Rahul Gandhi's Disqualification: कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब सांसद नहीं हैं. उनके पास एक सरकारी घर था, लेकिन आने वाले दिनों में वो बेघर हो जाएंगे. हो सकता है कि घर छिन जाए तो मां सोनिया गांधी के सरकारी बंगले में रहें. या हो सकता है कि बहन प्रियंका गांधी के घर में रहें. हो सकता है कि किसी और कांग्रेसी सांसद के घर में रहें लेकिन जिस नेहरू-गांधी परिवार के पास कभी कोठी नहीं बल्कि कोठियां हुआ करती थीं, उसी परिवार के वारिस राहुल गांधी के पास अपना घर क्यों नहीं है.


आखिर उन घरों का या उन कोठियों का क्या हुआ, जिसे कभी उनके पुरखों ने बनाया था, लेकिन अब वो उनके पास नहीं है. पिछले दिनों राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में थे. तब कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था. इसी अधिवेशन में राहुल गांधी ने एलान किया था कि उनके पास अपना कोई घर नहीं है. अब उनके पास घर क्यों नहीं है, तो इसकी कहानी उतनी ही पुरानी, जितना पुराना नेहरू गांधी परिवार का इतिहास है. तो चलिए इतिहास को थोड़ा खंगालते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर राहुल गांधी जैसे नेता के पास अपना कोई मकान क्यों नहीं है.


आखिर घर न होने की वजह क्या है?


अभी जो गांधी परिवार है उसका कश्मीर के कौल ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक था. फर्रुखसियर के आदेश पर पंडित राजनारायण कौल के इस परिवार को कश्मीर छोड़कर दिल्ली आना पड़ा था. जहां चांदनी चौक में उन्हें बादशाह की ओर से जागीर मिली थी, जिसमें कुछ गांव और एक हवेली भी थी. जब लक्ष्मी नारायण नेहरू अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले वकील बने तो पंडित राजनारायण कौल के इस परिवार का सरनेम नेहरू हो गया.


1857 में जब आजादी की पहली लड़ाई लड़ी गई तो इन्हीं लक्ष्मी नारायण नेहरू के बेटे गंगाधर नेहरू अंग्रेजों की पुलिस के अधिकारी थे. आजादी की इसी लड़ाई के दौरान दिल्ली के हजारों लोगों को अपना घरबार छोड़ना पड़ा था. गंगाधर नेहरू का परिवार भी उन्हीं में से एक था.


वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी किताब 24 अकबर रोड में लिखते हैं, "गंगाधर नेहरू, उनकी पत्नी जीओरानी, उनके दो बेटे बंशीधर और नंदलाल और उनकी दो बेटियों को तब दिल्ली छोड़ना पड़ा. उस वक्त अंग्रेजों ने उन्हें भी मार ही दिया होता, लेकिन तब गंगाधर नेहरू की एक बेटी अंग्रेजों की तरह दिखती थी और बंशीधर की अंग्रेजी अंग्रेजों की तरह थी. तो वो लोग बच गए और आगरा पहुंच गए."


ये है गांधी परिवार की कहानी


बंशीधर आगरा ज्यूडिशियल कोर्ट में काम करने लगे और नंदलाल स्कूल मास्टर बन गए. 1861 में गंगाधर नेहरू की आगरा में ही मौत हो गई. उस वक्त जीओरानी गर्भवती थीं. कुछ ही दिनों के बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया. उसका नाम मोतीलाल नेहरू रखा गया. तब नंदलाल ने ही अपनी मां जीओरानी और अपने सबसे छोटे भाई मोतीलाल की देखभाल की.


1870 आते-आते नंदलाल वकील बन गए. उस वक्त मोतीलाल की उम्र महज 9 साल की थी. मैट्रिक पास करने के बाद मोतीलाल इलाहाबाद म्योर सेंट्रल कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए चले गए. 1883 में मोतीलाल ने कैंब्रिज से वकालत की डिग्री हासिल की और साथ ही उन्हें तब का वकालत का सबसे प्रतिष्ठित लंब्सडन मेडल भी मिल गया. फिर तो मोतीलाल अपने बड़े भाई नंदलाल के पार्टनर बन गए. दोनों ने वकालत के पेशे में पूरे जज्बे के साथ काम करना शुरू किया.


मोतीलाल नेहरू की दूसरी शादी


25 साल की उम्र में मोतीलाल नेहरू की शादी स्वरूप रानी से हुई. ये मोतीलाल की दूसरी शादी थी, क्योंकि उनकी पहली पत्नी की बच्चे को जन्म देते वक्त ही मौत हो गई थी. ये बच्चा रतनलाल जब तीन साल का हुआ तो उसकी भी मौत हो गई. मोतीलाल ने 14 साल की स्वरूप रानी नेहरू से शादी की. 14 नवंबर 1889 को मोतीलाल और स्वरूप रानी का एक बेटा हुआ. इसका नाम जवाहर लाल रखा गया. सरनेम नेहरू के साथ पूरा नाम जवाहर लाल नेहरू पड़ा.


तब मोतीलाल नेहरू की वकालत अपने उरूज पर थी. 30 साल की उम्र पहुंचने से पहले ही मोतीलाल नेहरू अपनी वकालत से महीने के करीब दो हजार रुपये कमाते थे. अब उस जमाने में दो हजार रुपये की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि तब स्कूल के एक टीचर को 10 रुपये महीने की पगार मिला करती थी. 


मोतीलाल नेहरू ने खरीदा पहला घर  


आमदनी खूब होने से मोतीलाल नेहरू को ठाठबाट भी पसंद आने लगा. वो इलाहाबाद के सबसे महंगे इलाके 9 एल्गिन रोड में रहने के लिए चले गए. तब तक उनके पास अपना कोई मकान नहीं था. साल 1900 में जवाहर लाल नेहरू की उम्र 11 साल की थी. उसी साल करीब 19 हजार रुपये में मोतीलाल नेहरू ने 1 चर्च रोड पर बहुत बड़ा आलीशान मकान खरीदा.


इस घर में लॉन था, फलों के बागीचे थे और स्विमिंग पूल तक था. घर के रिनोवेशन के लिए मोतीलाल नेहरू ने यूरोप और चीन के दौरे किए. वहां से फर्नीचर और घर के दूसरे साजो-सामान ला-लाकर घर में लगवाया. उस वक्त उस घर के टॉयलेट में फ्लश लगे थे, जो इलाहाबाद में ऐसा करने वाला पहला घर था. इस घर का नाम आनंद भवन रखा गया.


मोतीलाल नेहरू की मौत


इस घर को खरीदने के करीब 30 साल बाद 1930 में मोतीलाल नेहरू ने एक और घर बनवाया. ये घर पुराने वाले घर का ही अगला घर था. पुराना वाला घर जिसे आनंद भवन नाम दिया गया था, उसका नाम बदलकर स्वराज भवन कर दिया गया. मोतीलाल नेहरू ने अपने पुराने घर को देश को समर्पित कर दिया. औऱ जो नया घर बनवाया, उसमें उनका परिवार रहने लगा. उस घर का नाम कर दिया गया आनंद भवन. इस घर को बनवाने के अगले ही साल 1931 में मोतीलाल नेहरू की मौत हो गई.


आनंद भवन बना कांग्रेस ऑफिस


ये आनंद भवन भी नेहरू परिवार के घर से ज्यादा कांग्रेस का मुख्यालय हो गया. आजादी के आंदोलन के दौरान यही  कांग्रेस का मुख्यालय रहा और कांग्रेस वर्गिंक कमेटी की तमाम बैठकें इसी घर में होती रहीं. तब जवाहर लाल नेहरू पत्नी कमला के साथ इसी आनंद भवन के टॉप फ्लोर पर रहते थे. उनकी बेटी इंदिरा के लिए घर में अलग कमरा था और बाकी का पूरा घर कांग्रेस पार्टी के लिए था. भारत की आजादी यानी कि 15 अगस्त 1947 तक ये आनंद भवन नेहरू परिवार का घर और कांग्रेस का दफ्तर दोनों ही बना रहा.


जब जवाहरलाल नेहरू दिल्ली शिफ्ट हो गए


आजादी के बाद कांग्रेस ने अपना दफ्तर इलाहाबाद से दिल्ली शिफ्ट किया और कांग्रेस का नया मुख्यालय 7 जंतर-मंतर रोड हो गया. नेहरू के प्रधानमंत्री होने से सरकारी आवास तीन मूर्ति भवन अब उनका घर हो गया. उनके निधन के बाद इसे भी स्मारक में तब्दील कर दिया गया.


वहीं नेहरू ने अपने पैतृक घर यानी कि इलाहाबाद वाले आनंद भवन को आधिकारिक तौर पर किसी को नहीं दिया था. जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन गईं तो 1969 में उन्होंने इलाहाबाद वाले आनंद भवन को देश को समर्पित कर दिया. अब ये  राष्ट्रीय स्मारक है. यहां नेहरू परिवार के साथ ही कांग्रेस की समृद्ध विरासत को सहेज कर रखा गया है.


आनंद भवन के बाद नहीं खरीदा कोई घर


ये दोनों ही घर यानी कि स्वराज भवन और आनंद भवन मोतीलाल नेहरू के खरीदे हुए थे. उनके बाद जवाहर लाल नेहरू ने अपने या अपने परिवार के लिए कोई घर नहीं खरीदा. नेहरू के बाद इंदिरा गांधी भी प्रधानमंत्री रहीं, लेकिन उन्होंने भी अपने लिए कोई घर नहीं खरीदा.


जब इंदिरा गांधी 1977 का लोकसभा चुनाव हार गईं तो उन्हें 1 सफदरजंग रोड छोड़कर 12 विलिंगडन क्रिसेंट में कुछ दिनों के लिए रहना पड़ा. 1980 में इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं तो वो फिर से 1 सफदरजंग रोड रहने चली गईं. 1984 में उनकी हत्या के बाद इस घर को भी स्मारक में बदल दिया गया.


इसके बाद प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी या फिर कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी और बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी भी अपने परिवार के लिए कोई घर नहीं खरीद पाए. यही वजह है कि सांसदी जाने के बाद राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि अब वो कहां रहेंगे.


फिलहाल बिना घर के गांधी परिवार


सोनिया गांधी ने सेहत को देखते हुए पिछले दिनों इशारों में अपनी राजनीतिक पारी के बारे में बहुत कुछ बयां कर दिया.  माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सोनिया गांधी भी सक्रिय राजनीति से दूर हो जाएंगी. इसके बाद शायद उनके पास भी कोई सरकारी बंगला नहीं होगा. उनके पास कोई सरकारी बंगला नहीं होगा तो आज की तारीख में गांधी परिवार के पास अपना कोई निजी बंगला या मकान नहीं है, जिसमें वो रह सकें.


ये भी पढ़ें: Rahul Gandhi Disqualified As MP: 'ये घर राहुल गांधी का है', पोस्टर चिपकाकर लोग बोले- वो लोगों को दिलों में रहते हैं