Manipur Clash: पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता ने मणिपुर में जातीय संघर्ष को 'राजनीतिक समस्या' करार दिया है. उन्होंने मंगलवार ( 21 नवंबर) को कहा कि जब तक सुरक्षाबलों से लूटे गए लगभग 4,000 हथियार आम लोगों से बरामद नहीं कर लिए जाते, तब तक हिंसा की घटनाएं जारी रहेंगी.



कलिता ने गुवाहाटी प्रेस क्लब में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "हमारा प्रयास हिंसा को रोकना और संघर्ष के दोनों पक्षों को राजनीतिक समस्या के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रेरित करना है. क्योंकि समस्या का राजनीतिक समाधान ही होना है."


उन्होंने कहा कि जहां तक ​​जमीनी स्थिति का सवाल है, भारतीय सेना का उद्देश्य शुरू में अपने घरों से विस्थापित हुए लोगों के लिए बचाव और राहत अभियान चलाना था. कलिता ने कहा, 'इसके बाद, हम हिंसा को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें हम काफी हद तक सफल रहे हैं, लेकिन दो समुदायों-मेइती और कुकी के बीच ध्रुवीकरण के कारण यहां-वहां छिटपुट घटनाएं होती रहती हैं.


1990 के दशक में कुकी और नगाओं के बीच हुआ था संघर्ष
यह पूछे जाने पर कि झड़प शुरू होने के साढ़े छह महीने से अधिक समय के बाद भी मणिपुर में सामान्य स्थिति क्यों नहीं लौटी है, उन्होंने कहा कि राज्य में रहने वाले तीन समुदायों-मेइती, कुकी और नगा के बीच कुछ विरासत संबंधी मुद्दे हैं. लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा कि इससे पहले 1990 के दशक में कुकी और नगाओं के बीच संघर्ष हुआ था, जिसमें लगभग 1,000 लोग मारे गए थे.


5,000 से अधिक हथियार लूटे
उन्होंने कहा, "अब क्या हुआ है कि दो समुदाय पूरी तरह से ध्रुवीकृत हो गए हैं. हालांकि हिंसा का स्तर कम हो गया है. विभिन्न थानों और अन्य स्थानों से 5,000 से अधिक हथियार लूट लिए गए. इनमें से केवल 1,500 हथियार ही बरामद किए गए हैं. इसलिए, लगभग 4,000 हथियार अभी भी बाहर हैं. जब तक ये हथियार लोगों के पास हैं, तब तक इस तरह की छिटपुट हिंसक गतिविधियां जारी रहेंगी."


कलिता ने कहा कि भारत-म्यांमार सीमा के माध्यम से मादक पदार्थों के साथ-साथ हथियारों की तस्करी थम गई है. हालांकि, कुछ छिटपुट घटनाएं हो सकती हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि चूंकि 4,000 हथियार पहले से ही खुले में हैं, मुझे लगता है कि बाहर से हथियार लाने की कोई आवश्यकता नहीं है."


गौरतलब है कि मणिपुर में 3 मई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित होने के बाद शुरू हुईं जातीय झड़पों में 180 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों अन्य घायल हो गए.


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