नई दिल्ली: पाकिस्तान सरकार को कुलभूषण जाधव मामले में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय से झटका लगा है. अदालत ने पाकिस्तान सरकार की याचिका पर अपनी तरफ से जाधव के लिए कोई वकील मुकर्रर करने की बजाय पाक को एक बार फिर भारत से सम्पर्क करने को कहा है.


इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में पाक के कानून मंत्रालय की तरफ से दाखिल उस याचिका पर सोमवार को सुनवाई हो रही थी, जिसमें कुलभूषण जाधव के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए पक्षकार नियुक्ति करने की अपील की गई थी. पाक सरकार ने अदालत में अपील यह कहते हुए दाखिल की थी कि भारत ने इस मामले में कोई वकील जाधव को मुहैया नहीं कराया है.


सूत्रों के मुताबिक पाक सरकार ने अदालत से कहा कि वो जाधव के लिए वकील मुकर्रर करने के लिए एक बार फिर भारत सरकार से उसके उच्चायोग के माध्यम से सम्पर्क करेगी. हालांकि इस बाबत खबर लिखे जाने तक भारत सरकार को इस बाबत पाक की तरफ से कोई आधिकारिक सूचना हासिल नहीं हुई थी. मामले की अगली सुनवाई 3 सितंबर को होनी है.


बीते दिनों भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि पाक ने कुलभूषण जाधव के लिए भारत की तरफ से किए गए वकील को न तो मामले से जुड़े दस्तावेज मुहैया कराए. न ही पाक सरकार द्वारा पारित किए गए अध्यादेश के तहत अपील दाखिल करने की उसे इजाजत दी. पाकिस्तान सरकार ने भारत के लिए कुलभूषण जाधव मामले में प्रभावी समाधान हासिल करने के सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं. ऐसे में भारत अब आगे के अपने कानूनी विकल्पों और अधिकारों के इस्तेमाल को स्वतंत्र है.


दरअसल, अंतरराष्ट्रीय अदालत से मिले फैसले पर अमल के कदम दिखाने की जुगत में पाक सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था. इसके तहत जहां पाक ने कुलभूषण जाधव के लिए समीक्षा याचिका का दरवाजा खोला, वहीं साथ ही यह भी कह दिया कि खुद कुलभूषण ने ही अपील करने से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं पाक ने भारत को कुलभूषण की तरफ से अपील करने का अधिकार तो दिया, लेकिन कॉन्सुलर संपर्क के जरिए भारत को जाधव की तरफ से कानूनी कार्रवाई के लिए जरूरी पावर ऑफ एटॉर्नी नहीं लेने दी. इतना ही नहीं 16 जुलाई को भारत के राजनयिकों के कॉन्सुलर संपर्क के लिए बुलाया जरूर, लेकिन इसके अबाध मुलाकात का मौका नहीं दिया.


भारतीय खेमे के सूत्रों के मुताबिक जाधव मामले में पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को लागू करता हुआ केवल दिखना चाहता है. लेकिन असलियत में उसने कोई भी कदम ऐसा नहीं उठाया है, जिसे आईसीजे के फैसले को सही भावना के साथ लागू किया जा सके.


महत्वपूर्ण है कि मार्च 2016 में पकड़े गए पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को जासूस करार देते हुए पाकिस्तान ने सैन्य अदालत में कोर्ट मार्शल कर सजा-ए-मौत सुना दी थी. इसके खिलाफ भारत ने 2017 में अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाया था. मामले पर जुलाई 2019 में दिए फैसले में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाक को 1963 की वियना संधि के उल्लंघन का दोषी करार दिया था. क्योंकि गिरफ्तारी के बाद पाक ने न तो कुलभूषण जाधव को उसके अधिकारों के बारे में बताया और न ही भारतीय अधिकारियों को कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत दी थी. इसके अलावा सैन्य अदालत के फैसले की समीक्षा के लिए भी न तो कोई प्रावधान स्पष्ट किया था और न ही उसकी व्यवस्था बनाई थी.


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