Padma Awards 2024 Winner List: केंद्र सरकार ने गुरुवार (26 जनवरी) को प्रतिष्ठित पद्म पुरुस्कारों का ऐलान किया जिसमें अलग-अलग वर्गों में अच्छा काम करने वालों के नाम हैं. विजेताओं की लिस्ट में कुछ ऐसे भी नाम हैं जो गुमनामी के बादल में छिपकर भी तारों की तरह चमचमाते रहे और शानदार काम करते रहे. ऐसे लोगों ने किसी भी समस्या को काम में बाधा नहीं बनने दिया.

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आइए, जानते हैं कुछ ऐसी ही असाधारण शख्सियतों के बारे में जिनका नाम शायद ही आपने पहले कभी सुना हो: 

1. पार्वती बरुआ

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पद्म पुरस्कारों के लिए नामित लोगों में पार्वती बरुआ का भी नाम है जिन्हें 'क्वीन ऑफ एलिफेंट' के नाम से भी जाना जाता है. वह भारत की पहली महिला महावत हैं. इन्होंने परंपरागत रूप से पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में जगह बनाई. सामाजिक कार्य़ (पशु कल्याण) के लिए सरकार ने उन्हें यह पुरस्कार देने की घोषणा की. 14 साल की उम्र से ही इस काम में लगीं पार्वती अब तक कई हाथियों का जीवन बचा चुकी हैं. यही नहीं, वह जंगली हाथियों से निपटने और उन्हें पकड़ने में तीन राज्यों की सरकार की मदद कर चुकी हैं.

2. जोगेश्वर यादव

जनजातीय कल्याण कार्यकर्ता जोगेश्वर यादव भी उन गुमनाम हीरो में हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कार के लिए चुना है. वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद जागेश्वर यादव ने जीवन आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में हाशिए पर रहने वाले बिरहोर और पहाड़ी कोरवा लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था. इन्होंने जशपुर में एक आश्रम बना रखा है जहां वह इस समाज के लोगों में निरक्षरता को खत्म करने और आदिवासियों के स्वास्थ्य देखभाल मानकों को बढ़ाने के लिए काम करते हैं.

3. चामी मुर्मू

झारखंड की चामी मुर्मू को 'सरायकेला की सहयोगी' के रूप में भी जाना जाता है. इन्हें सरायकेला खरसावां जिले में वनीकरण प्रयासों का नेतृत्व करने और 30 लाख से अधिक पौधे लगाने के लिए पद्म पुरस्कार दिया जाएगा. चामी ने खुद सहायता समूह (एसएचजी) स्थापित करके और रोजगार प्रदान करके 40 गांवों में 30,000 से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया. 52 साल की मुर्मू ने एनीमिया और कुपोषण से निपटने के लिए भी कार्यक्रम शुरू किए. वह जंगलों में अवैध कटाई, लकड़ी माफिया और नक्सली गतिविधियों के खिलाफ भी लड़ती रही हैं.

4. गुरविंदर सिंह

गुरविंदर सिंह ट्रक की चपेट में आने के बाद लकवाग्रस्त (कमर के नीचे का हिस्सा) हुए. फिर भी वह नेकी के काम में जुटे रहे. हरियाणा के रहने वाले गुरविंदर सिंह बेघर, बेसहारा, महिलाओं और अनाथों की भलाई के लिए काम करते हैं. "दिव्यांगजन की आशा" नाम से सिंह ने 300 बच्चों के लिए बाल देखभाल संस्थान की स्थापना की थी जिसमें उन्होंने 6,000 से अधिक दुर्घटना पीड़ितों और गर्भवती महिलाओं को मुफ्त ऐम्बुलेंस सेवाएं भी प्रदान कीं.

5. दुखू माझी

दुखू माझी को "गाछ दादू" के नाम से भी जाना जाता है. बंगाली में गाछ का मतलब पेड़ होता है. 78 साल के दुखू माझी बंगाल के पुरुलिया में बंजर भूमि पर 5000 से अधिक बरगद, आम और ब्लैकबेरी के पेड़ लगा चुके हैं. वह रोज साइकिल से यात्रा करते हैं और कहीं न कहीं पेड़ लगाते हैं.

6. शांति देवी पासवान और शिवन पासवान

शांति और शिवन पति-पत्नी हैं. इस दंपति ने गोदना कला को दुनिया के सामने रखा. इनकी चित्रकारी को अमेरिका, जापान, हॉन्ग-कॉन्ग समेत कई देशों में तारीफ मिल चुकी है. शांति अब इस कला को बचाने के लिए 20 हजार महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे चुकी हैं. आर्थिक तंगी से परेशान होकर ही दोनों ने इसे बनाना शुरू किया था.

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