One Nation-One Election: एक देश, एक चुनाव पर केंद्र की मोदी सरकार ने शुक्रवार (1 सितंबर 2023) को कमेटी बनाई है, इस कमेटी के अध्यक्ष देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे. केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है. ऐसे कयास हैं कि इस सत्र में एक देश, एक चुनाव पर सरकार बिल लेकर आने वाली है. रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई इस कमेटी का आज नॉटिफिकेशन भी जारी किया जा सकता है.


कमेटी का उद्देश्य एक देश, एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर गौर करना है ताकि इसको लागू करते समय कोई कानूनी अडचन नहीं आए. यह कमेटी आम लोगों से भी राय लेगी. वह तमाम संविधान विशेषज्ञों से बात करेगी इसके अलावा अलग-अलग राजनीतिक दलों से भी विचार विमर्श करेगी. देश के सभी मुख्यमंत्रियों और विपक्षी नेताओं से भी यह कमेटी सलाह-मशविरा करेगी. ऐसे में हम आपको बताएंगे कि 2018 में बने लॉ कमीशन ने एक देश, एक चुनाव को लेकर क्या कहा था.


2018 में क्या थी लॉ कमीशन की रिपोर्ट?
लॉ कमिशन ने 2018 में एक रिपोर्ट पब्लिश की थी. इस रिपोर्ट में उसने देश में एक चुनाव कराए जाने की यह कहते हुए वकालत की थी,' एक चुनाव देश के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए मुफीद रहेंगे.' लॉ कमीशन ने कहा, एक देश, एक चुनाव इसलिए फायदे मंद होगा क्योंकि यह देश को लगातार चुनावी स्थिति में पड़े रहने से बचाएगा. 


एक साथ पूरे देश में चुनाव होने से बचेंगे सरकार के पैसे
2018 में बने इस लॉ कमीशन ने स्पष्ट तौर पर लिखा था कि लोक सभा और राज्य विधान सभा में एक साथ चुनाव कराने से सार्वजनिक धन की बचत होगी. उन्होंने कहा, इससे प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर भी बोझ कम होगा. इसके अलावा सरकार यह सुनिश्चित कर सकेगी की सरकारी नीतियों बेहतर ढंग से आम लोगों तक पहुंच सकें, क्योंकि एक बार चुनाव हो जाने से अमूमन पांच सालों तक चुनाव नहीं होंगे.


उप-चुनाव भी हों एक साथ
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने इस दौरान उप-चुनाव भी एक साथ कराए जाने को लेकर जोर दिया. कमीशन ने कहा, 'आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन करने की भी सिफारिश की, ताकि एक कैलेंडर में पड़ने वाले सभी उपचुनाव एक साथ आयोजित किए जा सकें.'


तो 2018 में ही क्यों नहीं हुए चुनाव?
लॉ कमीशन ने जब अपनी यह रिपोर्ट केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंपी तब इस रिपोर्ट को यह कहते हुए रोक लिया गया था कि इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी. तब इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया जा सका था. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को इस मुद्दे पर एक बैनर तले  लाना था जोकि प्रायोगिक रूप से संभव होता नहीं दिख रहा था. 


इससे पहले कब हुए थे एक साथ चुनाव?
संविधान निर्माण के बाद से ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में,1957 में, 1962 में और 1967 में हुए थे. 


ये भी पढे़ं: 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लेकर केंद्र का बड़ा कदम, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी गठित