Maharashtra Karnataka Border Dispute: इन दिनों महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद काफी सुर्खियों में है. अप्रैल-मई में कर्नाटक विधानसभा का चुनाव भी होना है. 


दोनों ही राज्यों में बीजेपी सरकार में है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी इस मुद्दे पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से चर्चा कर चुके हैं. उन्होंने दोनों ही राज्यों से संयम बरतते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंताजर करने को कहा है. इसके बावजूद भी दोनों राज्यों ने अपने विधानमंडल से प्रस्ताव पारित कर विवाद को और बढ़ा दिया है.


1956 में विवाद की हुई शुरुआत


दरअसल  इस विवाद की शुरुआत 1956 में हुई थी. 1956 में राज्य पुनर्गठन एक्ट (State Reorganisation Act, 1956) पारित किया गया था.  इसके जरिए  देश को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया था.  दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. इसमें फजल अली के साथ ही के एम पणिक्कर और एच एन कुंजरू सदस्य थे. आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग ने रिपोर्ट में ये बात मानी कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए, लेकिन 'एक राज्य एक भाषा' के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया. इससे साफ था कि सिर्फ भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं होना चाहिए.  इन सिफारिशों को मानते हुए राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 पारित किया गया और 1 नवंबर 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया. 


1956 में बॉम्बे और मैसूर के नाम से था प्रांत


राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे ( मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) राज्य बनाए गए. एक मई 1960 को बॉम्बे (Bombay) को बांटकर दो राज्य  महाराष्ट्र और गुजरात बनाया गया.  मराठी भाषा को आधार बनाकर महाराष्ट्र और गुजराती भाषा को आधार बनाकर गुजरात बनाया गया. वहीं एक नवंबर 1973 को मैसूर (Mysore) प्रांत का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया. 


संसद में भी दोनों राज्यों ने दिए थे तर्क


महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद की नींव राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956  से ही पड़ गई थी. उस वक्त बॉम्बे और मैसूर के बीच सीमा निर्धारण के बाद से ही विवाद शुरू हो गया. विवादित क्षेत्र में मराठी और कन्नड भाषी दोनों लोग शामिल हैं. इस वजह से सिर्फ भाषायी आधार पर विवाद को समझना थोड़ा मुश्किल है. 1956 में बॉम्बे (मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) दोनों ने ही सीमा पर लगे कई शहरों और गांवों को अपने-अपने राज्य में मिलाने के लिए संसद में तर्क दिया. 


महाराष्ट्र मराठी भाषा को बनाता है आधार 


बॉम्बे का दावा था कि मैसूर के उत्तर पश्चिम जिला बेलगाम (बेलगावी) को मराठी भाषा होने की वजह से बॉम्बे का हिस्सा होना चाहिए. इस विश्वास की वजह से ही महाराष्ट्र हमेशा से कर्नाटक के इस इलाके पर अपना दावा करते रहा है. 1957 में ही बॉम्बे राज्य ने राज्य पुनर्गठन एक्ट के सेक्शन  21 (2) (b) को लागू करके मैसूर के साथ अपने सीमा को फिर से निर्धारित करने की मांग की. बॉम्बे प्रांत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इससे जुड़ा ज्ञापन सौंपते हुए मराठी भाषा क्षेत्रों को कर्नाटक के साथ जोड़े जाने पर आपत्ति जताया. 


बॉम्बे ने 2,806 वर्ग मील के क्षेत्र पर दावा जताया


बॉम्बे (मौजूदा महाराष्ट्र) ने मैसूर (मौजूदा कर्नाटक) के 2,806 वर्ग मील के क्षेत्र पर दावा जताया. इसमें 814 गांव, तीन शहरी केंद्र बेलगावी, कारवार और निपाणी और कुल 6.7 लाख लोग शामिल थे. ये सभी जगह आजादी से पहले बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था.  ये गांव  महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों में  उत्तर-पश्चिमी कर्नाटक के बेलगावी (बेलगाम) और उत्तर कन्नड के साथ ही उत्तर-पूर्वी कर्नाटक के बीदर और गुलबर्गा में फैले हुए हैं.   


'बेलगावी मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्र है'


महाराष्ट्र का दावा रहा है कि बेलगावी मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्र है, जहां के कई क्षेत्रों में सिर्फ मराठी बोला जाता है. उसका दावा है कि इस वजह से यह क्षेत्र कन्नड़ भाषी राज्य कर्नाटक के बजाय महाराष्ट्र का हिस्सा होना चाहिए.  महाराष्ट्र इस इलाके के हर गांव की गिनती वहां बोली जाने वाली भाषा के आधार पर करते रहा है. अपने दावे को पुष्ट करने के लिए महाराष्ट्र  ऐतिहासिक तथ्यों की ओर भी ध्यान दिलाते रहा है. उसका कहना है कि कर्नाटक के इन इलाकों के मराठी भाषी क्षेत्र में अभी भी लोग अपना टैक्स रिकॉर्ड मराठी में ही रखते हैं. 


मई 1960 के बाद विवाद हुआ तेज़


मई 1960 में महाराष्ट्र बनने के बाद से ये विवाद और बढ़ गया.  उसने दावा किया कि कर्नाटक ( तत्कालीन मैसूर)  के  बेलगावी ( तत्कालीन बेलगाम), कारवार और निपाणी समेत 865 गांव  महाराष्ट्र में मिला दिया जाए. कर्नाटक ने अपनी एक इंच जमीन देने से भी इंकार कर दिया. कर्नाटक हमेशा से कहते रहा है कि राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956  के तहत तय सीमा ही सही है. कर्नाटक का दावा है कि राज्य की सीमा कभी भी अस्पष्ट नहीं थी. एक्ट ने सीमा को सही तरीके से निर्धारित कर दिया था. इस वजह से महाराष्ट्र के दावों को स्वीकार नहीं किया जा सकता. 


 केंद्र ने 1966 में बनाया महाजन आयोग


विवाद बढ़ने पर केंद्र सरकार ने 25 अक्टूबर, 1966 को पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया मेहर चंद महाजन की अगुवाई में एक आयोग का गठन कर दिया.  उस वक्त एस निजलिंगप्पा कर्नाटक ( तत्कालीन मैसूर) के मुख्यमंत्री थे और वीपी नायक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि आयोग की रिपोर्ट दोनों राज्य मान लेंगे और विवाद का हल निकल जाएगा. महाजन आयोग ने अगस्त 1967 में रिपोर्ट सौंप दी.  आयोग ने बेलगावी पर महाराष्ट्र के दावे को खारिज कर दिया. आयोग ने निपाणी (Nippani), नंदगढ़ (Nandgad) और खानापुर (Khanapur) समेत कर्नाटक के 264 गांवों/ जगहों को महाराष्ट्र में मिलाने का सुझाव दिया गया. वहीं आयोग ने दक्षिण सोलापुर और अक्कलकोट (South Solapur and Akkalkot) समेत महाराष्ट्र के 247 गांवों/ जगहों को कर्नाटक के साथ मिलाने की सिफारिश की.


आयोग की रिपोर्ट को महाराष्ट्र ने किया खारिज


महाजन आयोग की रिपोर्ट को 1970 में संसद में पेश किया गया, लेकिन इस पर चर्चा नहीं हो सकी. आयोग की रिपोर्ट को महाराष्ट्र ने  सिरे से खारिज कर दिया.  उसके बाद से ही महाराष्ट्र सरकार कहते रही है कि महाजन आयोग ने उसके पक्ष पर संजीदगी से गौर नहीं किया. वहीं कर्नाटक को आयोग का फैसला अपने पक्ष में लगा. महाजन आयोग की सिफारिशों के नहीं लागू होने से मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को कर्नाटक का हिस्सा बनाने की मांग बढ़ती गई.


2004 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला


धीरे-धीरे विवाद इतना गहराते गया कि महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों को लगने लगा कि अब इसका  राजनीतिक हल निकालना मुश्किल है. महाराष्ट्र सरकार ने 2004 में कर्नाटक के मराठी भाषी गांवों पर दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की.  बाद में कर्नाटक ने बेलगाम का नाम बदलकर बेलगावी कर दिया और इसे कर्नाटक की दूसरी राजधानी बना दिया.


अनुच्छेद 3 और अनुच्छेद 131 का हवाला


संविधान के अनुच्छेद 3 के प्रावधानों का ही उल्लेख करके कर्नाटक कहता रहा है कि ये मामला सु्प्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता ही नहीं है.    कर्नाटक का कहना है कि सिर्फ संसद के पास ही राज्यों की सीमा में बदलाव का अधिकार है. वहीं महाराष्ट्र संविधान के अनुच्छेद 131 का हवाला देते हुए कहता है कि केंद्र सरकार और राज्यों के बीच विवादों से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र है. कर्नाटक का कहना है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 3 में किसी भी नए राज्य को बनाने या उनकी सीमाओं में बदलाव करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ संसद को दिया गया है. वहीं संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट को भारत के संघीय ढां चे की अलग-अलग इकाइयों (राज्यों) के बीच किसी विवाद पर आरंभिक अधिकारिता की शक्ति  मिली हुई है. महाराष्ट्र इसी अनुच्छेद का हवाला देते हुए सीमा विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट से चाहता है. 


क्या कहता है अनुच्छेद 131  


ये अनुच्छेद इन तीन मामलों में सुप्रीम कोर्ट की आरंभिक अधिकारिता से जुड़ा है.
(a) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच
(b) भारत सरकार और कोई राज्य या राज्यों का एक ओर होना और एक या अधिक राज्यों का दूसरी ओर होना
(c) दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद


सीमा में बदलाव के लिए संसद से कानून जरूरी 


आरंभिक अधिकारिता से मतलब है कि देश में कोई अन्य अदालत  इस प्रकार के विवादों का फैसला नहीं कर सकता. महाराष्ट्र की दलील है कि सीमा विवाद दो राज्यों के बीच है. इसलिए ये मामला सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है. हालांकि ये गौर करने वाली बात है कि संविधान का अनुच्छेद 3 राज्यों के बीच सीमा में बदलाव को लेकर संसद को असीमित अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट से मामले का निपटारा हो भी जाता है, तब भी सीमा में बदलाव से जुड़े किसी भी तरह के फैसलों को लागू करने के लिए संसद से कानून  पारित कराना अनिवार्य होगा. 
 
सुप्रीम कोर्ट भी नहीं मानता है भाषायी आधार  


2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि इस मुद्दे को आपसी बातचीत के जरिए ही हल किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का ये भी कहना था कि विवाद के समाधान के लिए भाषाई मानदंड पर विचार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे कई व्यावहारिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.  2010 में इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा था कि तत्कालीन मैसूर (अब कर्नाटक) को बॉम्बे प्रांत के कुछ क्षेत्रों का ट्रांसफर न तो मनमाना था और न ही ग़लत. केंद्र ने ये भी कहा था कि संसद और केंद्र सरकार दोनों ने 1956 के राज्य पुनर्गठन विधेयक और 1960 के बॉम्बे पुनर्गठन विधेयक पर विचार करते वक्त सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार किया था.  


अभी तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. अक्सर देखा गया है कि चुनाव के वक्त महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद और तेज हो जाता है.  सीमा विवाद को महाराष्ट्र में हर पार्टी अपने चुनाव प्रचार में बढ़-चढ़कर उठाती है. हर पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में इसे शामिल किया जाता है.  महाराष्ट्र में राज्यपाल के सालाना अभिभाषण में भी इसे हर सरकार जगह देती है. वहां की कोई भी पार्टी हो, इस मसले पर हर पार्टी का रुख एक ही होता है. बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना सभी चाहती है कि कर्नाटक के मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने की वजह से निकट भविष्य में  इसका समाधान निकलने की गुंजाइश कम ही दिख रही है. 


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