वीआरएस लेकर जदयू में शामिल हो गए. वे जदयू में दो बार राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे. उन्होंने जदयू की कमान संभाली. लेकिन नीतीश के एनडीए से बाहर आने के बाद आरसीपी सिंह पर बीजेपी से मिलकर जदयू को तोड़ने की साजिश का आरोप लगा था. इसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें साइडलाइन कर दिया था. इसके बाद आरसीपी सिंह ने नीतीश से अपना राजनीतिक रास्ता अलग कर लिया. 


जीतनराम मांझी


जीतनराम मांझी को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता था. जब 2014 लोकसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में महागठबंधन को बुरी तरह हार मिली, तो उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उन्होंने बतौर सीएम मांझी के नाम को आगे बढ़ाया. मांझी जदयू में रहते हुए 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक राज्य के सीएम भी रहे. लेकिन 2015 में उन्होंने सीएम के पद से हटने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्हें जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 


इसके बाद मांझी ने हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का गठन किया. इसके बाद वे एनडीए में शामिल हो गए. 2020 विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश की पार्टी के साथ गठबंधन किया था. जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा और महागठबंधन के साथ सरकार बनाई, जीतन राम मांझी महागठबंधन में आ गए. लेकिन इसी साल जून में उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ दिया. मांझी अब बीजेपी के करीबी हैं. 


जब नीतीश ने पीके को दिखाया बाहर का रास्ता


चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में जन सुराज यात्रा निकाल रहे हैं. वे नीतीश पर लगातार हमला बोल रहे हैं. प्रशांत कभी नीतीश के करीबी माने जाते थे.  प्रशांत किशोर ने 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की चुनाव रणनीति बनाई थी. इस चुनाव में बीजेपी को जीत मिली. इसके बाद प्रशांत किशोर ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी रणनीति बनाई. इस चुनाव में नीतीश की पार्टी को जीत मिली. इसके बाद नीतीश ने पीके को अपना अपना सलाहकार बनाया. बाद में उन्हें जदयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया. हालांकि, जल्द ही नीतीश का पीके से मोहभंग हो गया और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.