Lok Sabha Elections 2024: हाल ही में बिहार की एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरक्षण को लेकर एक और मोर्चा खोल दिया है. इस मुद्दे पर पीएम मोदी ने कहा कि सच्चाई यह है कि अगर अंबेडकर नहीं होते तो नेहरू ने एससी/एसटी के लिए आरक्षण की अनुमति नहीं दी होती. उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी गुट संविधान बदलना चाहता था और धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण देना चाहता था.


दरअसल, बिहार के पूर्वी चंपारण लोकसभी सीट में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर न होते तो नेहरू एससी-एसटी को आरक्षण नहीं मिलने देते. पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने तो मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इसका विरोध किया था. नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक इस परिवार के जितने प्रधानमंत्री हुए, सबने ओबीसी आरक्षण का विरोध किया.


आरक्षण पर क्या थे नेहरू के विचार? 


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आरक्षण से संबंधित आर्टिकलों पर संविधान सभा में बहस में योगदान नहीं दिया था, लेकिन पीएम बनने के बाद उन्होंने जून 1961 में मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने जाति और पंथ के आधार पर नौकरियों में आरक्षण के बजाय पिछड़े समूहों को अच्छी शिक्षा मिलने पर जोर दिया था.


पिछड़े समूह की मदद का एकमात्र विकल्प अच्छी शिक्षा


उन्होंने अपने पत्र में लिखा था, "ये सच है कि हम एससी और एसटी की मदद करने के बारे में कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हुए हैं. वे मदद के हकदार हैं, लेकिन फिर भी, मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं, खासकर नौकरी में. पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र विकल्प अच्छी शिक्षा के अवसर देना है. इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है."


पत्र में उन्होंने आगे कहा, "सांप्रदायिक और जातिगत आधार पर आरक्षण प्रतिभाशाली और सक्षम लोगों को बर्बाद कर देता है, जबकि समाज दोयम दर्जे या तीसरे दर्जे का बना रहता है. मुझे यह जानकर दुख हुआ कि सांप्रदायिक विचार के आधार पर आरक्षण का यह मामला कितना आगे बढ़ गया है."


क्या थी बीआर अंबेडकर की राय?


दरअसल, संविधान सभा में बीआर अंबेडकर ने संबोधित करते हुए स्वीकार किया कि यह एक “सामान्य सिद्धांत” है. हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि रोजगार के मामले में सभी नागरिकों को अवसर की समानता दी जाए, उन्होंने तर्क दिया कि “पिछड़ा” शब्द एक आवश्यक योग्यता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्पीड़ित समुदायों को दिए गए आरक्षण के अवसर की समानता के अधिकार को पूरी तरह से “खत्म” न कर दे.


जहां तक पिछड़ा समुदाय को लेकर सवाल है इस पर अंबेडकर का तर्क था कि यह प्रत्येक स्थानीय या राज्य सरकार की ओर से तय किया जाएगा.


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